अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर विशेष: कहानी घुंघट में सिमटे उस चेहरे की, जिन्होनें समाज में अपनी एक अलग पहचान बनाई 

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सलमान शैख़@ पेटलावद
नारी तुम प्रेम हो, आस्था हो, विश्वास हो, टूटी हुई उम्मीदो की एकमात्र आस हो। हर जान का तुम्हीं तो आधार हो, नफरत की दुनिया में मात्र तुम्ही प्यार हो। उठो अपने अस्तित्व को संभालो, केवल एक दिन ही नही हर दिन नारी दिवस मनालो।
जी हां, एक मां, एक बेटी, एक बहन, एक बहु, एक सांस, एक सखी, एक साथ और इसके इतर सबसे अहम एक नारी…न जाने कितने ही किरदार निभाने पड़ते है एक नारी को अपनी जिंदगी में…लेकिन फिर भी उसके मन में हमेशा एक सवाल कचोटता ही रहता है कि आखिर मैं कौन हूं? मेरा अस्तित्व क्या है? क्या है मेरा वजूद..? अपनी पहचान के लिए जिंदगीभर जद्दोजहद कर एक नारी यूं ही समय बिताती चली जाती है। वहीं कुछ ऐसी भी महिलाएं है जिन्होंने न सिर्फ अपनी पहचान खुद बनाई है बल्कि अपने वजूद को नाम भी दिया है। एक अलख जगाकर उन्होंने समाज में ही नहीं बल्कि अपने गांव का नाम भी रोशन किया है।
आज अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर हम आपको ऐसी एक ग्रामीण महिला के बारे में बता रहे है, जिन्होंने फर्श से अर्श तक का सफर तय किया और खुद की एक पहचान बनाई। यह महिला पेटलावद विकासखण्ड के ग्राम बड़ा सलुनिया की है। जिसका नाम बद्दीबाई मैड़ा है। आज कृषि के क्षेत्र में महिलाएं बढ़-चढक़र नित्य नए प्रयोग कर रही हैं। फिर चाहें वो मुर्गीपालन हो या फिर मिश्रित खेती, बागवानी हो या फिर मौन पालन या डेयरी उद्योग, कृषि के हर क्षेत्र में महिलाओं ने अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई है। पिछले कुछ वर्षों में इस क्षेत्र में कुछ नए आयाम भी महिलाओं ने खोजकर अपनी धाक जमाई है। कृषि के जिन क्षेत्रों में पुरूषों ने कब्जा किया हुआ था वहां आज महिलाओं ने आकर अपना स्थान बनाया और पुरूषों के साथ कंधे से कंधा मिलाने के बजाय वे उन्हें काफी पीछे छोड़ते हुए आगे निकल गई हैं और अपनी कल्पनाशक्ति का लोहा मनवा रही हैं।
*ऐसे मिली बद्दीबाई को प्रेरणा:*
बद्दीबाई के पास लगभग 5 से 6 बीघा जमीन थी, उसने सौचा कि वह कैसे वह अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत करे, तो फिर उसने घरेलू मुर्गीपालन को चुना और अपने पैरो पर खड़ी हुई। उसको डर भी था कि मुर्गीया मर बहुत जाती है, लेकिन उसने हिम्मत नही हारी और अपने काम को आगे बढ़ाया। आज वह परिवार के लिए अच्छा सहारा बन गई है और पति के साथ कंधे से कंधे से मिलाकर अपने परिवार का पालन-पौषण कर रही है। पिछले 2 साल से घरेलू मुर्गीपालन का काम उसने हाथ में ले रखा है, जिससे वह आर्थिक रूप से निर्भर हो गई है। उनके गांव में कई महिलाएं मुर्गीपालन कर अपने परिवार का पालन-पौषण कर रही है और आत्मनिर्भर हो रही है।
*बद्दीबाई इन कार्यो से हो चुकी है माहिर, बनी मिसाल:*
बता दे कि मुर्गीपालन में आमतौर पर जो मृत्युदर है यह बहुत ज्यादा होती है। इसलिए इसके पालन में लोग कम रूचि रखते है। जो हिम्मत करकर आगे आता भी है, तो वह सफल नही हो पाता है और उन्हें लाभ की बजाय नुकसानी उठाना पड़ती है। रानीखेत और हेजा मुर्गीयो में होने वाली संक्रामक बिमारी है जिससे बड़ी संख्या में मुर्गीया मर जाती है। और उन्हें नुकसान उठाना पड़ जाता है, लेकिन बद्दीबाई ने इसका भी तोड़ निकाला और संपर्क समाजसेवी संस्था की आजीविका परियोजना से वह जुड़ी और घरेलू मुर्गीपालन को अपनाते हुए उसने टीकाकरण का और मुर्गीयो के रखरखाव का प्रशिक्षण लिया। आज स्थिति यह है कि जो मृत्युदर 76 प्रतिशत थी वह घटकर बद्दीबाई के हूनर के कारण वह 16 प्रतिशत पर आ गई। इस कारण उसे अच्छा आर्थिक लाभ होने लगा। बद्दीबाई आज टिकाकरण, डी-वर्मींग भी करती है। आज की तारीख में उसके पास 100 से 125 मुर्गीया है। जिनका वह पालन कर रही है और हाट-बाजार में वह बेचती है और अपना घर वह जीवन यापन करती है। उसने अपनी इस मेहनत से चांदी के जेवर खरीदने से लेकर, बच्चो की पढ़ाई का खर्चा वहन करने लगी, जिससे उसके जीवन स्तर में काफी बदलाव आ गया। बद्दीबाई की हर महीने 4 से 5 हजार की इनकम हो जाती है। इनकम होने के बावजूद उसकी लगन बहुत मजबूत है। जिससे वह सभी अन्य महिलाओ के लिए एक मिसाल बन चुकी है।
*महिलाओ की बदल रही है सोच:*
क्या कभी किसी ने सोचा था कि चूडिय़ों से भरे हाथ कभी हल या अन्य कृषि कार्य में थामेंगे? शायद ही यह परिकल्पना किसी के जहन में आई होगी कि घूंघट में सिमटा चेहरा आज समाज में अपनी एक अलग पहचान बनाएगा और उभरकर सामने आएगा। मां के दामन में छिपी वो छोटी सी कल्पना अपने ही पंख लगाकर खुले गगन में उड़ेगी और अपने वजूद को एक पहचान देगी।
जाहिर है कि भुखमरी और गरीबी को समाज से मिटाने के लिए इन महिलाओ को सशक्त बनाना केवल महत्वपूर्ण नही है, बल्कि यह समाज की मांग भी है। इन्हें इनके अधिकारो और अवसरो से वंचित करने का अर्थ बच्चो और समाज के लिए बेहतर भविष्य से इन्कार करने जैसा है। हम भी ऐसी सभी महिलाओं को नमन करते है, जिन्होंने कठिन परिस्थितियों के आगे घुटने न टेकते हुए अपने सपनों को साकार किया और आज कृषि क्षेत्र में परचम लहरा रही हैं।

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