कष्ट पहुंचाकर क्षमा मांग लेना आसान, खुद चोटकर खाकर माफ करना कठिन : पंडित शास्त्री

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4झाबुआ। गंभीरता और मौन दो ऐसे मंत्र है, जिनके द्वारा हर समस्या का सामना किया जा सकता है। क्रोध पहले स्वयं की हानि करता है, फिर दूसरों की। सदा प्रसन्न रहना ही हमारे शत्रुओं के लिए सबसे बड़ी सजा है। किसी को कष्ट पहुंचा कर क्षमा मांग लेना बहुत आसान है, लेकिन खुद चोट खाकर किसी को माफ कर पाना बहुत कठिन है। उक्त विचार श्रीमद भागवत कथा के तीसरे दिन व्यास पीठ से पूज्य पण्डित संतोष शास्त्री ने उपस्थित श्रद्धालुओं से व्यक्त किए। पैलेस गार्डन पर आयोजित कक्षा में पण्डित शास्त्री ने कहा कि हमारा व्यक्तित्व हमें दूसरों से अलग बना सकता है, मगर हमारा अंहकार हमें दूसरों से अलग कर देता है। जीवन में अधिक रिश्ते होना महत्वपूर्ण नही मगर रिश्तों में अधिक जीवन होना जरूरी है। अच्छे लोगों का संपर्क मिलना हमारा भाग्य है, मगर उन्हे संभालकर रखना हमारा हुनर है। आपकी दृष्टि भली होगी तो आपको दुुनिया अच्छी लगेगी, यदि आपकी जुबान अच्छी होगी तो आप दुनिया को अच्छे लगेंगे। यदि आप सही है तो गुस्सा करने जरूरत नहीं और यदि आप गलत है तो गुस्सा करने का आपको अधिकार नहीं। उन्होंने आगे कहा कि जीवन में चुनौतियों को स्वीकार करना चाहिए तो समर्पण को खर्च करना होगा। विश्वास चाहिए तो निष्ठा खर्च करनी होगी, साथ चाहिए तो समय खर्च करना होगा, जो भाग्य में है तो कहीं से भी आएगा। पानी मर्यादा तोड़े तो विनाश और वाणी मर्यादा तोडे तो सर्वनाश, जो आप पर विश्वास करे उससे झूठ मत बोलो और जो आपसे झूठ बोले उस पर विश्वास मत करों।
‘न’ का भाव होते ही चाह-इच्छा खत्म
भागवत के श्लोकों की व्याख्या करते हुए पण्डित शास्त्री ने कहा कि दम्भ का दशक होता है मगर सत्य की तो शताब्दियां होती है। कुंती स्तुति में बताया कि परिस्थितियों को सुधारने का आग्रह छोडक़र स्वीकारने का भाव आरंभ कर देना चाहिए। उन्होंने कथा में कहा कि भौतिक विज्ञान पहले जानता है फिर मानता है किन्तु आध्यात्म विज्ञान पहले मानता है फिर जानता है। नमन की व्याख्या करते हुए उन्होंने बताया कि ‘न’ मन की भावना पैदा होते ही इच्छा चाह, कामना नही रही। संकल्प का अर्थ ही ईश्वर प्रेरित सभी कार्य है। उन्होंने कहा कि मनुष्य को मृत्यु के समय तक संसार में प्रवृत रहना चाहिए यहां तक कि श्मशान में भी प्रवृत रहना चाहिए।
शास्त्री ने भागवत कथा के तीसरे दिन शिव विवाह का विषद वर्णन किया। उन्होंने कहा कि जो परमात्मा से विमुख रहता है वह केवल शव को ही प्राप्त करता है शिव को हासिल करने के लिए श्रद्धा भक्ति एवं समर्पण के साथ ही आस्था का होना भी जरूरी है। इस अवसर पर संगीतमय कथा के साथ शिव पार्वती विवाह की जीवट झांकी ने सभी का मन मोह लिया। भागवत कथा प्रतिदिन दोपहर 12 बजे से सायंकल 4 बजे तक चल रही है। वही रात्रि में पण्डित अनिरुद्ध मुरारी की संगीतमय नानी बाई को मायरों का प्रसंग सुनने के लिए भी श्रद्धालुओं का जमावडा हो रहा है।

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