गुरू से संसार बढ़ाने नही अपितु घटाने की कला सीखना चाहिए: पूज्य आचार्य हेमचंद मसा

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सलमान शैख़,पेटलावद

किसी वस्तुओ का मिलना, किसी विद्वान का मिलना महत्वपूर्ण नही है, बल्कि वस्तु के गुण पहचानना व विद्वानो के प्रति अहोभाव महत्वपूर्ण होते है। किसी को चिंतामणी रथ मिल जाता है पर पहचान के अभाव में वो उससे कव्वे उड़ाता है। कोई राम को पहचानकर मर्यादित बन जाता है, तो रावण से मिलकर छल व कपट सीख जाता है। कृष्ण से मिलकर पांडव धर्मयुद्ध जीत लेते है, तो कौरव हार जाते है। गौतम भी महावीर से मिले, गौशालक भी महावीर से मिले, एक ने शाश्वत मोक्ष पा लिया, तो एक ने नर्क गति को प्राप्त कर लिया। हम गुरू और परमात्मा से वो (भौतिक समृद्धि) मांगते है जो उन्होनें त्याग दिया है। गुरू से संसार बढ़ाने की नही घटाने की कला सिखना चाहिए।
ये विचार पूज्य आचार्य आनंद सागर सुरेश्वरजी मसा के परंपरा के आचार्य पूज्य हेमचंद सुरेश्वरजी ने पेटलावद की पौशधशाला में व्यक्त किए। आचार्य श्री अयोध्यापूरम तीर्थ के उद्धारक के रूप में पूरे देश में जाने जाते है। आप रायपुर, नीमच, मंदसौर, सैलाना, उज्जैन आदि स्थानो पर मंदिरो में प्राण-प्रतिष्ठा आदि धर्म अनुष्ठान कर लिमड़ी के पुराने जीनालय का उद्धार करने पधार रहे है। आपके साथ छ: युवा व बालसंयासी विहाररत है। मंगलवार प्रात: गुरूदेव को ढोल-बाजे के साथ नगर में मंगलप्रवेश करवाया गया। बड़े आदेश्वरनाथ मंदिर में सामूहिक चेत्य वंदन किया गया। व छोटे मंदिर पर मांगलिक व प्रवचन हुए। मंगलवार को संजय झालोका व दिलीप कटकानी की ओर से संत-पूजा भी की गई।
संतश्री ने आगे कहा संत और परमात्मा को पढ़े और अपने जीवन को गढ़े, जो व्यक्ति संसारी, सामाजिक व धर्म नियमो का पालन करता है, वो सदियो तक स्मरणीय व वंदनीय बन जाता है। हमें परिजनो से ज्यादा परमात्मा व गुरू की नजर में रहना चाहिए, ताकि हम भी मानव से महामानव बन सके।
पन्यास पूज्यश्री विरागचंद्र सागरजी ने कहा सरहद की रक्षा जवान करते है, तो संस्कारो की रक्षा संत करते है। आत्मा-पाप-पुण्य, माता-पिता के आदर्शपाठ संसारी पाठशाला में नही गुरूदेव व धर्मस्थानो पर पढ़ऩे को मिलते है। हमें धर्म व गुरू का सत्संग हमेशा करते रहना चाहिए।

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