सलमान शैख़@ पेटलावद
भगोरिया उत्सव को लेकर पेटलावद प्रतिवर्षानुसार इस वर्ष भी बडे स्तर पर गैर जनजाति विकास मंच के तत्वावधान में निकाली गई। आसपास के ग्रामीण क्षैत्रों से करीब 1 दर्जन से अधिक ढोल मांदल लेकर ग्रामीण पहुंचे। जिन्होने गैर के अलावा जमकर नाच गाना किया।
जनजाति विकास मंच का यह प्रयास आदिवासी संस्कृति का महापर्व भगोरिया हाट को जीवीत रखने के लिए किया गया। शंकर मंदिर प्रांगण के पास मंच से सेवा भारती सहित सामाजिक संगठनों ने स्वागत किया। मांदल लेकर आए ग्रामीणों का केसरियां दुपट्टा भेंटकर सम्मानित किया। शंकर मंदिर से गैर भी निकाली गई जो नगर के प्रमुख मार्गों पुराना बस स्टेंड, गांधी चौक होती हुई पुन: शकर मंदिर पहुचकर सम्पन्न हुई।
नही हुआ कोई व्यापार, सामान्य दिनों की तरह ही रहा-
बाजारों में सामान्य हाट बाजारों सा ही माहौल रहा। दूर दराज के शहरों व ग्रामीण ईलाकों से व्यापार की दृष्टि से यहां पहुंचे व्यापारियों को निराशा हाथ लगी। ग्रामीण रमेश सोलंकी ने बताया कि इस अंचल के ज्यादातर लोग मजदूरी के लिये बाहर गये हुए थे जो आशातीत संख्या में लौटकर नहीं आये इस कारण भीड भाड दिखाई नहीं दी। आज से करीब 20 से 25 वर्ष पहले पेटलावद के आसपास के 20 गांव के आदिवासी ग्रामीण ढोल मांदल पर झुमते फिरते आते थे ओर खुब धमाल चौकडी भी करते थे लेकिन उन्हें ठीक तरह से प्रोत्साहन नहीं मिलने के कारण उनका अब हाट बाजार में आना बंद हो गया। हांलाकी इस बार जनजाति विकास मंच ने इस परम्परा को वापस करने का प्रयास किया। पुलिस प्रशासन के सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम थे।
गल घुमने वाले मन्नतधारी घुमते नजर आए-
अपनी मन्नत पूरी होने पर गल घुमने के लिए तैयार युवक बाजार में घुमते नजर आए। एक साथ टोली बनाकर घुमते यह लोग शहरवासियों के लिए आकर्षक थे।
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