बीते तीन साल मे तेजी से उभरा जयस संगठन को सत्त्ताधारी बीजेपी अपने लिए एक चुनोती मान रही है छात्र संघ चुनावों ओर उसके पहले रतलाम – झाबुआ लोकसभा उपचुनावों मे जयस की भूमिका से बीजेपी के कान खडे हुए है ।
by मुकेश परमार
झाबुआ – अलीराजपुर सहित पश्चिम मध्यप्रदेश मे बीते 3 सालों से तेजी से मुखर होकर फैले ” जयस” संगठन को लेकर बीजेपी के कान अब खडे होने लगे है । दरअसल जयस आदिवासी युवाओ का एक ऐसा संगठन होने का दावा कर रहा है जो आदिवासियों के संवैधानिक अधिकारों के लिए लडाई लडता है । लेकिन रतलाम लोकसभा उपचुनावों मे मुख्यमंत्री की तगडी कैंपेन के बाद भी मिली हार के बाद बीजेपी सरकार ने एक खुफिया समीक्षा करवाई थी जिसमें हार के कुछ कारणों मे से एक जयस संगठन भी सामने आया था । ओर यह संगठन सोशल मीडिया से लेकर पढें लिए आदिवासियों मे जिस तेजी से फैला है उसको लेकर अब खुफिया रिपोर्ट सामने आने के बाद बीजेपी के कान खडे हो गये है बीजेपी को यह आशंका है कि जयस की अति सक्रियता के पीछे कांग्रेस ओर कुछ ईसाई संगठनों का हाथ है बीजेपी के झाबुआ जिला अध्यक्ष तो मंच से खुले आरोप भी कांग्रेस – जयस गठबंधन के लगा चुके है ओर उनके नक्सलवाद संबंधी बयान से तो बवाल भी मचा हुआ है हालांकि ” जयस” के महेश भाबर एक प्रेस रिलिज जारी कर पहले ही स्पष्ट कर चुके है कि उनका संगठन सिर्फ आदिवासी समाज के हितों मे काम करता है उनका किसी भी राजनीतिक दल से कोई लेना देना नहीं है । लेकिन बीजेपी ओर आरएसएस को जयस के माध्यम से कांग्रेस का छिपा एजेंडा नजर आ रहा है सुत्र बताते है कि बीजेपी पश्चिम मध्यप्रदेश की करीब 22 सीटों को अगले विधानसभा चुनाव के लिए बेहद महत्वपूर्ण मानती है ओर जयस के प्रभाव को कम करने के लिए रणनीति बनानी शुरु कर दी है संभवतः गुजरात चुनावों के परिणाम के बात बीजेपी मुखरता से जयस के खिलाफ आ सकती है संभवतः बीजेपी अपने विधायकों ओर आदिवासी समाज के पदाधिकारियों के जरिए जयस के खिलाफ हमलावर होगी । लेकिन पार्टी की यह रणनीति कारगर कितनी होगी यह तो आने वाला समय बतायेगा ।
जयस पर हमले की यह होगी रणनीति
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हमारे सुत्र बताते है कि बीजेपी – आरएसएस जयस पर हमले ओर उन्हे आदिवासियों से दूर करने की जो रणनीति बना रहे है उनमें प्रमूख रणनीति यह होगी कि ” जयस” को एक इसाई संगठन ओर उसके पदाधिकारियों को ईसाई संगठनों द्वारा पोषित होना प्रचारित किया जाये ओर इससे जुडे कुछ तथ्य एकत्रित किये जायें । इसके अलावा जो सरकारी अधिकारी जयस को अपने तरीके से ऊर्जा देते हो उनके तबादले पश्चिम मध्यप्रदेश से दूर किये जायें । लेकिन बीजेपी के सामने एक चुनोती यह भी है कि उनकी पार्टी के भी कुछ आदिवासी नेता ” जयस” के प्रति साफ्ट कान॔र रखते है दोलत भावसार प्रकरण मे झाबुआ जिले के तीन आदिवासी विधायकों मे से झाबुआ ओर पेटलावद विधायक द्वारा भी दोलत भावसार के बयान के समथ॔न मे मीडिया मे ना आना यह दर्शाता है कि बीजेपी के लिए अपने एजेंडे को अपने ही आदिवासी विधायको से लागू करवाना आसान नहीं होगा । ओर दूसरा जयस पर बीजेपी ईसाई संगठनों से जुडे होने या कांग्रेस से जुडे होने के सबूत जुटाना आसान नहीं होगा । क्योकि बीजेपी पर भी यह आरोप लग सकता है कि वह आदिवासियों की एकता से विचलित हो गयी है ओर अन॔गल बयानबाज़ी कर रही है ओर ऐसे मे बयानबाज़ी अगर उल्टी पड गयी तो बीजेपी का मिशन 2018 खटाई मे पड सकता है ।