भुजरिया पर्व को लेकर गवली समाज में उत्साह का माहौल

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रितेश गुप्ता, थांदला

स्थानीय गवली समाज, थांदला द्वारा प्रतिवर्षानुसार इस वर्ष भी भूंजरिया पर्व की शुरूवात नागपंचमी के दिन से की जा रही है। नागपंचमी के दिन समाज की महिलाये, बालक, बालिकाये, खेतो से अलग- अलग बाॅस से बनी टोपली में मिट्टी लाकर अपने अपने घर गेहु के बीज से भुंजरिया (जवारे) बोते है। इन जवारे को प्रतिदिन पानी से सिंचते है तथा घरों में झुला बाधकर भुंजरिया को झुल में झुलाते है। प्राय यह माना जाता रहा है कि भुंजरिया जितनी बडी होगी साल उतना ही सुख एवं समृद्धि वाला होगा। भुंजरिया पर्व का प्रचलन राजा आलहा ऊदल के समय से है। आल्हा की बहन चंदा श्रावण माह में सुसराल से अपने मायके आई तो सारे नगरवासियों ने भुंजरिया से उनका स्वागत किया था। उस प्राचीन समय से चली आ रही यह परंपरा को गवली समाज आज भी मनाते आ रहा है। यह भुंजरिया राखी के दूसरे दिन पद्मावती नदी घोडाकुण्ड घाट पर अपनी पारंपरिक पूजा अर्चना करके विसर्जन किया जाता है और भगवान से यह प्रार्थना भी की जाती है कि वर्षा अच्छी हो, फसल का बहुत अच्छी मात्रा में उत्पादन हो, सभी व्यक्तियों व्यापार बडे, व्यहवार अच्छा हो, संसार के सभी व्यक्ति सुखी रहे, निरोगी रहे, सबका भला इसके साथ समाज के व्यक्ति सभी वरिष्ठ जनों से वर्षभर में हुई भूल या गलती की हाथ जोड़कर क्षमा मांग कर आशिर्वाद भी प्राप्त करते है। यह जानकारी गवली समाज, सांवलिया सेठ निजी ट्रस्ट के सचिव दिनेश मोरिया थांदला द्वारा दी गई।

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