प्रादेशिक सम्मेलन एवं भारतीय साहित्य में सामाजिक समरसता विमर्श कार्यक्रम की रपट

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थांदला। दिनांक 5 फरवरी को हिंदी साहित्य भारती मध्यप्रदेश ने श्री मध्यभारत हिन्दी साहित्य समिति इंदौर में संत रविदास जी की जयंती पर साहित्य में समरसता विषय पर विमर्श के साथ प्रादेशिक सम्मेलन का आयोजन किया। यह पूरा आयोजन ४ सत्रों में आयोजित किया गया ।

प्रथम संगठनात्मक सत्र में हिंदी साहित्य भारती के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ रवींद्र शुक्ल, संगठन महामंत्री डॉ रमा सिंह के साथ मध्य प्रदेश की अध्यक्ष डॉ स्नेह लता श्रीवास्तव, संगठन महामंत्री श्री गोपाल जी माहेश्वरी, महामंत्री नरेंद्र व्यास तथा  प्रांतों के अध्यक्ष महाकौशल के श्री प्रणय श्रीवास्तव  और मध्य भारत के श्री दिनेश बिरथरे तथा बड़ी संख्या में  प्रतिनिधि उपस्थित थे। डॉ शुक्ल ने अपने मार्गदर्शन में कहा कि हमें व्यक्तगत लाभों से उठकर सृजन का ऐसा मार्ग चुनना चाहिए जो भारतीय संस्कृति की पुनः प्रतिष्ठा कर सके, जब तक हम बौद्धिक रूप से आत्मनिर्भर नहीं होंगे,तब तक आत्मनिर्भर भारत की संकल्पना साकार नहीं हो सकती। इसी उद्देश्य से ही हिंदी साहित्य भारती का गठन किया गया है। आपने सभी से हिन्दी साहित्य भारती के एप से जुड़ने और मित्रों को जोड़ने का आग्रह किया।   दोनों प्रांताध्यक्षों ने अपने वृत्त तथा आगामी योजना से सदन को अवगत कराया। मालवा प्रांत के अध्यक्ष की अनुपस्थिति में प्रदेश अध्यक्ष ने मालवा प्रांत का वृत्त प्रस्तुत किया। केन्द्रीय अध्यक्ष महोदय ने मार्च तक सभी जिलों में इकाइयों का गठन कर लेने तथा जून तक प्रांत सम्मेलन आयोजित करने के निर्देश दिए। डॉ रमा सिंह ने भी महामंत्री संगठन के रूप में संगठन कौशल पर चर्चा की।

दूसरा सत्र समरसता विमर्श का आयोजन था,जो संत रविदास और समरसता पर केंद्रित था। इस सत्र के प्रारंभ में कार्यक्रम की संयोजक डॉ स्नेहलता श्रीवास्तव ने विषय प्रवर्तन करते हुए कहा कि समरसता जीवन के हर क्षेत्र में आवश्यक है। आज साहित्य और समरसता दोनों की ही चुनौतियांँ अधिक जटिल हो गई है और इसीलिए आवश्यक है कि हम समरसता के मानदंडों और प्रतिमानों का आधुनिक संदर्भों में मूल्यांकन  करें। आज विचारणीय बिंदु यह है कि हम कैसे समाज को संस्कार रूप में समरसता दे सकते हैं? आज के असुरक्षित वातावरण में सभी देश अपने अपने तरीके से अपना-अपना अभयारण्य खोज रहे हैं ऐसे में हमारे लिए समरसता का महत्व और भी बढ़ जाता है आज कबीर की क्रांति भी मूल्यवान है और तुलसी की शांति भी उतनी ही आवश्यक प्रतीत होती है। साहित्य अकादमी के निदेशक डॉ विकास दवे ने अपने विचार रखते हुए कहा कि समरसता भारतीय संस्कृति की धमनियों में बहता हुआ रक्त है। आज समस्या यह है कि आधुनिक युग में समरसता को जातीय समरसता तक सीमित कर दिया है। सारे पंथ के लोग भारत की मिट्टी को एक मानने लगें यही समरसता है और यही भाव समृद्ध भारत के विकास का मार्ग है।

मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष डॉ राजेशलाल मेहरा ने कहा कि भारत का अर्थ ही है समरस भारत। लोक साहित्य सभी शास्त्रों को  जीवन में उतारने का कार्य करता है। जो साहित्य समरसता न हो,वह साहित्य  ही नहीं है। हमारी लोकोक्तियां चलती फिरती अदालत हैं, ये कभी झूठ नहीं बोलती, उन पर ध्यान दिया जाना चाहिए। अंबेडकर विश्वविद्यालय लखनऊ के कुलाधिपति डॉ प्रकाश बरतूनिया ने कहा कि समरसता हमारे संस्कार में है उसे आचरण में उतारने की आवश्यकता है। गुरुग्रंथ साहिब सामाजिक समरसता का एक बहुत बड़ा ग्रंथ है, जिसमें  सभी संतों की समरस वाणी संकलित हैं। सत्र की अध्यक्षता कर रहे डॉ धर्मेंद्र सरल शर्मा ने श्रीकृष्ण सरल के साहित्य की समरसता से सदन को परिचित कराया।

इस अवसर पर हिन्दी साहित्य भारती मध्यप्रदेश द्वारा प्रकाशित ‘भारतीय साहित्य में सामाजिक समरसता’ शीर्षक संपादित पुस्तक का विमोचन किया गया। भोजनोपरांत  तृतीय सत्र की अध्यक्षता डॉ रवीन्द्र शुक्ल जी ने की। मुख्य वक्ता डॉ मुरलीधर चांदनीवाला ने कहा कि जो सबको साथ में रख कर चले, सबके साथ में रहे वही साहित्य है। वर्तमान समय नवसृजन का समय है – वही जी पाएंगे जो समरसता के भाव को अंगीकार करेंगे।डॉ रवीन्द्र शुक्ल ने अनेक भ्रांतियों का तर्कपूर्ण खंडन करते हुए ओजस्वी अध्यक्षीय उद्बोधन दिया।  अभिनंदन और अलंकरण सत्र में साहित्यकार सर्वश्री डॉ रवींद्र शुक्ल , डॉ विकास दवे और डॉ मुरलीधर चांदनीवाला को साहित्य शिरोमणि सम्मान से अलंकृत किया गया। डॉ जया पाठक थांदला, डॉ कला जोशी इंदौर और डॉ चित्रा जैन उज्जैन को इकाई अध्यक्ष के अति सक्रिय कार्यकाल के लिए ‘साहित्य सेवी सम्मान’ से सम्मानित किया। डॉ जय बैरागी झाबुआ, कर्नर डॉ गिरिजेश सक्सेना भोपाल, श्री घनश्याम मैथिल ‘अमृत’भोपाल,मीरा जैन उज्जैन,श्री अजय जैन विकल्प इंदौर, डॉ मीनू पांडेय भोपाल, श्री अशोक मनवानी भोपाल, डॉ ममता चंद्रशेखर इंदौर, डॉ अर्जुन दास खत्री भोपाल को साहित्य भारती गौरव सम्मान से नवाजा गया।

अतिथि परिचय डॉ गीता दुबे, विजय सिंह चौहान तथा मधुलिका सक्सेना भोपाल ने दिया। डॉ कला जोशी, श्रीमती रश्मि बजाज और श्रीमती रजनी झा ने कार्यक्रम का सुंदर संचालन किया। संगठन महामंत्री गोपाल माहेश्वरी ने आभार माना।

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