अपने ही शत्रु बनते है और नुकसान पहुंचते हैं, हमें आपस में मिलजुलकर प्रेमपूर्वक रहना चाहिए, प्रेम परमात्मा का रूप है : संत कमलकिशोरजी नागर

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अर्पित चोपड़ा, खवासा
जिस घर में सत्संग, कीर्तन, धार्मिक आयोजन होते है वहां भगवान का वास होता है। जिस घर में सुमति, आज्ञाकारी बच्चें, गौमाता, तुलसी का क्यारा और नारी का खनकता चूड़ा होता है वो घर इस धरती का साक्षात स्वर्ग है। जिस दिन धर्म नष्ट हो गया उस दिन कुछ नहीं बचेगा सबकुछ नष्ट हो जाएगा। गुरु हवा जैसे होते है। जैसे हवा दिखाई नहीं देती किन्तु सभी जगह होती है उसी प्रकार सद्गुरु भले ही दिखाई नहीं दे किन्तु वह सर्वत्र विद्यमान है। जब भी जीवन से तंग आ जाओ, बुद्धि काम करना बंद कर दे कोई भी रास्ता दिखाई नहीं दे तो सब कुछ छोड़ कर सद्गुरु के शरण में बैठ जाना चाहिए। सद्गुरु के शरण में बैठते ही शान्ति मिल जाएगी। उक्त उद्गार मालव माटी के संत, मां सरस्वती के वरद पुत्र, प्रसिद्ध कथाकार संतश्री पंडित कमल किशोरजी नागर ने श्रीमद् भागवत कथा के पांचवे दिन व्यक्त किए। संतश्री ने कथा सुनाते हुए कहा कि आज अपने ही अपनों के शत्रु बने बैठे है और एक दूसरे को नुकसान पहुंचाने को आतुर है। हमें आपस में मिलजुलकर प्रेमपूर्वक रहना चाहिए। प्रेम परमात्मा का रूप है जबकि प्यार वासना युक्त एक शब्द। संतश्री ने कहा कि हमे गौपालन दूध के लिए नहीं बल्कि गौ-दर्शन के लिए करना चाहिए। जिस घर में गौमाता का पालन होता है उस घर के सभी पापों का नाश हो जाता है । स्वार्थहीन सेवा ही असली सेवा है।

दृढ़ संकल्पित युवती नेहा चौहान का किया अभिनन्दन

अपनी कमाई से नागरजी की कथा कराने और कथा नहीं होने तक शादी ना करने का कठिन संकल्प लेने वाली युवती नेहा चौहान को संतश्री कमल किशोरजी नागर ने हजारों श्रोताओं की उपस्थिति में मंच पर बुलाकर सेमली तीर्थ में होने वाली श्रीमद् भागवत कथा के यजमान परिवार के अनूप बंसल से अभिनंदन करवाया । संतश्री ने नेहा के दृढ़ संकल्प को दूसरे नौजवान युवक-युवती के लिए मिसाल बताते हुए कहा कि यदि नवयुवक-युवतियां धर्म रक्षा के नेहा इतने जाग्रत हो जाएंगे तो कोई भी हमारे धर्म को नुकसान नहीं पहुंचा पाएगा। कथा के प्रारंभ में अलीराजपुर क्षेत्र के कमरू अजनार ने संतश्री नागरजी को आदिवासी पहनावे की पहचान बंडी और हाथ मे कड़े पहनाकर धनुष.बाण भेंट कर अभिनंदन किया। श्रीमद्भागवत कथा के चौथे दिन विधवा महिलाओं के लिए कल्याणी शब्द का प्रयोग करने और उन्हें समाज में सम्मानपूर्ण स्थान देने के पंडित कमल किशोरजी नागर के व्यास गादी से किए आग्रह को बड़ी संख्या में ग्रामीणों ने स्वीकारते हुए अपने सहमति पत्र संतश्री के समक्ष प्रस्तुत किए। कई युवतियों ने भी अपने माता-पिता को कन्यादान से वंचित ना करने की शपथ लेते हुए संतश्री को संकल्प पत्र दिए।

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