आदिवासी समाज में नयी बयार… अच्छे दिन की शुरूआत या लग गई शहर की हवा..!

May

खवासा, अर्पित चोपड़ा: वनांचल में इन दिनों आदिवासी समाज में हो रही शादियों की धूम मची हुई है। इन शादियों में गाए जाने वाले लोकगीत लोगों, राहगीरों को अपनी और आकर्षित कर रहे है। डूंगर की ऊँची-नीची पहाड़ियों से अनवरत रात-दिन ढोल मांदल के साथ सुनाई देने वाले ये लोकगीत लोगों के कानो में मिठास घोल रहे है। पिछले वर्षो की तुलना में इस वर्ष शादियों की संख्या ज्यादा है इसके चलते बाजारों में भी रौनक आ गई है। खवासा क्षेत्र के लगभग सभी गावों में शादियों की बहार सी आई हुई है।

आदिवासी समाज ने भी समय के साथ अपने तौर तरीकों में बदलाव किया है। अब आदिवासी लोग भी पुरानी प्रथाओ को छोड़कर आधुनिकता की ओर रुख करने लगे है। पहले जहाँ कम खर्च  और साधारण तरीके से शादी सम्पन्न हो जाती थी वही अब वे शादियों पर भरपूर खर्च करने लगे है। डीजे बने अहम् हिस्सा पहले शादियों में निकाले जाने वाले बनौले में ढोल-मांदल और कुण्डियो का प्रयोग होता था जिनका स्थान अब डीजे ने ले लिया है। डीजे में अब लोकगीतों के साथ-साथ नए-नए गाने सुनाई देने लगे है जिनपर आदिवासी बच्चो के साथ- साथ बुजर्ग भी थिरकते है। लगभग पूरी बारात को डीजे पर थिरकता हुआ देखा जा सकता है।

बेलगाडी की जगह जीप पहले बारात में जाने के लिए बेलगाडी ही मुख्य साधन होता था। बेलगाडी के साथ कई बाराती पैदल ही शादियों में पहुँचते थे किन्तु अब बारात में जाने के लिए बड़ी मात्रा में जीपों का उपयोग किया जाने लगा है।एक शादी में करीब १० से १५ जीप सामान्य रूप में देखी जा सकती है।

Triba Marriage Jhabuaपहले जहां शादियों में केवल चावलऔर दाल बनाए जाते थे अब दाल-चावल के साथ पुड़ी सब्जी और मिठाई भी बनने लगी है। समय में भी परिवर्तन पहले आदिवासी समाज में शादियाँ रात में होती थी जिसमे इन्हें चोरी, सर्पदंश अँधेरे जैसी कई समस्याओ का सामना करना पड़ता था। अब अधिकांश शादियाँ सुबह या दिन में ही संपन्न हो रही है. दिन में होने वाली शादियों ने इनकी कई व्यवहारिक समस्याओं को भी हल कर दिया है।

मजबूत होती आर्थिक स्थिति आदिवासियों की मजबूत होती आर्थिक स्थिति का असर अब इनकी जीवनशैली और परम्परों पर स्पष्ट परिलक्षित हो रहा है। आदिवासी समाज की बदलती परिस्थितियों का श्रेय काफी हद तक सरकारी नीतियों को है। शासन-प्रशासन द्वारा चलाई जाने वाली योजनओं जैसे; मनरेगा, मुख्यमंत्री आवास योजना, विभिन्न पेंशन योजना आदि ने आदिवासी लोगो की आर्थिक स्थिति में
आमूलचूल परिवर्तन किया है।

वहीं स्वयं ये लोग भी अब व्यावसायिक होने लगे है। पिछले कुछ वर्षों में बड़ी संख्या में आदिवासी युवकों ने व्यापार-व्यवसाय के क्षेत्र में उपस्थिति दर्ज करवाई है। पहले जहाँ ये लोग केवल खेती तक ही सिमित रहते थे अब इन लोगो ने यात्री परिवहन, ट्रांसपोर्टिंग, होटल, ठेकेदारी, मिस्त्री आदि क्षेत्रों में भी मजबूती से अपने कदम जमा लिए है।