मुनि श्री पूर्ण सागर जी ने सभी आहार का त्याग कर यम संलेखना धारण की, अभी संयम साधना चल रही है

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थांदला। आचार्य श्री वर्धमान सागर जी मुनि श्री पुण्य सागर जी 52 साधुओं सहित धरियावद विराजित हैं । मुनि श्री पुण्य सागर जी से दीक्षित थांदला नगर गौरव मुनि श्री पूर्ण सागर जी ने चारों प्रकार के सभी आहार का त्याग कर यम संलेखना  धारण की  अभी संयम साधना चल रही हैं ।आपने  आचार्य श्री वर्धमान सागर जी दीक्षा  गुरु मुनि  श्री पुण्यसागर जी सहित सभी साधुओं समाज परिजनों से क्षमा निवेदन कर यम संलेखना धारण की अब संयम  साधना में उपवास करेंगे।आचार्य श्री वर्धमान सागर जी,मुनि श्री पुण्य सागर जी एवं अन्य साधु  निरंतर संबोधित कर रहे हैं। 

आचार्य श्री ने उपदेश में बताया कि शास्त्रों में सल्लेखना समाधि की प्रक्रिया बताई गई है। ,सल्लेखना समाधि धर्म का आचरण कर जीवन को सार्थक करने का  उपक्रम है। शरीर के माध्यम से व्रत संयम किए जाते हैं शरीर जब तप और संयम में बाधा उत्पन्न करताहै ,कमजोरी आती है तब शास्त्रों में बताई विधि अनुसार क्रमशः नियम और यम सल्लेखना के माध्यम से व्रत उपवास आहार में क्रमश त्याग कर शरीर को क्रश किया जाता है। सल्लेखना समाधि में कषायो को भी क्रश किया जाता है । यह मंगल देशना आचार्य श्री वर्धमान सागर जी  ने मुनि श्री पूर्ण सागर जी को संबोधित कर कही।राजेश पंचोलिया अनुसार आचार्य श्री ने  आगे बताया कि  शरीर  संयम के पालन में बाधक होने पर साधु क्रमशः त्याग करते हैं और यह विधि अरिहंत भगवान ने अपनी देशना में बताई, जो गणधर स्वामी ने लिपिबद्ध कर शास्त्रों में अंकित की है।सल्लेखना सामान्य बात नहीं है।यह  जैन धर्म में संयम मार्ग की परंपरा है।क्षपक साधु की उत्कृष्ट संलेखना होने पर अगले 2 भव से 8 भव्य में मोक्ष की प्राप्ति होती हैं क्षपक साधु के दर्शन करना तीर्थ यात्रा समान है।

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