प्रवेशोत्सव के दूसरे दिन भी नहीं खुले स्कूलों के ताले

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झाबुआ लाइव के लिए पेटलावद से हरीश राठौड़ की रिपोर्ट-
नवीन शिक्षा सत्र प्रारंभ तो हो गया किंतु समस्याएं पुरानी बरकरार है। कहीं शिक्षकों की कमी तो कहीं बच्चों की कमी,तो कहीं बच्चे आ रहे है तो शिक्षक नदारद है। पूरे क्षेत्र में सैकड़ो शालाएं शिक्षक विहीन है। प्रवेशोत्सव के दूसरे दिन ही शालाओं के ताले नहीं खुल रहे है।
रिजल्ट से ले सबक-
वर्ष 2016-17 का रिजल्ट देखा जाए तो हाई स्कूल में पेटलावद क्षेत्र का कुल परीक्षा परिणाम 40 प्रतिशत ही रहा है जिसमें 19 हाईस्कूल में से 9 हाईस्कूल तो 30 प्रतिशत भी परिणाम नहीं दे पाई है जिसमें हाईस्कूल कोदली तो मात्र 9 प्रतिशत ही परीक्षा परिणाम दे पाई है। वहीं देवली का 13 प्रतिशत परीक्षा परिणाम रहा। आखिर इन सब स्थितियों के चलते हम शिक्षा के क्षेत्र में झाबुआ जिले को किस स्थिति में पाएंगे? कबा 8 वीं तक तो बच्चों को बिना रोक पास किया जा रहा है और कक्षा 10 वीं के बाद रिजल्ट का प्रतिशत बिगड़ता जा रहा है.
शिक्षकों की कमी.
पूरे क्षेत्र में संचालित 11 हायर सेंकडरी,19 हाईस्कूल,105 माध्यमीक शाला और 445 प्राथमिक शालाओं में हर स्तर पर शिक्षकों की कमी है. हायर सेंकडरी और हाईस्कूल में तो 40 प्रतिशत शिक्षक भी नहीं है जिस कारण अतिथि शिक्षकों और शिक्षकों को इधर उधर कर शिक्षा का कार्य चलाया जा रहा है जिस कारण ही हाईस्कूल का परिणाम 40 प्रतिशत ही रहा है। वहीं माध्यमिक व प्राथमिक शाला में भी लगभग 350 शिक्षकों की कमी है. जिस कारण कई विद्यालय तो खुल ही नहीं पाए है यदि खुले भी है तो केवल औपचारिकता के लिए खुले है.
शिक्षक होते हुए स्कूल बंद-
वहीं विडंबना यह भी है कि कई स्थानों पर शिक्षक होते हुए भी स्कूल नहीं खुल पा रहे है जिसका एक उदाहरण आज दिनांक 16 जून को देखा जा सकता है। प्रवेशोत्सव के दूसरे दिन ही माध्यमिक विद्यालय उन्नई में ताले ही नहीं खुल पाए है. जबकी यहां तीन शिक्षक पदस्थ है। प्रधानाध्यापक रमेश सिंगाड़ से फोन पर चर्चा की गई तो उनका कहना है मै मिटिंग में झाबुआ आया हुआ हूं। इस संबंध में जब सीएससी केएस नायक से चर्चा की गई तो उनका कहना है जो शिक्षक उपस्थित नहीं है उनका एक दिन का वेतन कांटा जाएगा. आखिर जवाबदार ही अपनी जवाबदारी नहीं समझ रहा है तो बच्चों का भविष्य क्या होगा। इसके साथ ही दो दिनों से बच्चों को मध्यान्ह भोजन भी नहीं मिल पा रहा है।
बीईओ के पास वाहन ही नहीं.
विकासखंड शिक्षा अधिकारी के पास क्षेत्र में मानिटरिंग करने के लिए कोई वाहन सुविधा ही नहीं है न कोई फंड है यदि उन्हें किसी स्कूल की जांच करना है तो उसके लिए स्वयं के खर्चे से जाना है। सरकार द्वारा कोई सुविधा नहीं दी गई है, जिस कारण अधिकारी भी कितनी बार जांच करने जाएगा या पाता होगा। आखिर शासन बिना सुविधा का काम कैसे लेगा।

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