श्रीमद् भागवत कथा में उमड़ा जनसैलाब
झाबुआ। श्रीमद् भागवत कथा आयोजन समिति द्वारा आयोजित श्रीमद् भागवत कथा का शुभारंभ रात्रि 7 बजे से स्थानीय पैलेस गार्डन में हुआ। कथा प्रारंभ करने से पूर्व स्थानीय विवेकानंद कॉलोनी में निर्माणाधीन श्री कृष्ण प्रणामी मंदिर से भव्य कलशयात्रा शहर के प्रमुख मार्गों से होती हुई कथा के आयोजन स्थल पर पहुंची। जहां पर विश्व विख्यात कथाकार भागवत मर्मज्ञ परम हंस पूज्य 108 टहल किशोर महाराज ने श्रीकृष्ण प्रणामी संप्रदाय के विधि-विधान के अनुसार तारतम सागर पर विराजित पुलजम स्वरूप स्वामी की विधिपूर्वक पूजा-अर्चना की। साथ ही राधा-कृष्ण के प्रतीक मोर-मुकुट पर पुष्पहार अर्पण किए। पुरातन धर्म परंपरा का वर्णन करते हुए पूज्यश्रीजी ने बताया कि सनातन धर्म में दो प्रकार की परंपराएं है, पहली वैदिक और दूसरी पौराणिक। भागवत कथा पौराणिक परंपरा की कथा के अंतर्गत आती है। भागवत कथा में मूल रूप से पूरणानंद भगवान श्री कृष्ण का वर्णन है, क्योंकि कृष्णजी ही हमारी आत्मा के मालिक है।
मनुष्य को विनयशील एवं नमनशील होना चाहिए
भागवत कथा की प्रथम स्तुति का वर्णन करते हुए आपने कहा कि भगवान सच्चीनांद है अर्थात वह शक्ति, सत्य, चेतन और आनंद का स्वरूप है। सारा विश्व उन्हीं की कृति है और जो हमारे सभी संतापों को समाप्त कर देता है, हमारे दुखों को दूर कर देता है, वह अजर, अमर और शास्वत है। वहीं परमात्मा है और वहीं श्री कृष्ण है। उन्होंने कि प्रत्येक मनुष्य को हमेशा विनयशील एवं नमनशील होना चाहिए, जो व्यक्ति अपने से बड़े को सम्मान देता है, प्रणाम करता है, उसे जीवन में चार बहुमूल्य गुण स्वतं: ही प्राप्त हो जाते है। प्रणाम करने से आयु, विद्या, बल एवं यष में वृद्धि होती है तथा हमारे अंर्तमन में आत्मविश्वास तथा श्रद्धा भाव की स्वत: बढ़ोत्तरी हो जाती है तथा प्रणाम के प्रभाव से हम पर आए हुए संकट दूर हो जाते है।