भावांतर योजना में पंजीकृत-अपंजीकृत किसानों के भावों में अंतर से किसान-व्यापारियों में रोष

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झाबुआ लाइव के लिए थादंला से रितेश गुप्ता की रिपोर्ट-
भावांतर योजना जो कि कृषकों के लाभ हेतु बनाई गई ऐसी योजना थी जिसके द्वारा कृषकों को अपनी उपज की अच्छी एवं सही कीमत दिलाई जा सके परन्तु व्यवहारिक रुप से ये योजना कुछ पंजीकृत किसानों के लिए फायदेमंद तो कई अपंजीकृत किसानों के लिये नुकसान का सौदा बनती जा रही है। किसानों का कहना है कि किसाना पंजीकृत हो या अपंजीकृत मेहनत तो दोनों ही किसानों ने बराबर कि है तो दोनो को मिलने वाले लाभ में इतना अंतर क्यों? योजना को लेकर एक ओर जहां पंजीकृत व अपंजीकृत किसानों के भाव में आ रहे अंतर को लेकर योजना से असंतुष्ट है तो दूसरी ओर व्यापाारी व काश्तकार को दी जा रही सुविधाओं से संतुष्ट न होकर ओर 2 दिन व्यापार करने के बाद भी सुविधाए न मिलने पर मंडी में मे दुकाने न लगानें का अल्टीमेटम मंडी समिति को दे चुके है। थांदला मंडी क्षेत्र में कुल किसानों की सख्ंया जो कि 25 हजार से अधिक है जिसमें से मात्र 5045 किसानों का पंजीकरण हो पाया है। अन्य किसानों नें या तो जानकारी के अभाव में या अन्य भय से पंजीयन नही करवाया जिस कारण उन्है योजना का लाभ नहीं मिल पा रहा है व अपंजीकृत होने से अपने आप को ठगा महसूस कर रहे है। गौरतलब है कि अगर किसान सोयाबीन बेच रहा हो ओर उसका किसान पंजीयन हो चुका हो तो उसे 3050 रुपए क्विंटल के हिसाब से अपनी पैदावार का भुगतान प्राप्त हो रहा है। जिसमें व्यापारियों द्वारा अगर 2450 रु में फसल नीलामी में खरीदी जा रही है तो बचे हुए भाव अंतर का भुगतान शासन द्वारा किया जा रहा है। लेकिन अपंजीकृत किसान को सिर्फ नीलामी में लग रही बोली के अनुसार ही भुगतान प्राप्त हो रहा है। जिस कारण वे असंतुष्ट नजर आ रहे है। वही 10-20 या 50 किलो सोयाबीन लाने वाले कृषको को भी काफी समस्या आ रही है उनका कहना है कि उन्हे बिक्री की रसिदे प्राप्त नही हो रही है। मंडी परिसर में हुई कुल बिक्री 5194.6 क्विंटल है। आकड़ों की माने तो पंजीकृत किसानों नें मंडी में अपनी फसल की बिक्री अपंजीकृत किसानों कई गुना कम की है। 15 दिनों पंजीकृत किसानों नें मंडी में अपनी उपज की बिक्री है है जबकि 601 अपंजीकृत कृषकों नें अपनी फसल की बिक्री की है। इस तरह पंजीकृत कृषकों एवं अपंजीकृत कृषकों से काफी कम है। उपस्थीत कृषकों से जब भावांतर योजना एंव किसान पंजीयन के जानकारी चाही तो वे इस योजना के बारे ज्यादा कुछ न जानते हुए अपने को मिल रहे भाव से ही फसल को बेचने पर मजबूर नजर आए। उपस्थित व्यापारियों का कहना है कि योजना अनुरुप सुविधाओं का अभाव है। किसान अपना भुगतान तुरंत मांगता है जबकि 50 हजार से अधिक की रकम का भुगतान आरटीजीएस के माध्यम से किया जाता है जिस प्रक्रिया में समय लगता है परन्तु कृषक इस बात को नही समझ पाते कई बार विवाद की स्थिति बन जाती है। इसके अलावा खरीदी किए हुए अनाज को रखने के लिए गोदाम कि सुविधा नही है। आगजनी या अन्य आपदा से बचाव का कोई इंतजाम नहीं किया गया है। मंडी कर्मचारियों की कम संख्या, बैंकिंग,भोजन व पानी की समस्याएं अलग है। लाखों का व्यापार एक दिन में होता है उनके लिये सुरक्षा गार्ड का कोई बन्दोबस्त नही है। अनाज तोलने के लिये बड़ा कांटा नही मंडी के पास जो कांटे है वे बहुत छोटे है और उनकी संख्या भी मात्र 3 ही है। जबकि व्यापारियों की संख्या 40 है। ज्यादा अनाज तोल हेतु अन्यत्र भेजना पड़ता है व छोटे तोल कांटे की व्यवस्थ स्वंय व्यापारियों ने की है। हम्मालों की सख्या आवश्यकतानुरुप नही है। 10-15 हम्माल उपलब्ध है जबकि 50 से अधिक हम्मालों की आवश्यकता है।
मंडी प्रभारी सचिव की अनुपस्थिति में कर्मचारियों ने बताया कि बड़ा तौल-कांटा लंबे समय से खराब पड़ा है जिसके सुधार हेतु एक लाख से अधिक का खर्च लगना है जिसकी मरम्मत की स्वीकृत अब तक प्राप्त नही हुई है। गोदाम की समस्या जरुर है। पिछले वर्ष सवित्तीय योजना के अंर्तगत गोदाम बनाने हेतु प्रस्ताव भी हुए स्वीकृति भी हुई मगर गाईड लाईन ज्यादा होने से एक भी व्यापारी ने इसमें भागीदारी नहीं कि जिस कारण गोदाम नही बन पाए। इस वर्ष प्रस्ताव मंडी बोर्ड को भेजे गये है जिनके स्वीकृत होते ही गोदाम की व्यवस्था भी व्यापारियों को दी जा सकेगी।

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