पेटलावद ब्लास्ट : साढ़े 3 साल बाद न्यायालय का आये इस फैसले ने सबको चौका दिया,आप भी जाने

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12 सितंबर 2015 को हुए भयावह ब्लास्ट मामले में आज न्यायालय के इस फैसले ने सबको चौका दिया, इस फैसले के आने के बाद नागरिकों में निराशा हो गई, क्योंकि जख्म अभी भी गहरे है और आरोपियों को सजा नही मिल सकी।
दरअसल, उस दिन राजेंद्र कांसवा की दुकान में हुए ब्लास्ट के बाद उसके छह रिश्तेदारों और एक अन्य व्यक्ति के खिलाफ बनाए गए विस्फोटकों के भंडारण के प्रकरणों में झाबुआ कोर्ट ने सातों को बरी कर दिया है।
इन पर तीन अलग-अलग प्रकरण दर्ज हुए थे। ब्लास्ट का मुख्य प्रकरण झाबुआ न्यायालय में ही विचाराधीन है। इसमें राजेंद्र कांसवा और धर्मेंद्र राठौर आरोपित थे। राजेंद्र कांसवा की मौत हो जाने से अब एक आरोपित ही बचा है।
शुक्रवार को विशेष न्यायालय के न्यायाधीश वायएस परमार ने विस्फोटकों के भंडारण के प्रकरणों में फैसला सुनाया। इसमें राजेंद्र कांसवा के भाई फूलचंद पिता शांतिलाल कांसवा, हंसाबेन पति फूलचंद कांसवा, दूसरे भाई नरेंद्र कांसवा, साधना पति नरेंद्र कांसवा, भतीजे नितेश कांसवा, एक भतीजे की पत्नी प्रीतिबाला पति राहुल कांसवा और विस्फोटक भंडारण करने वाले धर्मेंद्र राठौर को बरी किया गया।
12 सितंबर 2015 की सुबह पौने नौ बजे नए बस स्टैंड पर राजेंद्र कांसवा की दुकान से धुआं निकलता देखा गया। राजेंद्र कांसवा का विस्फोटक का व्यापार था। किसी ने इसकी सूचना कांसवा को दी। उसका नौकर बाइक से लेने पहुंचा। दोनों दुकान पर पहुंचे। तब तक धुआं तेजी से निकलने लगा। राजेंद्र कांसवा, नौकर और मकान मालिक सहित अन्य लोग पानी डालने लगे, तभी जोरदार विस्फोट हुआ। इसमें 78 लोगों की मौत हो गई और 100 से ज्यादा घायल हो गए। आसपास के मकान ध्वस्त हो गए और कई क्षतिग्रस्त हुए। चारों ओर लाशों का ढेर लग गया। शरीर चीथड़ों में बदल गए।
जानकारी के मुताबिक तीन प्रकरणों में फैसला आया है। अभी निर्णय की कॉपी नहीं मिली, इसलिए यह नहीं बताया जा सकता कि किन आधारों पर उन्हें बरी किया गया। 12 सितंबर को ब्लास्ट होने के बाद पुलिस और प्रशासन ने 14 सितंबर को राजेंद्र कांसवा के परिवार वालों के ठिकानों पर कार्रवाई की थी।
यहां से विस्फोटक बरामद किए गए थे। इसमें उन सभी लोगों को आरोपित बनाया गया, जिनके नाम से संपत्ति थी या कोई भी दस्तावेज पुलिस को मिला था। फिलहाल फैसला विस्फोटकों के भंडारण के मामले में ही आया है। ये मामले विस्फोटक पदार्थ अधिनियम की धारा 4 व 5, आईपीसी की धारा 286, 34 के तहत दर्ज किए गए थे।

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