कैसे बनेगी कैशलेस इकोनॉमी, जनधन के महज 3 फीसदी ही एटीएम चालू, इस्तेमाल सिफर

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झाबुआ लाइव के लिए झाबुआ से दिनेश वर्मा की एक्सक्लूसिव रिपोर्ट-
नोटबंदी के बाद मोदी सरकार देशवासियों को कैशलेस इकोनामी अपनाने की अपील करती दिखाई दे रही है लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या ग्रामीण भारत और खुद सरकारी बैंकिंग तंत्र इसके लिए तैयार है? यह सवाल इसलिए खड़ा हो रहा है, क्योंकि कैशलेस इकोनोमी की और बढऩे के सरकारी प्रयासों ओर अपीलों के बीच जब ‘झाबुआ लाइव’ ने मध्यप्रदेश के आदिवासी बहुल झाबुआ जिले में मोदी सरकार की महत्वाकांक्षी जन-धन योजना के एटीएम कम-डेबिट कार्ड किसान क्रेडिट यानी केसीसी कार्ड के इस्तेमाल की पड़ताल की तो यह हकीकत बैंकिंग सिस्टम की पोल खोलती नजर आई।
जन धन के सिर्फ 33 फीसदी खाताधारकों को एटीएम मिले-
जन धन योजना के जरिए खुद मोदी सरकार कितनी भी अपनी पीठ थपथपा ले लेकिन हकीकत जमीन पर कुछ और नजर आ रही है। झाबुआ के लीड बैंक मैनेजर अरविंद कुमार द्वारा ‘झाबुआ लाइव’ को जो अधिकृत आंकड़ा दिया गया है उसके अनुसार 86 फीसदी आदिवासी बहुल झाबुआ जिलेमें जन-धन योजना के अंतर्गत 1 लाख 70 हजार 847 खाते खोले गए और सभी खाताधारकों को बैंकों की और से एटीएम कम-डेबिट कार्ड इश्यू भी कर दिए गए। मगर वे स्वीकार करते है कुछ कारणों से दो साल में महज 50 हजार कार्ड ही वितरित किए जा सके और उनमें से भी महज 5 हजार एटीएम ही इस्तेमाल में लाये जा रहे हैं बाकी इसलिए खाताधारको के यहां डंप पड़े है क्योंकि अशिक्षा के अभाव में उन्हें इसका इस्तेमाल करना नहीं आता। इस तरह कुल जन धन खातों का महज 3 फीसदी एटीएम ही चलन में है सवाल उठता है कि ऐसे में पीएम मोदी के सपनों की कैश-लेस इकोनामी कैसै बनेंगी? झाबुआ की कालीबाई-कमतुबाई भी जन धन खाताधारको मे शामिल है उन्हें जब हमने पूछा कि आपका एटीएम कार्ड का आजतक कोई इस्तेमाल हुआ तो दोनों का कहना था साहब हमें सिर्फ पासबुक मिली है, एटीएम क्या होता है हमें नहीं पता?
एटीएम के इस्तेमाल का प्रतिशत शून्य-
जन धन योजना मे तो 33 फीसटदी कार्ड बंटे बाकी इश्यू होने के बाद ही वितरित नहीं हुए लेकिन सालों से चल रहे केसीसी कार्ड हाल तो और भी बदतर है। दरअसल झाबुआ जिले की कुल 65 बैंक शाखाओं से 84 हजार 832 किसानों को किसान क्रेडिट कार्ड जिसे केसीसी कार्ड कहा जाता है जो किसानों के लिए एटीएम की तरह ही काम करता है जारी किये थे लेकिन सहकारी बैंकों के पास तकनीक न होने से 50 हजार 143 किसानों को केसीसी कार्ड की जगह एक सामान्य पेपर का डायरीनुमा या कहें पासबुक नुमा एक कार्ड दे दिया गया है, जबकि अन्य बैंको ने झाबुआ जिल में 34 हजार 689 केसीसी किसानों को दिये है मगर आलम यह है कि एक भी केसीसी से रुपये का आहरण या उसके जरिए कैशलैस खरीदी नहीं की गयी है ।
बड़ा सवाल क्या है सरकार की तैयारी?
जन धन योजना के खाताधारको के एटीएम और केसीसी के इस्तेमाल का प्रतिशत आपने देख लिया, लेकिन बड़ा सवाल है कि खुद सरकार तो हर रोज संसद से लेकर सभाओं मे ओर प्रेस कॉन्फ्रेंस से लेकर सोशल मीडिया में कैशलैस इकोनामी अपनाने की बात कर रही है लेकिन इसे लागू करने के लिए सरकार का होमवर्क क्या है यह बड़ा सवाल है? क्योंकि जन धन के 67 फीसदी एटीएम बंटे नहीं है और केसीसी कार्ड का आलम यह है कि सहकारी बैंके तक इसकी तकनीक का इस्तेमाल करने के काबिल नहीं है 50 हजार 143 किसानों को अब तक वे कार्ड की जगह केसीसी डायरी पत्रक दे रहे हैं और जिन 34 हजार 689 किसानों के पास केसीसी कार्ड है भी उन्होंने सालों से उनका इस्तेमाल क्यों नहीं किया? जाहिर सी बात है उनके मन में डर है अशिक्षा भी है। माधोपुरा गांव की मधुबाई कहती है कि हमने पिछले साल जन-धन योजना का खाता खुलवाया था पासबुक और एटीएम भी मिला था मगर ऐसा ही रखा हुआ है हमने एक बार भी इस्तेमाल नहीं किया क्योंकि हमें ऑनलाइन ठगी का डर लगा रहता है। इसी गांव के सोमला कहते है उनको भी जन-धन योजना में पासबुक और एटीएम मिला है हमको चलाना नहीं आता और दूसरों को ले जाएंगे इस्तेमाल करने तो ठगी का शिकार हो सकते है इसलिए हम तो नकदी के पक्ष में है ठगी हो गई हमारे साथ तो बैंक तो हाथ खड़े कर देगी तो हम क्या करेंगे? इसी तरह केसीसी से वंचित सहकारी बैंक से जुड़े समोई गांव के किसान धन्ना परमार कहते है कि हम अनपढ़ लोग है कार्ड वगैरह हमारे बस की बात नहीं है इसलिए बैंक की पासबुक ही हमारे लिए बेहतर है।
कैशलैस इकोनामी पर राजनीति भी जोरों पर-
झाबुआ जैसे आदिवासी अंचल जहां 86 फीसदी आदिवासी आबादी है और शिक्षा का प्रतिशत 39 फीसदी है, वहां कैशलेस इकोनामी कैसे संभव है यह कहना है इलाके के कांग्रेस सांसद कांतिलाल भूरिया का। भूरिया आरोप लगाते हुए कहते है कि मोदी सरकार चला रहे है या कोई निजी कंपनी? क्योंकि खुद जन धन योजना की वाहवाही लूट रहे है और झाबुआ मे खाताधारक आदिवासियों को एटीएम तक नहीं बंटे और आनलाइन ठगी के मामलों मे पुलिस और सरकार की तकनीकी एजेंसियां सही जांच करने मे असफल है 10 फीसदी मामले भी पकड़ नहीं पाती तो हमारे आदिवासी भाई अगर कैशलेस इकोनामी के दबाव मे ठगी का शिकार हो गये तो जिम्मेदारी कौन लेगा? भूरिया इस कैशलैस इकोनामी के सरकारी प्रयासो को जमीनी ना मानते हुए खारिज कहते हुए कहते है कि मोदी सरकार खुद असमंजस का शिकार है। वहीं बीजेपी पीएम मोदी के साथ खड़ी दिखाई देती है, भाजपा के जिलाध्यक्ष दौलत भावसार कहते है कि जन-धन के माध्यम से बीजेपी ने ही सब कुछ किया है अब कालाधन कांग्रेसियों का खतरे में है तो कैशलेस इकोनामी और मोदी सरकार की नोटबंदी के फैसले का विरोध कर रहे है मगर जनता सब समझती है और कैसलैस अपनाने के लिए खुद को तैयार कर रही है ।
अफसर बोले, जल्दी ही बांटेंगे कार्ड ओर चलाएंगे कैशलेस के लिए अभियान
जन-धन खातों के महज 33 फीसदी एटीएम वितरित होने के चलते बैकफुट पर आई सरकार अब अफसरों के जरिए दावा कर रही है कि वह जल्दी ही 100 फीसदी एटीएम कार्ड न सिर्फ बांटेंगे बल्कि स्वैप मशीन और ऑनलाइन खरीदी का प्रशिक्षण भी देंगे। झाबुआ के लीड बैंक मैनेजर अरविंद कुमार कहते है कि आरबीआई के साथ भारत सरकार के निर्देश प्राप्त हो चुके है जल्दी ही अभियान चलाया जाएगा। झाबुआ कलेक्टर आशीष सक्सेना का कहना है कि हम कैशलेस इकोनॉमी की और बढऩे के लिए आम लोगों ओर व्यापारियों को धीरे धीरे प्रेरित करेंगे ताकी बदलाव बिना किसी तकलीफ के आ जाए, और बैंकिंग सुविधाओं से लोगों को जुडक़र अधिक से अधिक लेनदेन ही हमारा ध्येय है ।

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