सिर मुड़ाते ओले गिरे कहावत हो रही है कृषकों के साथ, मामला मावठे से कपास की फसल खराब होने भाव और गिरने का

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मयंक विश्वकर्मा, आम्बुआ

खेती को मौसम का जुआ कहा जाता है जिस तरह जुआ में खिलाड़ी हमेशा ही जीतता नहीं है वैसे ही खेती में हर बार लाभ मिले यह भी संभव नहीं है मौसम कब करवट बदल दे और तैयार फसले खराब कर दे या पैदावार प्रभावित कर दे। फसल अच्छी हो जाए तथा मंडी में बिक कर रकम किसानों की तिजोरी में आ जाए तब कृषक  को संतोष होता है वरना भाय बना ही रहता है।

उक्त स्थिति इस बार क्षेत्र में कृषकों के सामने आ गई है खरीफ की फसल कपास लगभग खेतों में अपनी सफेदी बिखेर रही थी कुछ कृषकों ने कपास की बिनाई कर ली तो कुछ यह कार्य कर रहे थे इधर बाजार में कपास के भाव विगत वर्ष की तुलना में 15-20 रुपए किलो कम आ रहे थे जिस कारण कृषक कपास बेचने से कतरा रहे थे विगत वर्ष 75-80 रुपए प्रति किलो थे  जबकि इस वर्ष 60-65 रुपए किलो से बिक रहा था इसी बीच 26 नवंबर तथा 27 नवंबर को मावठे की वर्षा होने से खेतों में तैयार खड़ी कपास की फसल भीग जाने के कारण खराब हो गई अब कपास की बिनाई की जा रही है यह कपास  भीग जाने के कारण पीला पड़ गया जिससे भाव और कम हो गया है यह कपास अब 50-60 रुपए किलो से भी कम भाव में बिक रहा है व्यापारी भी खरीद कर सुखाने में लगे हैं जिस कारण सूखने के बाद वजन कम हो जाने से व्यापारियों को भी हानि हो रही है कृषकों की स्थिति “सिर मुंडाते ओले पड़े” वाली हो रही है।

इनका कहना है

मावठे के कारण कपास खराब हुआ पहले ही भाव कम थे अब पिला पड़ जाने के कारण और भाव कम हो रहे हैं ।

रामचंद्र माहेश्वरी, थोक क्रेता

खेती करना अब महंगा सौदा होता जा रहा है मौसमी परिवर्तन के कारण कृषकों की फसले खराब हो रही है इस बार मवठे ने कपास की रंगत बिगाड़ दी पूर्व से भाव कम थे अब और कम होने से नुकसानी उठानी पड़ रही है।

ठाकुर लोकेंद्र सिंह राठौर, कृषक बोरझाड़ 

महंगा खाद बीज और कीटनाशक के बाद कपास की फसल बहुत अच्छी आ रही थी मगर मावठे ने सब चौपट कर दिया कपास खराब हुआ और भाव भी काम मिल रहे हैं।

विक्रम सिंह रावत, सरपंच तथा कृषक ढेकालकुआं

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