झाबुआ, हमारे प्रतिनिधिः भगवान महावीर ने पांच सिद्धांत बताये थे जिसको अंगीकार करके मानव इह लोक एवं भव सागर दोनों को पार कर सकता है। महावीर ने अहिंसा, सत्य, अचैर्य, ब्रह्मचर्य एवं अपरिग्रह के पंच सिद्धांतों में अहिंसा सबसे प्रमुख एवं महत्वपूर्ण सिद्धांत है और अहिंसा के पालन के लिए ही अन्य चार सिद्धांतों को अपनाया जाता है। दिगंबर जैन संत महावीर स्वामी के इसी सिद्धांत के पालन में पूर्णतः अहिंसा का पालन करने के लिये तन के वस्त्रों का भी त्याग कर देते है ताकि वस्त्रों को पहनने आदि मे किसी भी प्रकार के जीव की हिंसा नही हो। दिगम्बर साधु अपना जीवन केवल इश प्रार्थना एवं चिंतन में ही व्यतित करता है तथा जन-जन के कल्याण की कामना करता है। अहिंसा का पालन करते हुए वह सत्पथ के लिए मार्गदर्शन करता हुआ मोक्ष को साधता है। भगवान महावीर कहते है कि पाप से घृणा करो पापी से घृणा नही करना चाहिए। वही पापी जब पापों का परित्याग कर देता है तो वह भी परमात्मा में विलीन होने का सामर्थ्य रखता है।
उक्त बात दिगंबर जैन मुनि आदित्यसागर जी मसा ने शनिवार को नेहरू मार्ग स्थित केट एडवोकेट राजेन्द्र पंचोली के निवास पर आहार चर्या के लिये पधारते वक्त कहीं। मुनि श्री ने कहा कि भगवान श्रीराम ने भी रावण से यही बात कही थी। माता सीता का अपहरण किये जाने पर उसे सीता को वापस लौटा देने का अनुरोधपूर्वक बात कही थी, ताकि उसके पापों का प्रायश्चित त हो सकें किन्तु अभिमानी रावण ने श्रीराम की एक भी बात नही सुनी और अन्ततः उसने अपने पूरे कुल का ही विनास कर अपने जीवन को कलंकित कर अधोगति की ओर गमन कर लिया। मुनिश्री ने कहा कि महावीर के सिद्धांतों को अपने जीवन में जितना बन सकें आत्मसात करना ही चाहिए। अजर अमर आत्मा स्वर्ग एवं मोक्ष एवं सुख के धाम में पहुंचाने का प्रयत्न करना चाहिए।
मुनि श्री आदित्य सागर ने युवा पीढी मे आ रही संस्कारों की कमी के बारे में बेवाब तरीके से बताया कि आज के समय में एक बच्चा होने से माता पिता उसे जरूरत से ज्यादा लाड प्यार देकर उसकी हर इच्छा की पूर्ति करते हैं जिससे वह बच्चा गलत रास्तों पर चलने लग जाता है और अन्ततः वह अपने मां बाप के लिए भी कुछ नहीं सोचता है। इस बारे में उनका कहना कि हर मां बाप को अपने बच्चों को लाड प्यार के साथ ही अच्छे संस्कार भी देना चाहिए। मुनि ने आगे कहा कि पाश्चात्य संस्कृति की शिक्षा को ग्रहण करने में कोई आपत्ति नही है किन्तु शिक्षा प्राप्त करने के साथ ही अपनी संस्कृति को कभी भी नही त्यागना चाहिए अन्यथा पाश्चात्य संस्कृति हमारी पूरातन संस्कृति को पथभ्रष्ट कर सकती है।
एक प्रश्न के उत्तर में उन्होंने टेक्नालॉजी को जनहित की बताते हुए कहा कि टीवी, इंटरनेट, सोशल मीडिया सभी वैज्ञानिक आविष्कार अच्छे उदेश्य से बनाये गये है, किन्तु इसका इन दिनों काफी दुरूपयोग ही हो रहा है तथा युवा पीढी इस सोशल मीडिया एवं टीवी संस्कृति के उजले पक्ष की बजाय काले पक्ष को ही अधिक अंगीकार कर रही है । टेलीविजन ऐसे माहौल मे टेलीविषम बन चुका है। रक्षक ही अब भक्षक बन गए। नवयवुक इसका गलत उपयोग करके स्वयं प्रेम, आचरणविहीनता एवं करप्शन के रूप मे उसका उपयोग कर रहे हैं। ऐसा उपयोग युवा पीढी नहीं करे यही मेरा उनसे आग्रह है और अहिंसा के सिद्धांत को अपनाएंगे तो निश्चित ही उनके जीवन मे सकारात्मक बदलाव आएगा।
शनिवार को मुनिश्री ने राजेन्द्र पंचोली के निवास पर आहार चर्या की उनकी विधि विधान से महिलाओं ने आरती उतारी एवं आहार चर्या करवाई। इस अवसर पर निर्मला राजेन्द्र पंचोली, पदमा मिंडा, सरोज मिंडा, बेबीराजा, भावना जैन, बालाशाह, पुष्पा शाह, नूतन सोनटके, प्रफुल्लवति शाह एवं प्रभा जैन सहित बड़ी संख्या में समाज की महिलाओं ने मुनिश्री की वंदना आरती की।
मुनि के साथ संबस्थ मुनी निर्भय सागर जी भी उनकी यात्रा में साथ है। मुनिश्री ने शनिवार को दोपहर 1-30 बजे झाबुआ से रानापुर के लिए विहार किया। दिगंबर समाज से बडी संख्या में श्रावक श्राविकाओं ने मुनि श्री आदित्यसागर जी को बिदाई दी।