भारतीय परम्परा में एक आदर्श नाम है मर्यादा पुरूषोत्तम -मुनिश्री पृथ्वीराज जसोल

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झाबुआ लाइव के लिए पेटलावद से हरीश राठौड़ की रिपोर्ट-
दुनिया में सर्वोपरि विजय है आत्म विजय. जिसने अपनी आत्मा पर विजय प्राप्त कर ली, उसके लिए कोई विजय प्राएंत करना शेष नहीं रहती. दशहरे के दिन लङ्क्षग बुराई के प्रतीक रूप में रावण का दहन करते है। वस्तुत:रावण का दहन करने का उसी को अधिकार है जो राम हो, किन्तु जो रावण का दहन करते है उनके भीत कितने रावण बैठे है. जब तक भीतर के रावण को समाप्त नहीं करते है तब तक पुतले के दहन से कुछ नहीं। उक्त विचार आचार्य महाश्रमण जी के सुशिष्य मुनिश्री पृथ्वीराज जसोल ने विजय दशमी पर अपने विशेष प्रवचन में धर्मसभा से कहे। मुनिश्री चेतन्य कुमार अमन ने कहा भारतीय परम्परा में एक आदर्श नाम है- श्रीराम-मर्यादा पुरूषोत्तम राम का नाम पूरा विश्व आदर के साथ लेता है, किन्तु नाम के साथ भावना निष्काम होनी चाहिए. जब तक भावनाएं दूषित रहेगी तब तक केवल दशहरा मनाने की कोई सार्थकता नहीं हो सकेगी। मुनि अतुल कुमार ने कहा विषय,कषाय औश्र अविश्वास रूपी रावण पर विजय पाने के लिए राम बनना होगा. रावण के मै यानी अहंकार को खत्म करना होगा, राम का जीवन हर स्थिति में शांत था. इस मउके पर सभी समाजजन उपस्थित थे। 14 अक्टूम्बर को भक्तांबर का विशेष अनुष्ठान और 16 अक्टूम्बर को समण संस्कृति संकाय लाडनू राजस्थान द्वारा आयोजित जैन विद्या की परीक्षा का आयोजन डालिम विहार में दोपहर 1 बजे होगा। पेटलावद से 120 छात्र छात्राओं ने फार्म भरे है जिनकों समय पर उपस्थित होना है.

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