कृषि महाविद्यालय की छात्राओं ने उन्नत खेती तकनीकी का किया अवलोकन

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जीवनलाल राठौड़, सारंगी
थ्योरी के बाद प्रेक्टिकल अनुभव ज्यादा अच्छे रहे है क्योंकि किताबों में तो जो लिखा है वह पुराना है किंतु यहां किसानों के बीच जो नई तकनीके देखी वह ज्यादा नई व अच्छी है। हमारे किताबी ज्ञान से भी आगे बढ़ कर जमीन हकीकत में बहुत कुछ नया देखने व सिखने क मिला। यह अनुभव कृषि महाविद्यालय इंदौर की छात्राओं का पेटलावद क्षेत्र में उन्नत कृषक बालाराम पाटीदार के खेत का भ्रमण करने के बाद रहे। कृषि महाविद्यालय इंदौर की 27 छात्राएं 4 माह से झाबुआ जिले में है। रविवार को इन छात्राओं ने पेटलावद विकासखंड के विभिन्न ग्रामों में उन्नत व रासायन रहित खेती को देखने के लिए भ्रमण किया जिसमें रायपुरिया, रूपगढ़ और सारंगी के उन्नत कृषकों के खेतों पर गए और वहां उन्होंने खेती की उन्नत तकनीकों का अवलोकन किया।
उद्यमी बने.
कृषि क्षेत्र में आज इतने अधिक उद्यम पैदा हो चुके है जिन पर कार्य कर आदमी नौकरी से अधिक कमा सकता है। यह बात रूपगढ़ के दिलीप मुलेवा ने छात्राओं को ग्रेडिंग मशीन के बारे में जानकारी देते हुए बताया जिसमें वह बीजों की ग्रेडिंग कर 70 प्रतिशत बीज सरकार को और 30 प्रतिशत बीज किसानों को सप्लाय करते है।
बीई के बाद खेती.
रायपुरिया के उन्नत कृषक योगेश सेप्टा ने खेती कर नउकरी से अधिक लाभ कमाया है। बीई करने के बाद भी योगेश ने खेती को चुना जिसे देख कर छात्राओं को आश्चर्य भी हुआ और अच्छा भी लगा। योगेश ने अपने अनुभव उनके साथ साझा किए और उन्हें खेती को लाभ का धंधा बनाने के तरीके बताए।
खेती का तीर्थ पर पहुंचे
अंत में सभी छात्राएं क्षेत्र में खेती का तीर्थ कहे जाने वाले बालाराम पाटीदार के खेत पर पहुंचे जहां पर बालाराम पाटीदार ने उन्हें विभिन्न तरह की खेती के बारे में जानकारी उपलब्ध करवाई जहां उन्होंने अमरूद की,संतरे, जामुन, सोयाबीन, कपास, गन्ना आदि फसलों को देखा और उनकी विभिन्न वैरायटियों के बारे में जानकारी प्राप्त की जिसे देख कर उन्हें आश्चर्य भी हुआ, क्योंकि कपास के ऐसे वैरायटी भी देखी जो की 7 फीट से अधिक है तो जामुन की ऐसे वैरायटी जिसमें एक फल का वचन 500 ग्राम से अधिक तो पपीता के एक पेड़ पर 1.5 क्विंटल से अधिक फल लगे देखे। वहीं संतरे की खेती में ऐसे फल जो की स्वाद के लिए विदेशों तक पहुंचाए जाते है।
सोयाबीन हुआ जोरदार.
बालाराम पाटीदार ने छात्राओं से अनुभव साझा करते हुए बताया कि सोयाबीन की फसल में जिन खेतों में फलिया नहीं आ रही है उसका मुख्य कारण खेतों की नमी अंदर ही रह जाना है। क्योंकि इस बार पौधा अच्छा घना हुआ था किंतु लोगों ने पास पास बीज लगाए थे जबकि हमारे द्वारा दूर दूर बीज लगाए गए, जिससे हमारी फसल अच्छी हुई है। इसके साथ ही गन्ना, अमरूद, पपीता व अन्य फसलों के बारे में जानकारी दी।
यांत्रिकी को अपनाना होगा.
इस मौके पर छात्राओं को बताया गया कि आपकों यांत्रिकी की ओर अधिक ध्यान देना होगा। क्योंकि आज की खेती में तेजी से काम होना चाहिए जिसके लिए यंत्रों का प्रयोग आवश्यक है। इसके लिए कई प्रकार यंत्र कृषि कार्य में उपयोग करना होंगे, जिससे खेती में सुगमता से और जल्दी कार्य हो पाएगा।
हम करते है फैलाना का काम
कृषि विज्ञान केंद्र झाबुआ के डॉ.आईएस तोमर ने कहा कि हम किसानों द्वारा किए जा रहे खेती के नवाचार को फैलाने का कार्य करते है। हम कोई नवाचार सिखाते नहीं है। केवल उसे फैलाने का कार्य करते है। आज भी इन छात्राओं को खेती की नई तकनीक सिखाने के लिए लाए है ताकी यह भी अपने आने वाले भविष्य में कुछ अच्छा कर सके।
छात्राओं के अनुभव-
बड़ा ही अच्छा लगा आज हमारे लिए यहां नया अनुभव कपास की लंबी फसल जिसमें उत्पादन अधिक ले सकते है वहीं संतरे में चकोतरा नई वैरायटी देखी है जिसका फल बड़ा है। बाजार में जो फल आता है वह छोटा होता है किंतु यहां बड़ा फल देखने को मिला। गुप्ता, छात्रा, बड़वानी

मैं इसी क्षेत्र की हूं किंतु आज तक इस प्रकार के कई अनुभव देखने को मिले। कृषि क्षेत्र में बड़ा उद्यम भी स्थापित किया जा सकता है और नई तकनीकों के प्रयोग से असोचनीय उत्पादन भी लिया जा सकता है कई नई तकनीकी देख कर अच्छा लगा। –अंजली सोलंकी, छात्रा पेटलावद.
जो हमने पढ़ा है उससे कहीं आगे का हमें देखने को मिला है. यह वास्तव में अच्छा अनुभव है और सिखने लायक है। क्योंकि थ्यङ्क्षरी और प्रेक्टीकल में काफी अंतर होता है। —दीपशिखा, छात्रा धार

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