शोधार्थी- चंद्रभान सिंह भदौरिया –
(लेखक विकास संवाद के खाद्यान्न सुरक्षा पोषण विषय के शोधार्थी है)–
कुपोषण ” भिलाला” आदिवासी समाज की बीते कुछ दशको से बडी समस्या रही है खासकर जब से विकास के नाम पर उनके जंगल समाप्त होने लगे थे ओर रोजगार के साथ साथ खाद्यान्न को लेकर उनकी निर्भरता ” सरकार” पर बढने लगी थी खासकर ” पीडीएस” यानी उचित मूल्य की दुकाने ओर आंगनबाड़ी – मिड डे मिल पर । अफसोस की सरकारी निर्भरता के बीच बीते कुछ दशक मे सरकारी जिम्मेदार एजेंसिया अपनी जिम्मेदारी कागज पर ज्यादा ओर जमीन पर काम निभाते पाई गयी थी । खैर इस समय भिलाला आदिवासी समाज मे 0 से 6 साल के बच्चो मे से 47 % से अधिक बच्चे ” कुपोषण” का शिकार है हालांकि सरकार द्वारा तय मानकों एंव सर्वे से यह आंकडा 31% है ओर इसमे से भी अतिकुपोषित का आंकडा महज 2% के आसपास है ।
दो मोर्चे पर ” कुपोषण” से जंग लडने की चुनौती
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0 से 6 साल के भिलाला आदिवासी समाज के बच्चो के बीच ” कुपोषण” का अध्ययन करे तो भिलाला बहुल अलीराजपुर , धार जिले की कुक्षी – डही जैसे इलाके , बड़वानी जिले के भिलाला बच्चो मे इस आयु वर्ग मे कुपोषण अभी भी समाज ओर सरकार के लिऐ चुनौती है । यहां दो मोर्चे पर लडने की जरुरत है पहला यह कि कुपोषण होने ही ना पाये इसकी योजना बनाकर काम ईमानदारी से करने की जरुरत है सामाजिक कार्यकर्ता ” कैमथ गवले” कहते है कि आंगनबाड़ी , उचित मूल्य की दुकान एंव मिड डे मील होते हुऐ भी 0 से 6 साल के बच्चो मे कुपोषण फैल रहा है जो यह साबित करता है कि भिलाला बहुल इलाके मे यह संस्था ओर योजना अपनी जिम्मेदारी से काम नही कर रही है । इसी तरह भिलाला समाज के बीच रहकर काम करने वाले प्रदीप राठौर कहते है सवाल खडे करते हुऐ कहते है कि ” अगर मिड डे मिल या आंगनबाड़ी” का खाना ओर नाश्ता इतना कारगर है तो इतने सालो मे कुपोषण दुर क्यो नही हुआ ? दरअसल कुपोषण से जंग कार दूसरा मोर्चा ” कुपोषित हो चुके बच्चो को कुपोषण मुक्त करना है अब आंकडे तो बता रहे है कि कुपोषण कार प्रतिशत गिरा है मसलन ” भिलाला ” बहुल अलीराजपुर जिले के आंकडे कहते है जिले मे 0 से 5 साल तक के कुल 1 लाख 32 हजार 99 बच्चे है ओर उसमे कुपोषण का शिकार बच्चे 37 हजार 136 है ओर अति कुपोषित बच्चो का प्रतिशत 2 % है यानी अतिकुपोषित बच्चो की संख्या मात्र 3 हजार 830 है ।
तो क्या खत्म हो जायेगें ” पोषण पुनर्वास केंद्र ”
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अब अगर 87 % भिलाला आदिवासी बहुल जिले के कुपोषण की बात करे तो आंकडे कुछ सवाल खडे कर रहे है ओर जवाब शाशन – प्रशासन को सोचना होगा । पहला सवाल यह खडा होता है कि अलीराजपुर जिले मे 0 से 5 साल की आयु वर्ग के अतिकुपोषित बच्चो की संख्या ” 3, 830 ” है ओर जिले में जिला मुख्यालय सहित कुल 6 ” पोषण पुनर्वास केंद है इनमे से जिला मुख्यालय का केंद 20 सीटर है ओर विकासखंड मुख्यालय के 10 – 10 सीटर है इस तरह 70 बेड पूरे जिले के बनते है अब अगर 14 दिन एक बच्चे के माने तो एक माह मे दो अति कुपोषित बच्चे एक बेड पर बनते है तो माने कि 140 बच्चे एक माह मे जिले भर मे एडमिट होते है ओर सेंटर छोडने के बाद हर पखवाड़े उनकी निगरानी होती है ओर 4 निगरानी यानी 2 माह के बाद उस बच्चे को कुपोषण मुक्त घोषित कर दिया जाता है । इस लिहाज से 1680 बच्चे साल भर मे जिले के सभी केंद्र अति कुपोषण से मुक्त करा देते है ओर मौजूदा दोर कें आंकडे कहते है कि नये अतिकुपोषित बच्चे अगर नही आये तो अगले दो सालो मे अलीराजपुर जिले कें अतिकुपोषित बच्चे कुपोषण मुक्त हो जायेगे । तो क्या उसके बाद पोषण पुनर्वास केंद बंद हो जायेगें ? यह सवाल इसलिए खडा होता है क्योकि सरकार यह दावा कर रही है कि कुपोषण रोकने के लिए वह गर्भवती माता पर ही सबसे पहले फोकस कर रही है ओर उसके बाद जन्म होते ही मां को लडडू खिलाती है ताकी मां की कमजोरी दूर हो ओर बच्चे को पोष्टिक दूध मिल सके । ओर फिर 1 रुपये किलो अनाज देने का दावा है , आंगनवाड़ी मे बच्चे को अतिपोषक नाश्ता ओर खाना देने का दावा है मिड डे मिल ईमानदारी से देने का दावा है तो फिर अतिकुपोषित कहां से होगा ? लेकिन अगर फिर भी हुआ तो इसके मायने क्या होंगे ?
5 साल बाद के ” कुपोषितों” का क्या ?
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भारत की जनगणना के आंकडे मे बच्चो के कुपोषण ओर शिक्षा को देखते हुए आंकडे 0 से 6 साल तक के लिए जाते है ताकी उसके अनुसार काम किया जा सके लेकिन मध्यप्रदेश शाशन 0 से 5 साल तक के बच्चो का आंकडा निकालकर ही काम करता है 2011 की जनगणना कहती है कि अलीराजपुर जिले मे 0 से 6 साल के 1 लाख 43 हजार 954 बच्चे है जो कि जिले की कुल आबादी के 19.76% है मगर कुपोषण से जंग लडने मे अलीराजपुर जिले के 0 से 5 साल तक के 1 लाख 32 हजार 99 बच्चो के बीच से ही कुपोषित ओर अतिकुपोषित बच्चो को शामिल किया गया है बडा सवाल यही खडा होता है कि जो 5 से 6 साल के बच्चे कुपोषण से निपटने की लडाई मे शामिल नही किये गये है उन बच्चो का क्या होगा ? क्या वह बिना सरकारी तमगे से कुपोषित होकर आगे बढ़ेंगे ? ऐसे बच्चो की संख्या 11 हजार 855 है जो 5 से 6 साल के बीच आते है । ओर 6 साल की उम्र पार कर चुके बच्चो का क्या ? जिनके लिऐ सरकार के पास कोई योजना ओर मैकेनिज्म नही है । अलीराजपुर की जिला महिला बाल विकास अधिकारी डा निषी सिह कहती है कि अलीराजपुर जिले मे हम कुपोषण से जंग जीतने की लगभग तैयारी मे है ।
पोषण पुनर्वास केंद्र कितने कारगर है ?
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अलीराजपुर जिले मे क्या वाकई कुपोषण से लडने मे कारगर है ? इसका जवाब आंकड़ो मे तो बेहतर है कुछ केंद्रो पर काम भी ठीक हुआ है मगर कुछ दूसरी समस्याओ से भी इन केंद्र संचालकों को जुझना पडता है अलीराजपुर के डीपीएस ” अजहर अली ” कहते है कि बीते 6 माह मे हमारे जिले मे 840 अतिकुपोषित बच्चो का उपचार किया जा चुका है ओर हम नियमित निगरानी के दौर भे है लेकिन इलाज ओर निगरानी मे पलायन समस्या बन जाता है कई बार मां या परिवार मजदूरी करने चला जाता है ऐसे में आखिर निगरानी अधूरी रह जाती है । हालाँकि पोषण पुनर्वास केंद्र सुविधाजनक बनाये गये है अजहर अली कहते है कि बच्चे को 14 दिन भर्ती रखने कें दोरान उसकी मां को 70 रुपये प्रतिदिन मजदूरी भत्ता ओर साथ में भोजन दिया जाता है ।साथ ही मां का शारीरिक परीक्षण भी किया जाता है । अजहर अली कहते है कि हम तय मानकों के अनुसार यह तय करते है कि बच्चा अतिकुपोषित है या नही । उसकी बांह का माप ओर उम्र के साथ वजन ओर हाइट एक पैरामीटर होता है ।
यह बोले कलेक्टर —
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अलीराजपुर जिले मे कुपोषण से लडने को लेकर बेहतर काम हुआ है ओर आगे भी निरंतर होगा । पोषण पुनर्वास केंद्र उपयोगी साबित हुऐ है ओर आगे भी होगें । हम दोनो मोर्चे पर काम कर रहे है पहला यह कि बच्चे कुपोषित होने ही ना पाये इसके लिऐ सरकारी प्रयासो से ज्यादा जान जागरुकता फैलाने के प्रयास जारी है दूसरा कुपोषितों को तत्काल संज्ञान मे लेकर उनका उपचार कर रहे है
– शेखर वर्मा – कलेक्टर अलीराजपुर