गुरुदेव देव लेखन, कवि व उच्च कोटि के वक्त थे : मुक्तिप्रभाजी

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पेटलावद। भगवान ने भिक्षु के जो लक्षण बताये थे वे सारे आचार्य भगवंत में घटित होते है वे संयंम की पाठशाला थे हमेशा आध्यात्म में रमण करते थे ऐसी भाषा बोलते थे जो हितकारी हो, छेदन और भेदन वाली भाषा का उपयोग कभी नही करते थे ज्ञान का खजाना उनके भीतर भरा पड़ा था। उक्त उदगार स्थानक भवन में विराजित महासती मुक्तिप्रभा जी ने आचार्य उमेशमुनिजी अणु की पुण्य स्मृति में चल रहे तीन दिवसीय अणु स्मृति दिवस के तीसरे दिन व्यक्त कि। उन्होंने कहा कि गुरुदेव अच्छे लेखक, वक्ता एवं आशु कवि थे। हमारा ज्ञान उधार का ज्ञान है उनका ज्ञान मस्तिष्क में सुरक्षित था भीतर से निकलता ही जाता था आज का ज्ञान मोबाइल में कैद है मस्तिष्क में नहीं। वे ज्ञानी थे ध्यानी थे पर मानी नहीं थे अहंकार उनसे कोसो दूर था दया नम्रता करुणा सहनशीलता सारे गुण उनमे समाये हुए थे। कुसुमलता मसा ने कहा कि आचार्य भगवंत हर समय साधक को मोह ममता से परे रहकर आत्मकल्याण के लिए प्रेरित करते रहते थे। तीन दिवसीय आयोजन के दौरान त्याग तपस्या एवं जप तप के द्वारा स्मृति दिवस मनाया गया प्रश्नमंच का भी आयोजन हुआ एवं तीन दिवसीय एकासन भी हुए।

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