साध्वीश्री निखिलशीलाजी ठाणा 4 के सानिध्य में जप तप से मनाया जाएगा प्रवर्तकश्री जिनेंद्रमुनिजी का जन्मदिवस
थांदला। महापुरुषों के विशेष प्रसंग दिवस हर किसी के लिए उत्साह का वातावरण निर्मित कर देते हैं। ऐसा ही प्रसंग प्रवर्तकश्री के जन्म दिवस मनाने का उपस्थित हुआ हैं। आचार्यश्री उमेशमुनिजी के सुशिष्य प्रवर्तक जिनेंद्रमुनिजी की आज्ञानुवर्तिनी साध्वीश्री निखिलशीलाजी, दिव्यशीलाजी, प्रियशीलाजी, दीप्तिजी ठाणा 4 स्थानीय पौषध भवन पर विराजित हैं। साध्वी मंडल के सानिध्य में प्रातः राई प्रतिक्रमण, प्रार्थना, दोपहर में ज्ञान चर्चा, शाम को देवसीय प्रतिक्रमण, कल्याण मंदिर, चौवीसी आदि विविध आराधनाएं हो रही हैं। जिसमें श्रावक श्राविकाएं उत्साहपूर्वक आराधना कर रहे हैं। यहां साध्वी निखिलशीलाजी व साध्वी मंडल के सानिध्य में श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ द्वारा 24 मार्च गुरुवार को प्रवर्तकश्री जिनेन्द्रमुनिजी म.सा. का 63 वां जन्मदिवस जप, तप, त्याग, तपस्या व विविध आराधनाओं के साथ उत्साहपूर्वक मनाया जाएगा।
गुणानुवाद सभा होगी
इस अवसर पर स्थानीय पौषध भवन पर गुरुवार को प्रात: 9 से 10 बजे तक गुणानुवाद सभा का आयोजन होगा। जिसमे साध्वीश्री निखिलशीलाजी व साध्वी मंडल प्रवर्तक जिनेंद्रमुनिजी के जीवन पर विस्तार से प्रकाश डालेंगे। इस प्रसंग पर नवकार महामंत्र के सामूहिक जाप, जिनेंद्र चालीसा पाठ आदि के अलावा विभिन्न आयोजन होंगे। श्रावक श्राविकाएं तीन – तीन सामायिक की आराधना के अलावा विभिन्न तप आराधना भी करेंगे।
गायों को लापसी खिलाएंगे
वहीं अखिल भारतीय श्रीचंदना श्राविका संगठन के डूंगर प्रांत के पदाधिकरियों व सदस्यों द्वारा बामनिया पहुंचकर गौशाला में गायों को गुड़ व लापसी खिलाई जाएगी। यह कार्यक्रम दोपहर 1.30 बजे से आयोजित होगा।
पौषध भवन पर प्रतिदिन होंगे व्याख्यान
प्रवर्तकश्री जिनेंद्रमुनिजी के जन्मदिवस 24 मार्च से लगाकर आचार्यश्री उमेशमुनिजी की पुण्यतिथि दिवस 28 मार्च तक पौषध भवन पर साध्वीश्री निखिलशीलाजी व साध्वी मंडल के प्रतिदिन व्याख्यान होंगे। अधिक से अधिक संख्या में श्रावक श्राविकाएं व बच्चे पौषध भवन पहुंचकर व्याख्यान आदि का लाभ लेवे।
आराधना करने का आह्वान
महापुरुषों के विशेष दिवस प्रसंग पर आराधना का लाभ लेने से वंचित नहीं रहना चाहिए। इसी के चलते प्रवर्तकश्री जिनेंद्रमुनिजी म.सा. के जन्मदिवस पर अधिक से अधिक आराधना करने का श्रीसंघ ने श्रावक श्राविकाओं से आह्वान किया हैं। प्रवर्तकश्री का जन्म राजस्थान प्रदेश के कुशलगढ़ नगर में शीतला सप्तमी के दिन सन् 1959 में हुआ था। आपकी दीक्षा कुशलगढ़ में ही 8 फरवरी 1987 को हुई थी। आपके साथ आपकी बहन ने भी दीक्षा ग्रहण की थी जो अब साध्वीश्री पुण्यशीलाजी म.सा. के नाम से जाने जाते हैं। दीक्षा के बाद संयम का ऐसा रंग चढ़ा कि आराधना, स्वाध्याय में मानो रम गए। गुरु भ्राता एवं गुरु की सेवा करने का कोई भी अवसर नहीं छोड़ा। आपको कई आगम कंठस्थ हैं। इसी के चलते आपको आगम विशारद की उपाधि से भी अलंकृत किया गया।