गेहूं-चना बेचा, रेड़ पयास जड्या रे, भौंगर्या तिवार आयो हमरो, वारू खुशी लायो रे

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सलमान शैख़@ पेटलावद

लाल-गुलाबी, हरे-पीले रंग के फेटे, कानों में चाँदी की लड़ें, कलाइयों और कमर में कंदोरे, आँखों पर काला चश्मा और पैरों में चाँदी पहने लडक़े, जामुनी, कत्थई, काले, नीले, नारंगी आदि चटख-शोख रंग में भिलोंडी लहँगे और ओढऩी पहने, सिर से पाँव तक चाँदी के गहनों से सजी शोख महिलाएँ… मांदल की थाप और ठेठ आदिवासी गीतों पर थिरकते कदम, गुड़ की जलेबी और बिजली से चलने वाले झूलों से लेकर लकड़ी के हिंडोले तक दूर-दूर तक बिखरी शोखी, कुर्राटियों के साथ उत्साह प्रदर्शित करते हजारों लोग।
यह नजारा शहर में सोमवार दोपहर देखने को मिला। अवसर था शहर में आयोजित भौंगरिया महोत्सव का। आदिवासी समाज (अजाक्स, जयस, आकास एवं आदिवासी छात्र संगठन) के समस्त आदिवासी समाज के संगठनो द्वारा पेटलावद शहर में पहली बार इस ऐतिहासिक भौंगरिया महोत्सव का सफल आयोजन सोमवार को हुआ। आदिवासी लोक पर्व भगोरिया पर्व का उल्लास छलका। बांसुरी, घुंघरू व मांदल से आसमान गूंज उठा। चटख रंगों के लुगड़े में चांदी के गहनों से लदी युवतियां समूह में पर्व का आनंद लेती आकर्षण का केंद्र बनी रहीं। इसके मद्देनजर आदिवासी लोग गायको ने बाजार में नए गाने भी जारी किए थे, वक्त के साथ हाईटेक होते हए भगोरिया मे ढोल-मांदल की थाप और बांसुरी की तान जहां पारंपरिक गीत-संगीत की मिठास घोली, वहीं भगोरिया में निकली गैर में डीजे पर बजे गीतो ने कदमो को थिरकने पर मजबूर कर दिया। गेहूं-चना बेचा, रेड़ पयास जड्या रे, भौंगर्या तिवार आयो हमरो, वारू खुशी लायो रे… गीत को खूब पसंद किया गया।
जगह-जगह हुआ गैर का स्वागत:
रूपगढ़ रोड़ से आदिवासी समाज द्वारा विशाल गैर निकाली गई। जिसमें हजारो आदिवासी महिला-पुरूष, युवक-युवतियां रंग-बिरंगी पोशाक पहने शामिल हुई। गैर का जगह-जगह पेटलावद के सामाजिक संगठनो ने पुष्पवर्षा, जल, कोल्ड्रिंग पिलाकर स्वागत किया।
गेर में जमकर थिरके ग्रामीण:
डीजे और ढोल-मांदल एक साथ बजे, जिनकी थाप पर ग्रामीण जमकर थिरके। बांसुरी और मादल की धुन पर ग्रामीण नाचते-गाते भगोरिया हाट पहुंचे। शाम तक भगोरिये की रंगत जमी रही। 20 से अधिक दुकानें सजी। आसपास से ग्रामीण ढोल लेकर नाचते हुए भगोरिया हाट में पहुंचे। शाम तक ग्रामीणों सहित ग्राम के लोगों ने भगोरिए का आनंद उठाया। कई क्षेत्र से आए नृत्य दल के सदस्य बांसुरी की धुन व मांदल की थाप पर नृत्य करते निकले तो देखने वालों की भीड़ जमा हो गई। गली-मोहल्लो में पारंपरिक वेशभूषा में पर्व का आनंद ले रहे युवाओं को देख ग्रामीण भी स्वयं को नाचने से रोक नही पाए। कई युवाओं ने पर्व का उल्लास कुर्राटियां मारकर प्रदर्शित किया।
सजधज कर आए महिलाएं एवं बालिकाएं:
आदिवासी परपंरा के अनुसार भगोरिया देखने के लिए महिलाएं और बालिकाएं सजधज कर आईं। वहीं पुरूषो ने धोती-कुर्ता, कमीज और पगड़ी बांधे हुए थे। बच्चो व युवाओ में आधुनिकता का प्रभाव दिखा। कई आदिवासी युवक विचित्र वैशभूषा में भी नजर आए। नवयुवको के समूह गले मे हाथ डालकर लोगगीत गाते नाचते नजर आए। साथ में युवक कुर्राटी लगा रहे थे।
पूरे समय प्रशासन रहा मुस्तेद:
कहीं भी किसी भी प्रकार की अनहोनी या अप्रीय घटना न घटे, इसके लिए प्रशासन ने अपनी कमर कस रखी थी। चोराहे से लेकर हर गली-मोहल्लो में पुलिस फोर्स तैनात किया गया था। इसी के साथ प्रशासन की ओर से एसडीएम आईएएस हर्षल पंचोली, एसडीओपी श्रीमती बबिता बामनिया, टीआई नरेंद्र वाजपेयी, सारंगी चौकी प्रभारी, रायपरिया थाना प्रभारी सहित तहसीलदार व पटवारी हिम्मतसिंह देवलिया और पुलिसकर्मी पूरे समय डटे हुए थे।
इन युवाओ का रहा सराहनीय सहयोग:
जय आदिवासी युवा शक्ति के सचिन गामड़, पवन खराड़ी सहित ऐसे 20 से अधिक युवाओ ने भौगरिया को सफल बनाने के लिए जी-तोड़ मेहनत की और भगोरिया महोत्सव को सफल बनाने में अपनी सराहनीय भूमिका अदा की।
आदिवासियो का परिणय पर्व नही बल्कि संस्कृति का सांस्कृतिक पर्व है भगोरिया:
जयस के सचिन गामड़ और पवन खराड़ी ने बताया भौगरिया पर्व को लेकर लोगों मे यह भ्रांति है कि यह पर्व आदिवासियो का परिणय पर्व है। यह पूर्णतया गलत है। यह पर्व आदिवासी संस्कृति का सांस्कृतिक पर्व है जिसे पूरे मन से मनाया जाता है। यह हमारी संस्कृति है। यह पर्व को देखने के लिये बड़ी संख्या मे विदेश पर्यटक व देश के कई महानगरों से लोग समय निकालकर पर्व देखने आते है। यह हमारा पारम्परिक त्यौहार है। इसके लिये समय निकालना ही पड़ता है।

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