खवासा (अर्पित चोपड़ा)□ आज के आधुनिक युग में लोग जहां पाश्चात्य संस्कृति को बढ़ावा दे रहे है वहीं झाबुआ जिले में छोटे छोटे बच्चे अपनी संस्कृति को सुरक्षित करने का सराहनीय प्रयास करते नजर आ रहे है □ अमूमन किसी को गाली देना आमतौर पर झगडे का कारण बन जाता है किन्तु खवासा क्षेत्र के गावों में शाम के समय आदिवासी बच्चों और युवाओं की टोलियां राहगीरों को गलियां देती नजर आ रही है□ राहगीर भी इन गालियों को सुनकर बच्चों और युवाओं को बिन कुछ कहे मुस्करा कर आगे बढ़ रहे है□
दरअसल होलिका दहन से 1 माह पूर्व रोपे जाने वाले होली के डंडे को खड़ा करने से लेकर होलिका दहन तक उस डंडे के आस पास इकट्ठे होकर गालिया गाने का रिवाज बरसों पुराना है □ इस कार्य को पहले अधेड़ उम्र के लोग करते थे जिसमे महिलाऐं और वृद्ध भी जोरशोर से भाग लेते थे□ और ढोल मांदल के साथ फाग गीतों को गाने का आनंद लेते थे□ किन्तु समय परिवर्तन के साथ पुरानी प्रथाओं के प्रचलन में भी परिवर्तन आ गया है□ अब फाग गीत और गालियाँ गाने की इस प्रथा में बच्चे और युवा ही भाग ले रहे है□ आदिवासी बच्चों और युवाओं की ये टोलियां अपने आसपास से गुजरते हुए राहगीरों, वाहन चालकों को फाग गीतों के माध्यम से गालिया देते है□
और नृत्य करते है। जिन्हें गालियाँ सुनाई जाती है वे भी इसका बुरा न मानते हुए मंद मंद मुस्कराहट के साथ अपने गंतव्य की ओर बढ़ जाते है□ फाग गीत और गालिया गाने का यह दौर होलिका दहन तक चलता है□