भारतीय संस्कृति अपरिवर्तनशील है : स्वामी दिव्यानंद तीर्थ

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हरीश राठौड़, पेटलावद
शनि न्याय के देवता है। वे खराब नहीं है वरन उनकी दृष्टि पडऩा खराब माना जाता है। नगर में स्थिति शनि मंदिर की यह मूर्ति श्रेष्ठ है। क्योंकि शनि की दृष्टि नगर पर नहीं पड़ रही है। भारत की संस्कृति उदारता से भरपूर है। इसलिए ब्रिटिश एवं इस्लामी शासन में भारतीय संस्कृति अपरिवर्तनशील रही। उक्त विचार परम पूज्य स्वामी दिव्यानंद तीर्थ शंकराचार्य भानपुरा पीठ ने विवेकानंद सभागृह के लोकार्पण के अवसर पर व्यक्त किए। स्वामीजी ने भारतीय एवं यूरोप के इतिहास के साथ शिवपुराण एवं रामायण के अनेक प्रसंगों का उदाहरण देते हुए यह प्रतिपादित किया कि भारतीय संस्कृति श्रेष्ठ है। अंग्रेजी विद्वान मैकाले ने योजनाबद्ध रूप से भारतीय शिक्षा एवं संस्कृति को बदलने का प्रयास किया। स्वामीजी ने कहा कि आज अपने ही लोग हिंदू धर्म के विषय में दुष्प्रचार कर वेदों पर प्रतिकूल टिप्पणी करते है। मानस के गूढ़ रहस्यों को उजागर करते हुए आपने कहा कि यदि हर घर में राम के चरित्र की स्थापना हो जाए तो भारत फिर से विश्व में अग्रगण्य हो जाएगा।
इसके पूर्व स्वामीजी के नगर आगमन पर उन्हें शंकर मंदिर से खुली जीप में शोभायात्रा के रूप में शनि मंदिर तक लाया गया मार्ग में नगर परिषद ने पुराना बस स्टैंड पर, ब्राम्हण समाज ने गणपति मंदिर पर,राठौड़ समाज ने लक्ष्मीनारायण मंदिर पर स्वामीजी का मंच लगाकर भव्य स्वागत किया। मार्ग में बड़ी संख्या में महिलाओं और पुरूषों ने पुष्पवर्षा कर स्वामीजी का स्वागत करते हुए चरण स्पर्श किए। शनि मंदिर में स्वामीजी ने ट्रस्ट द्वारा नव निर्मित स्वामी विवेकानंद सभागृह का लोकार्पण किया एवं नीचे सभा कक्ष में अपने प्रवचन दिए। लोकार्पण समारोह में विशेष अतिथि के रूप में पूर्व नप अध्यक्ष विनोद भंडारी एवं नप अध्यक्ष मनोहर भटेवरा ने कार्यक्रम की अध्यबता की। ट्रस्ट के अध्यक्ष रमेश व्यास ने अपने स्वागत भाषण में सभी का स्वागत करते हुए कहा कि ट्रस्ट द्वारा सभागृह के निर्माण और जीणोद्वार के अन्य कार्यों में लगभग 8 लाख रूपए खर्च किए जा चुके है, विकास कार्य चल रहा है। ट्रस्ट के पदाधिकारी विनोद पुरोहित, डॉ मनोहर सिंह गेहलोत, ओम सोनी के साथ ट्रस्टी धन्नालाल परमार, हीरालाल राठउड़, नाथूलाल पाटीदार आदि ने स्वामी जी का भाव भीना स्वागत किया। कार्यक्रम में बड़ी संख्या में महिलाएं एवं पुरूष उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन विनोद पुरोहित ने किया और अंत में आभार डॉ मनोहर गेहलोत ने माना।

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