भागवत ज्ञान गंगा में स्नान करने से ह्दय शुद्ध होता है – शास्त्रीजी
झाबुआ लाइव के लिए पेटलावद से हरीश राठौड़ की रिपोर्ट। गंगा स्नान से केवल शरीर की शुद्धि होती है जबकि भागवत रूपी गंगा में स्नान करने से मन व ह्दय दोनों की शुद्धि होती है। गंगा में स्नान करने जाना चाहिये लेकिन यदि भागवत रूपी गंगा में स्नान करने को मिले तो उसे जरूर करना चाहिये। उक्त उद्गार उद्धार भागवत भूषण आचार्य डॉ देवेन्द्र शास्त्री ने महाकाली तीर्थ धाम जमुनिया में आयोजित भागवत कथा के अंतिम दिन व्यासपीठ से कहे। आचार्यश्री ने कहा कि मनुष्य को जब वस्तुस्थिति कटुता का भान होता है तो वैरा का भाव उत्पन्न होता है। जब जीवन में ऐसी स्थिति निर्मित हो तो मनुष्य समर्पण के साथ प्रभु की भक्ति करनी चाहिये यही भागवत धर्म है। कथा के समापन पर आचार्यश्री का अभिनंदन आयोजन समीति के अध्यक्ष हरिओम पाटीदार, रमेश पाटीदार, पंकज पाटीदार, मानसिंह मेड़ा, महाकाली तीर्थ के पंडा राजूभाई भाभर ने शॉल श्रीफल भेंट कर किया। आभार हरिराम पाटीदार ने माना। बुधवार को पूर्णाहुति के अवसर पर विशाल भंडारे का आयोजन किया गया।