रामायण के जरिऐ दे रहे है नैतिकता का संदेश

0

IMG-20150509-WA0423 थांदला से झाबुआ लाइव के लिऐ रितेश गुप्ता की रिपोर्ट ॥

– देव-दानवो द्वारा समुद्र मंथन की कथा सभी ने सुनी है, किंतु समुद्र द्वारा समुद्र मंथन की कल्पना तो भक्तजन ही करते है। राम करूणा सागर है और भरत गंभीरता के सागर। गंभीरता के सागर का मंथन कर राम ने जो रत्न निकाला वह था विश्वास का रत्न। आयोध्या से चित्रकुट तक भरत की यात्रा तो संसार से वैकुण्ठ की यात्रा है किंतु इसी यात्रा के समय श्री राम ने भरताहिं होई न राजमद विधि हरि, हर पद पाई, कहकर अपने विश्वास का रत्न जनमानस को सौंपा है। भरत न तो व्यक्ति है, न संस्था है अपितु भरत तो एक संस्कृति है। कहा गया है भारतीय वाडमय किसी दुर्घटनावश नष्ट भी हो जाये किंतु अयोध्या कांड में भरत का चरित्र जहां वर्णित है, यदि वह सुरक्षित हो तो भारतीय संस्कृति वहीं से पुनः जीवन प्राप्त कर सकती है। यह उद्गार भानपुरा शांकरपीठ के जगद्गुरू श्री दिव्यानंदजी तीर्थ महाराज के थे, जो उन्होने 11वं रामायण मेले की द्वितीय संध्या पर व्यक्त किये।

भानपुरा पीठ से पधारे आचार्य ज्ञानानंदजी महाराज ने कहा कि लक्ष्मण जागृत अवस्था के प्रतीक है, शत्रुघ्न स्वप्न अवस्था के भरत सुशुप्ति के तथा श्री राम तुरीय अवस्था के प्रतीक है। उन्होने जागृत, स्वप्न, सुषुप्ति तथा तुरीय अवस्थाओं के स्वरूप् की विवेचना भी प्रस्तुत की।

गाजीपुर से पधारे मानस मयंक श्री अखिलेशजी उपाध्याय ने कहा कि सम्पत्ति प्राप्त कर हम प्रसन्न होते है, किंतु सत्संगति विशेष प्रसन्नता का विषय है। श्री उपाध्याय ने जटायु के चरित्र के माध्यम से भगवान राम का मानवेतर जीवों से प्रेम का स्वरूप् समझाया। श्री राम जटायु से कहते है कि स्वर्ग में जब आप मेरे पूज्य पितजी से मिलें तो उन्हे रावण द्वारा सीताहरण की घटना नही बताये, क्योंकि महाराज दशरथ को इस घटनाक्रम से दुख पहुंचेगा। श्रीराम ने अपने पिता को कभी कष्ट नही पहुंचाया। यहां वह पुनः एक आदर्श पुत्र की भूमिका में है।

इटारसी मध्यप्रदेश की साध्वी बहन मानसमणी ने कहा कि लक्ष्मण बड़े बड़भागी है, क्योंकि उन्हे श्रीराम का सानिध्य सहज, सुलभ रहा। भरत को पद-रज मांगना पड़ी। मानस के लक्ष्मण का चरित्र हिमालय से भी उंचा है और भरत का चरित्र सागर से भी गहरा। भरत और लक्ष्मण के चरित्र की गहराईयों से जुड़ी इस द्वितीय संध्या का संचालन महाविद्यालय की प्राचार्य डाॅ. जय पाठक ने किया।

मेला समिति संयोजक नारायण भट्ट ने पंडित भूदेव आचार्य के नेतृत्व में जगमोहन राठौर ने सपत्निक पादुका पूजन का अनुष्ठान सम्पन्न किया। इस अवसर पर श्रीरंग आचार्य और श्रीरंग अरोरा, ओमप्रकाश भट्ट, कृष्णचंद सोनी, यशवंत भट्ट, श्रीमती अरूणा भट्ट, श्रीमती कल्पना जयेन्द्र आचार्य, किशोर आचार्य, योगेन्द्र मौड़, ओम वैरागी, गणपति वैरागी, नामदेव आचार्य, उषा आचार्य, राधा वल्लभ पुरोहित सहित नागर समाज, गवली समाज, सोनी समाज के वरिष्ठ प्रबुद्धजन उपस्थित थे। हरिकृष्ण शास्त्री जनक रामायणी के समधुर भजनों एवं तबला वादकों ने द्वितीय संध्या को भक्तिमय बना दिया ।

Leave A Reply

Your email address will not be published.