जीव के परिणाम ही उसे ऊंचा उठाते है- चरित्रकलाजी

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झाबुआ लाइव के लिए राणापुर से एमके गोयल की रिपोर्ट-
पर्युषण के पांचवे दिन वीर जन्म वाचन हुआ। राजेन्द्र भवन के विशाल सभागृह में साध्वी चारित्रकला श्रीजी ने कल्पसूत्र का वाचन करते हुए प्रभु के जन्म की उद्घोषणा की सारा हाल झूम उठा। श्रावक श्राविकाओं ने अक्षत उछाले ,श्रीफल बधार कर अपनी खुशी जाहिर की। त्रिशला नन्दन वीर की, जय बोलो महावीर की नारे से हाल गूंज उठा। झालर बजाई गई, ढ़ोल ढमाकों के बीच खुशी व उत्साह से भरे युवक युवतियां नृत्य करने लगे। केशरिया छापे लगाये गए। इसके बाद एक शोभायात्रा के रूप में सभी लोग जिन मन्दिर पहुंचे। यहां आदिनाथ, सुविधिनाथ, गौतमस्वामीजी, गुरुदेव, ज्ञान जी की व धनचन्द्र सुरीजी की आरती उतारी गई। प्रभावना बांटी गई। इसके पूर्व राजेन्द्र भवन में भगवान महावीर की माता त्रिशला द्वारा देखे गए 14 सपनों, आरती, पहली बार पालणा झुलाना सहित कई बोलियां लगाई गई। समाजजनों ने बढ़ चढ़कर इसमें हिस्सा लिया। संचालन सुरेश समीर ,कमलेश नाहर व तरुण सकलेचा ने किया। पांचवे दिन सुबह साध्वी श्री चारित्रकला श्रीजी ने कल्पसूत्र का वाचन किया। मेघकुमार के दृष्टान्त से पहला प्रवचन पूरा हुआ। दूसरे प्रवचन में जिन शासन में हुए 10 आश्चर्य का वर्णन किया। इसमें वीर प्रभु का गर्भ परावर्तन, पहली देशना खाली जाना,केवल ज्ञान पश्चात उपसर्ग होना शामिल थे। भगवान की माता द्वारा देखे 14 सपनों का वर्णन किया। सिद्धर्थ राजा द्वारा स्वप्न पाठकों को बुलाकर स्वप्न का फलादेश जानने का प्रसंग बताया। 72 प्रकार के सपनों का फल बताया गया।

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