जितनी भारी लगती है शेषनाग को धरती, उतनी भारी लगती पिता को बेटे की अर्थी

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5 झाबुआ-मंगलवार की रात को राजगढ़ नाका स्थित गरबा ग्राउंड पर विराट अखिल भारतीय कवि सम्मेलन का अनूठा आयोजन किया गया। इस अवसर पर अंचल के साहित्य सृजनकर्ताओं का प्रतीक चिन्ह देकर सम्मान किया गया। सम्मानित किए गए साहित्यकारों में पं. गणेश उपाध्याय, डॉ. केके त्रिवेदी, वीरेन्द्र मोदी, डॉ. जय बैरागी, डॉ. रामशंकर चंचल, शरत शास्त्री, बाबूभाई कव्वाल, मांगीलाल सोलंकी, गौरीशंकर दुबे, मनोज जैन, राजेन्द्र सोनी जैसे वरिष्ठ हस्ताक्षरो के साथ ही उभरते हुए साहित्य साधक कुलदीप पंवार, भारती सोनी, स्मृति आचार्य, आयशा कुरैशी, प्रवीण सोनी, कीर्ति देवल एवं शीला सिसौदिया भी सम्मिलित थे। कवि सम्मेलन के सूत्रधार हास्य रस के सुप्रसिद्ध कवि संदीप शर्मा ने कवि सम्मेलन का आगाज दिल्ली से पधारी कवियित्री समीक्षासिंह जादौन के सरस्वती वंदना से करवाते हुए कहा कि मुस्कराती जिंदगानी चाहिये, खून मे ऐसी रवानी चाहिये, सारी दुनिया हो सकती है अपनी, बस सिर्फ मां की मेहरबानी चाहिए। समीक्षासिंह ने मां शारदे मां शारदे, इस जगत को तुम ज्ञान दो, ऐसी है मेरी कामना सबका कल्याण हो, विश्व के संताप को सुख शांति का वरदान हो मस्जिद से सुर आराधना और मंदिर से अजान दो ने काफी तालियां बटोरी। स्थानीय कवि एवं ख्याति प्राप्त कवि हिमांशु भावसार ने अपनी रचना बेटिया हमारी देती शुभ कर्मफल, बेटियों को ऐसे न कोख मे मिटाइए को काफी दाद मिली। हास्य एवं व्यग के कवि मुंलेगी से पधारे पंकज फनकार ने अपनी रचना ‘मोबाईल जब से प्यार का माई बाप हो गया, प्यार-प्यार न रहा एक पाप हो गया ने काफी गुदगुदाया वही उनकी रचनाÓ कौन है भगवान नही जानता पंकज, पर मां बाप को कभी सताया नहीÓ से पूरा पाण्डाल तालियों की गडगडाहट से आच्छादित हो गया। महेश्वर से पधारे वीर रस के कवि नरेन्द्र अटल ने अपने अंदाज में कही कविता वीर शिवा और राणा की जवानी याद आयेगी, युद्ध में कूद पडी झांसी की रानी याद आएगी तथा सच सरे आम कहने की आदत न गई इसीलिए काले बादलों में बगावत हो गई को काफी पसंद किया गया। उनकी रचना जब सरहद ने दी आवाज उसी पल दौड आया हूं, बचा कर सरजमी में शहीदी ओढ़ आया हूं सुनते ही पूरा माहौल रोमांचित हो उठा। जोबट के पैरोडी कार फिरोज सागर ने अपनी पैरोडियों से खूब गुदगुदाया उनकी पैरोडी ‘देश को जिसने किया चकाचक,सबकों छोड कमान, ऐसा झटका दिया विपक्ष को जनम जनम न भुलाय देखो चाय बेचने वाला, बन गया भारत का रखवाला एवं अन्य पैरोडी माय नेम इज एलके अडवानी एवं तुु कितनी ऐसी है, तु कितनी वैसी है, कैसी कैसी है राधे मां को खूब पसंद किया गया और हास्य का माहौल पैदा हो गया। दिल्ली से पधारी समीक्षा जादौन ने अपने बेहतरीन शेर एवं गजलों से श्रोताओं को काफी गुदगुदाया उनकी रचना टूट कर तेरी मुहब्बत में संभल सकती हूं, जि पर आ जाउं तो सागर भी निगल सकती हूं । उनकी रचना मारे चर्चे जमाने भर में कुछ इस तरह मशहूर होंगे, कभी दुबारा जहां मे आा हमारे किस्से जवां मिलेगें तथा घर में रांगोली, राखी का त्योहार बेटिया, है दर्द का सागर तो कभी नदियों की धारा है बेटियाÓ को काफी पसंद किया गया। सूत्रधार संदीप शर्मा की मां पर रचना बहुत रोते है पर दामन हमारा नम नही होता, इन आंखों के बसरने का कोई मौसम नही होता, मै अपने दुश्मनों के बीच महफुज रहता हूं, मां की दुआओं का असर कभी कम नही होता पर काफी तालियां बजी। उनकी हास्य रचना हम उसके प्यार में सितारों की चादर तानते रह गये, वो रामलाल के साथ भाग गई हम चाय छानते रह गये। पाकिस्तान का इतना तनाव मत पालो तथा अग्नि मिसाइल परमाण बम, भारत न रहे किसी से कम, एक कदम आगे बढ़ाओ अमेरिका पर बम फेंक दो को काफी पसंद किया गया एवं एक बदतमीज आवाज उठी दिल्ली से कहा गया भगवा आतंकवाद को भी लोगों ने खूब सराहा। खरगौन से पधारे विश्व ख्याति प्राप्त कवि प्रो.शंभूसिंह मनहर ने अपनी वीर रस की रचना ‘अंधेरे हाथ मे लेकर दीये हर सांझ मिलते है, जहां पर पांव पडता है वही पर फूल खिलते है, दिया आशीष मैया ने हथेली पर शीश रख कर के, अगर लौटू तो घर तिरंगे मे लिपट कर लौटूं कभी बंशी बजा कर देखना सब जान जाओंगे, तिलक माथे पे लगा कर देखना सब जान जाओगे, बडा सीधा सरल है देश मेरा जानना है तो कभी गंगा नहा कर देखना सब जान जाओंगे, को खूब पसंद किया गया। कवि सम्मेलन के अन्तिम कवि के रूप मे अलवर राजस्थान से पधारे वीर रस के विश्व ख्याति प्राप्त कवि विनीत चौहान ने अपनी एक से बढ कर एक काव्य रचनाओं से श्रोताओ को रात्रि 3 बजे तक बांधा रखा उनकी रचना ‘जितनी भारी लगती है ये शेष नाग को धरती, उतनी भारी लगी पिता को खुद के बेटे की अर्थीÓ ने तो पूरे सदन को तालियों से सराबोर कर दिया । उनकी रचना यूं तो तुम्हारे इश्क पर जान भी कुर्बान है, मांगले वतन तो अपना इश्क भी कुर्बान है को काफी पसंद किया गया।

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