शैलेष कनेश, मथवाड
अलीराजपुर जिले के ग्राम मथवाड़ में शनिवार को विश्व आदिवासी दिवस का आयोजन पारंपरिक गरिमा, उत्साह और सामाजिक जागरूकता के साथ संपन्न हुआ। इस अवसर पर मथवाड़ और आसपास के क्षेत्रों से बड़ी संख्या में आदिवासी समुदाय के लोग एकत्र हुए, जिन्होंने अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत, गौरवशाली इतिहास और सामाजिक एकजुटता का उत्सव मनाया। यह आयोजन न केवल आदिवासी संस्कृति का प्रदर्शन था, बल्कि सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ जागरूकता और शिक्षा के महत्व को रेखांकित करने वाला एक मंच भी साबित हुआ।
आयोजन की शुरुआत आदिवासी देवी देवता जैसे रानी काजल और मोतिया भील व आदिवासी क्रांतिकारियों की स्मृति में पारंपरिक पूजा-अर्चना के साथ हुई। इस दौरान गायना (पारंपरिक गायन) ने वातावरण को पूरी तरह सांस्कृतिक रंग में रंग दिया। गायना के माध्यम से आदिवासी वीरता, बलिदान और परंपराओं का वर्णन किया गया, जिसने उपस्थित लोगों में गर्व और उत्साह का संचार किया। यह गायन आदिवासी समुदाय की सांस्कृतिक गहराई और उनके ऐतिहासिक संघर्षों का प्रतीक बना।
पूजा के बाद मुख्य मंच पर आयोजित सभा में क्षेत्र के पटेल, सरपंच, पुजारा, समाजसेवी और वरिष्ठ नागरिकों ने उपस्थित जनसमूह को संबोधित किया। वक्ताओं ने विश्व आदिवासी दिवस की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालते हुए इसे आदिवासी पहचान, संस्कृति और परंपराओं को जीवित रखने का एक महत्वपूर्ण अवसर बताया। उन्होंने कहा कि यह दिवस न केवल आदिवासी समुदाय की एकता और गौरव का प्रतीक है, बल्कि सामाजिक कुरीतियों को समाप्त करने और प्रगतिशील दृष्टिकोण अपनाने का भी आह्वान करता है।
वक्ताओं ने समाज में व्याप्त अंधविश्वास, नशाखोरी, पारिवारिक कलह और अनावश्यक खर्च जैसी कुरीतियों को त्यागने की अपील की। विशेष रूप से शिक्षा पर जोर देते हुए उन्होंने कहा कि केवल शिक्षित समाज ही अपने अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति जागरूक हो सकता है और विकास की मुख्यधारा में शामिल हो सकता है। इसके अलावा, युवाओं में बढ़ती हुड़दंगबाजी, लापरवाह बाइक राइडिंग और नशे की प्रवृत्ति पर चिंता व्यक्त की गई। इन समस्याओं के समाधान के लिए सामुदायिक स्तर पर ठोस और सामूहिक प्रयासों की आवश्यकता पर बल दिया गया।
