गौ पालकों की बेरुखी के कारण कचरा, प्लास्टिक खाने को मजबूर गोवंश

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मयंक विश्वकर्मा, आम्बुआ

आम्बुआ ही नहीं अपितु आसपास के ग्रामीण तथा शहरी कस्बाई क्षेत्रों में गोवंश दुर्दशा का शिकार हो रहे हैं पशुपालक इन्हें तब तक खूंटे से बांधते हैं। जब तक गाय दूध देती है उसके बाद बच्चे सहित आवारा छोड़ दिए जाते हैं जो कि बाजारों में कचरा खाकर अपना पेट भरते हैं तथा कई निर्दयी लोग की लाठी पत्थर खाते हैं।

गाय को माता माना गया है, मगर क्षेत्र में इसी माता को आवारा छोड़ दिया जा रहा है आम्बुआ में 2 दर्जन से अधिक गोवंश आवारा होकर बाजारों में भटकते देखे जा सकते हैं। यह दुकान के सामान या सब्जी विक्रेताओं की सब्जी तथा रात में खेतों में खड़ी फसल को जब खाते हैं तो इन्हें डंडे से मारा पीटा जाता है। कई कसाई जैसा व्यवहार करते हुए अकारण ही इन घूमते गोवंशों पर लढ़ चला देते हैं अथवा पत्थर मार देते हैं जिससे कई बार यह घायल हो जाते हैं आवारा घूमते हुए जब कहीं इन गायों का प्रसव हो जाता है तो पता लगते ही गौपालक इन्हें घर ले जाकर खूंटे से बांध देते हैं तथा जब तक दूध देती है तब तक बांधकर खिलाया पिलाया जाता है। इसके बाद बच्चे सहित भटकने के लिए छोड़ दिया जाता है। कई बार यह जानवर किन्हीं वाहनों की चपेट में आकर घायल या फिर दम तोड़ देते हैं क्षेत्र में 12 माह आवारा गोवंश भटकते रहते हैं। धर्म प्रेमी परिवार इन्हें रोटियां देते हैं भूखे प्यासे यह गोवंश बाजारों में पड़ा कचरा प्लास्टिक आदि खा कर पेट भरते हैं। आम्बुआ में वर्षों से कांजी हाउस की व्यवस्था नहीं है तथा आसपास कोई ऐसी गौशाला भी नहीं है जहां इन्हें रखा जा सके मजबूरन इन्हें सर्दी गर्मी तथा बरसात में जहां तहां रात गुजारना पड़ता है। प्रशासन को चाहिए कि पशुपालकों का पता लगाकर या चिन्हित कर कडाई के साथ अपने गोवंश की कथा सुरक्षा तथा भरण पोषण कराऐ।

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