एक बार फिर चर्चा में हैं तेजतर्रार IAS अफसर एच पंचोली, जाने क्यों ?

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सलमान शैख़, झाबुआ Live…
आईएएस अफसर का जिक्र होते ही मन में छवि उभरती है सुख-सुविधाओं की, रौब-रसूख की, तीखे तेवरों की। आज देश के एक औसत युवा के मन में झांकें तो आईएएस अफसर होने का मतलब है, करीब-करीब बादशाह हो जाना। एक ऐसा बादशाह जिसके सामने पूरा प्रशासनिक अमला सिर झुकाए, हाथ बांधे खड़ा दिखाई देता है।
कमोबेश ऐसा है भी, लेकिन जरूरी नहीं कि सभी आईएएस अफसर ऐसे ही हों, ऐसे तमाम उदाहरण हैं जहां आईएएस अफसरों ने खुद को सही मायनों में लोकसेवक समझा।
ऐसे ही एक आईएएस हैं हर्षल पंचोली जो पेटलावद में एसडीएम है। वह बातें कम काम ज्यादा वाले सूत्र में भरोसा रखते हैं।
वैसे तो IAS पंचोली खबरों में रहने से थोड़ा दूरी बनाए रखते हैं लेकिन उनका काम ही ऐसा है कि हमेशा उन्हें सुर्खियों में बनाए रखता है। धार्मिक नगरी उज्जैन में पले बढे 2015 बैच के आईएएस हर्षल पंचोली अपने बेबाक और तेजतर्रार तेवर के चलते कई बार सिस्टम से लोहा ले चुके है।
यूं तो पेटलावद शहर राजनीति के लिए सबसे ज्‍यादा मीडिया में सुर्खियों में रहता है, लेकिन इन दिनों एसडीएम के तेजतर्रार तेवर के चलते पेटलावद सबसे ज्यादा सुर्खियां बटोर रहा है। आखिर ऐसी क्या वजह है जिससे इन दिनों एसडीएम पंचोली खूब चर्चा में है, तो आइए इस विषय को विस्तार से हम आपके सामने रख रहे है।
दरअसल, बात सिर्फ इतनी है कि प्रतिवर्ष 26 जनवरी गणतंत्र दिवस के पूर्व जनप्रतिनिधियों, गणमान्य नागरिकों ओर पत्रकारो के साथ बैठक कर प्रशासन समारोह की रूपरेखा तैयार करता है।
इसी कड़ी में बीते मंगलवार यानि 8 जनवरी को जपं सभाकक्ष में बैठक का आयोजन किया गया था। इस बैठक में सबकुछ सही चल रहा था कि एसडीएम आईएएस पंचोली ने इस वर्ष 12 प्रस्तुतियों का सांस्कृतिक कार्यक्रम करने का सुझाव उपस्थित जनप्रतिनिधियों, गणमान्य नागरिकों को दिया, लेकिन यह सुझाव किसी के समझ मे नही आया, क्योंकि किसी ने भी उसकी गहराइयों पर जाकर नही देखा, कि आखिर एसडीएम ने ऐसा क्यों कहा, उन्होंने कुछ तो सोचा होगा। बिना सोचे समझे कोई अधिकारी इतना बड़ा कदम नही उठा सकता, लेकिन इस सुझाव के बाद गणमान्य नागरिकों के साथ उनकी बहस छिड़ गई। बहस के बाद एसडीएम ने इसे अंतिम निर्णय मानकर इस बार 12 प्रस्तुतियो को कराना तय कर दिया।

12 प्रस्तुतिया कराने का उद्देश्य आखिर क्या:
एसडीएम द्वारा लिए गए इस निर्णय में दरअसल यह कि वर्षो से शहर में जितनी स्कूल थी उतनी प्रस्तुतिया होती थी, लेकिन समय बदलता गया स्कुलो की सँख्याओ में इजाफा हुआ और अब कुछ सालों से सांस्कृतिक कार्यक्रम की गरिमा पर सवाल खड़े होने लगे, क्योंकि स्कुलो की संख्या में हुए इजाफे से सबसे ज्यादा परेशानी इस कार्यक्रम को लेकर हुई तो वह है इस कार्यक्रम की शोभा बढ़ाने वाले नन्हे-मुन्ने बच्चे। इन बच्चों को खासी परेशानी उठानी पड़ती थी, प्रस्तुतिया बढ़ती गई और समय भी बढ़ता गया जो समारोह पहले कम समय मे खत्म हो जाता था वह अब ज्यादा समय में खत्म होने लगा था, जिससे बच्चे भूखे प्यासे रहते थे और कई बार समारोह में कोई न कोई बच्चा बेहोश या किसी भी दुर्घटना का शिकार हो जाता था।
इसी को ध्यान में रखते हुए एसडीएम ने यब सुझाव दिया कि 12 प्रस्तुतियां ही हो ओर हर प्रस्तुति 4 मिनट की हो, इस स्थिति में समय भी कम लगेगा और कार्यक्रम भी कम समय मे खत्म हो जाएगा, जिससे बच्चो को परेशानी का सामना नही करना पड़ेगा।
अब सवाल यह था कि इससे परम्परा बदलेगी, लेकिन परिवर्तन की प्रक्रिया परंपरा का ही हिस्सा है जो कि नवीनता को जन्म देती है, क्योंकि नवीनता की शुरुआत शून्य से नहीं हो सकती। परिवर्तन की प्रक्रिया द्वारा किसी परंपरा के आधुनिक रूप लेने में निरंतरता रूपी कड़ी का विशेष महत्त्व है।
किसी परंपरा की नई व्याख्या करना भी दरअसल सृजन करना है ओर एसडीएम पंचोली ने यही करने का प्रयास किया।
ऐसे होगी 12 प्रस्तुतियां:
शहर में कुल 20 स्कूल है। ऐसा नही है कि केवल 12 स्कुलो की प्रस्तुतियां समारोह में होगी, जबकि इसमे शामिल होने के लिए हर स्कूल के प्रतिभागियों को मौका मिलेगा, बस जो समिति रहेगी उनके सामने दी गई थीम पर प्रस्तुति देंगे, जो समिति की नजर में खरा उतरेगा वही टॉप 12 में शामिल होगा। इससे समारोह में जो पहले घिच-पिच वाली बात सामने आती थी वह नही हो पाएगी ओर दर्शको को समारोह भी अच्छा लगेगा।
यह एसडीएम थोड़े हटकर है:
आजकल अधिकतर अधिकारी सत्ताधारियों की जी-हजूरी करके अच्छे पदों पर लगने की फिराक में रहते हैं, लेकिन यह एसडीएम इससे बिल्कुल उलट है, न तो इन्हें किसी नेता की जी हुजूरी पसन्द है और न ही किसी अपने काम मे दखलंदाजी। उनके डेढ़ वर्षीय कार्यकाल में नेताओ की नही चली ओर सभी को मुंह की खानी पड़ी।
सत्ताधारी दल और विपक्ष दोनो की गले की फांस:
चाहे कोई अधिकारी जनता के हित में काम करे और जनता उसके कामों से संतुष्ट हो लेकिन सत्ताधारी ओर विपक्ष दल नहीं चाहते कि कोई अधिकारी अपने कार्यों से जनता में मशहूर हो। सत्ताधारियों का केवलमात्र एक मकसद अधिकारी वर्ग से अपने सक्षम पूंछ हिलवाना है।
सोच बदलो जग बदलेगा:
अधिकारी आज है कल नही है, अनुविभागीय अधिकारी का पदभार संभालना एक बड़ी जिम्मेदारी का काम है, लेकिन इन सब दायित्वों का साथ साथ निर्वहन करते हुए विकास की सोच रखना इससे भी बड़ी बात है और यह सबकुछ आईएएस हर्षल पंचोली बखूबी और पूरी कुशलता से निभा रहे है।
चर्चा में लेकिन निभा रहे अपने दायित्व:
एक ओर एसडीएम पंचोली भले ही इन दिनों खूब चर्चा में हो, लेकिन दूसरी ओर वह अपने दायित्वों का निर्वहन करने में कोई कमी कसर नही छोड़ रहे।
नगर में भी सफाई अभियान को लेकर उनकी बड़ी चर्चा हो रही है। उन्होंने खुद की पहल से शहर के विभिन्न वार्डों में हर रोज पाइंट बनाकर श्रमदान करने की प्रक्रिया शुरू करवा दी है। कई ऐसे स्थान है जो कभी साफ नही दिखते थे वहां उन्होंने खुद श्रमदान कर सफाई करवाई है। अतिक्रमण मुक्ति, सड़कों की स्वच्छता एवं अन्य बुनियादी जरूरतों को पटरी पर लाने के लिए उनके सतत प्रयास और विजन की लोग यहां खुलकर तारीफ कर रहे हैं। काश की हर जगह कम से कम आईएएस पंचोली जैसे अधिकारी आजाये तो काफी विकास होगा।

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