इस युग में खानपान भी बिगड़ा हुआ है और खानदान भी सुधारना पड़ेगा : पं. शैलेंद्र शास्त्री 

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मयंक विश्वकर्मा, आम्बुआ

वर्तमान में हमें देखने को मिलता है कि यह समय बड़ा ही विपरीत दिशा में जाने वाला है यहां पर खानपान भी बिगड़ा हुआ है और खानदान भी पूरी तरह बिगड़ा हुआ है! जिसे हमें सुधारने की आवश्यकता है! पंडित शास्त्री ने कहा लोक भगवान की बराबरी करने की बात करते हैं शराब पीने वाला शराबी कहता है यह भैरू का प्रसाद है भांग और गांजा पीने वाला कहता है यह शिव का प्रसाद है! मगर मैं इस कथा के माध्यम से उन्हें बताना चाहता हूं भगवान शिव ने भांग का सेवन किया या ना किया हो कहीं भी पुराने में उल्लेख नहीं है मगर कल के काल महाकाल ने जहर जरुर पिया था ,अगर उनके प्रति आपकी सच्ची श्रद्धा है आप भी जहर क्यों नहीं पीते!  कथा कथा में शास्त्री जी ने कहा लोक धन कमाने में इतने अंधे हो चुके हैं उन्हें यह भी पता नहीं चलता की धन कैसे और किस तरह से हम कमा रहे हैं धन कमाने वाला अमीर नहीं होता आमिर वह होता है जो उसे धन का सदुपयोग कर धर्म एवं समाज के उत्थान में लगे वही व्यक्ति धनी कहलाता है! कथा में सुत  महाराज जो शुद्र समाज में जन्म हुआ था लेकिन उनके कर्म बहुत ही उच्च श्रेणी के थे जिसके कारण उन्हें संत का दर्जा दिया गया। करने का तात्पर्य है ऊंचे कूल में जन्म लेकर कोई विद्वान नहीं बन सकता। उसके कर्म उत्तम एवं श्रेष्ठ होना चाहिए। 

कथा में वासुदेव जी वर्णन करते हैं धीरे-धीरे पाप बढ़ते जा रहे हैं और पुण्य के नाम पर हम पाप कर रहे हैं हम दिन प्रतिदिन धर्म से विमुख होते जा रहे हैं । जो धर्म की रक्षा करता है धर्म उसकी रक्षा करता है। पंडित शास्त्री ने कहा इस दुनिया में 10 प्रकार के लोग ऐसे होते हैं जिसे धर्म अधर्म ,जात पात से कोई लेना-देना नहीं होता है वह पहल नशेड़ी, दूसरा लापरवाह ,तीसरा पागल ,चौथा थकाहारा, पांचवा क्रोधी, छठ भूखा, सातवा जल्दबाज करने वाला, आठवां लालची ,और नया डराहुआ यह व्यक्ति कभी भी किसी की परवाह नहीं करते जो इन्हें अच्छा लगता है वही करने में इन्हें आनंद आता है। 

कथा में पंडित शास्त्री ने कहा नंदी धर्म होता है हम शिवजी के दर्शन के लिए जाते हैं तो पहले हमें नदी के दर्शन करना पड़ते हैं फिर शिव दर्शन का लाभ मिलता है। नदी को धर्म कहा गया है इसीलिए भगवान शिव नदी के ऊपर विराजमान होकर अपना सफर करते थे। हमें धर्म की ओर जाने की आवश्यकता है धर्म की ओर जाने के लिए हमें माध्यम की आवश्यकता होती है और धर्म की ओर जाने के लिए हमें किसी की ज्ञान की प्राप्ति की आवश्यकता नहीं पड़ती। हम अपने खान-पान और खानदान दोनों का सुधार करने का काम करें और अपने इष्ट देवता की पूजा अर्चना करें जिससे हमारा जीवन तो सफल होगा ही मृत्यु के बाद भी हमारी सद्गति हो ऐसी व्यवस्था केवल भगवान की स्मृति से ही प्राप्त हो सकता है। कथा विश्राम के बाद मुख्य जजमान एवं जजमान की और साथ-साथ 11 जोड़ों ने आरती का लाभ लिया प्रसादी के की व्यवस्था दीपक भाई परिहार की ओर से की गई थी।

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