मयंक विश्वकर्मा, आम्बुआ
आम्बुआ ही नहीं अपितु आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों में सिंचाई एवं घरेलू जल उपयोग के लिए अंधाधुन ट्यूबवेल खनन कराए जा रहे हैं । यह कहा जाए कि धरती का सीना छलनी छलनी किया जा रहा है । एक समय था जब लोग घरों तथा खेतों में कुए खुदवातें थे। मगर ट्यूबवेलो का प्रचलन बढ़ता जा रहा है । पम्पो के माध्यम से खींचा जा रहा बेशकीमती जल जमीन के अंदर कम होता जा रहा है जिस कारण कई हेडपंप सुख चुके या सूखने की कगार पर है।
हमारे आम्बुआ संवादाता को ग्रामीण क्षेत्र के युवा कांग्रेसी कमल सिंह ने बताया कि ग्राम भोरदू में कीखाड़ा फलिया में दो ट्यूबवेल के कारण नौ हेडपंप या तो सूख चुके हैं या सूखने की कगार पर है जिस कारण क्षेत्र में पेयजल की समस्या बनती जा रही है । यह एक उदाहरण के बतौर देखा जा सकता है। ऐसे एक नहीं अनेक गांव कस्बे है जहां के हेण्डपम्प ट्यूबवेल के कारण सूख गए हैं धरती के अंदर पानी बचा ही नहीं है तो हैंडपंप में पानी कैसे आए।क्षेत्र में ट्यूबवेल के खनन कीएक अंधा धुंध परंपरा या प्रतिस्पर्धा चल रही है घर बनाने वाले पहले टयुबवेल कराते हैं इसी तरह खेतों में भी सिंचाई के लिए भी कुआं खुदवाने की बजाय टुयुबवेल कराना अधिक उचित मान रहे हैं । हालांकि शासन स्तर पर कुएं खोदने की अनेक योजनाएं है जिसमें कपिलधारा योजना है । कुंए खोदने का एक लाभ यह होता है कि जमीन का पानी वर्षा काल में जब कुओं में वर्षा का जल एकत्र होता है तो बढ़ जाता है तथा अधिक समय तक संग्रहित रहता है । गांव में बिजली की मोटर से पानी खींचे जाने के कारण जमीन के अंदर बहुत दूर का पानी खींच लिया जाता है जिस कारण जमीन के अंदर की जो झिरिया होती है जिससे जल संग्रह होता है। मोटरों के कारण अधिक खिंचाई होने से जमीन के अंदर दूर-दूर तक का पानी खिंच जाता है यही कारण है कि उस क्षेत्र में लगे हेण्डपम्प सुखना मुमकिन माना जा सकता है।
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