मामला निजी स्कूलों की मनमानी का : ऑनलाइन के बहाने ऑफलाइन वालो को चपत  

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 भूपेंद्र बरमण्डलिया@मेघनगर

देश कोरोनावायरस के कहर से गुजर रहा है निजी स्कूलों की फीस हेतु भी पालकों को विशेष मांग पर मुख्यमंत्री ने 3 माह की ट्यूशन की फीस माफ करने के आदेश दिए हैं। अब यह मात्र उठ के मुंह में जीरे के समान है। महज ट्यूशन फीस नहीं प्रारंभिक 3 माह की टोटल स्कूल फीस माफ होनी चाहिए। फिर सीबीएसई स्तर की व मध्य प्रदेश शासन के स्तर के निजी स्कूलो में पाठ्यक्रम भी एक सा हो तब ना। शासन इन स्कूलों में सरकारी व एनसी.आर.टी की पुस्तकों को अनिवार्य करें तब कुछ संभव है। ऑनलाइन के बहाने ऑफलाइन वाले विद्यार्थियों भोपाल को पर चपत यानी उल्टे हाथ से कान पकड़ना.. फिर इस साल सोशल डिस्टेंस के चलते साहित्यिक सांस्कृतिक व क्रीड़ा आयोजनों में होना नहीं है।तो फिर एक्टिविटी किस हिसाब से।अब निजी स्कूलों में ऑनलाइन पढ़ाई चलाई जा रही है। क्या संभव है सभी के पास ऑनलाइन है तो तो क्या संभव है सभी के पास ऑनलाइन है तू एंड्राइड मोबाइल कोरोना से पहले ही पलकों पर आर्थिक मार है फिर ऑनलाइन है तो बच्चों के लिए अलग से एंड्राइड मोबाइल दिलाना आर्थिक चपत ही होगा। जिस जिले में शिक्षा का स्तर महज 40% साक्षरता ग्राफ के ऊपर हो वहां कैसे ऑनलाइन पढ़ाई संभव है। पालक भी सभी शिक्षित हो यह संभव नहीं बच्चे ऑफलाइन ठीक से नहीं पढ़ सके तो ऑनलाइन कैसे पढ़ेंगे मोबाइल में वह पढ़ाई के अलावा अलावा मनोरंजन के एप्लीकेशन डाउनलोड कर अपने अपने मनोरंजन के साथ पढ़ाई से कोसों दूर रहेंगे। स्कूल सिर्फ पैसे वसूलने हेतु ऑनलाइन का ढिंढोरा पीट रहे है। शासन ग्रामीण स्तर पर पहली से आठवी तक ऑनलाइन पढ़ाई निजी स्कूलों पर बाध्यता समाप्त करें स्कूल अन्य कोर्स की बजाय नैतिक शिक्षा योग शिक्षा वैदिक शिक्षा शारीरिक शिक्षा पर अधिक जोर दे भारतीय संस्कृति अनुरूप आयुर्वेद का महत्व विद्यार्थियों को शिक्षण सत्र के शुरुआत से ही बताया जाए।इस आपदा से निपटने हेतु विद्यार्थी सजक माध्यम हो सकते हैं जो कि पालकों को भी जागृत करें। अतः विद्यार्थियों में जनचेतना हेतु शुरुआत से ही स्वच्छता व सतर्कता हेतु प्रेरणा जगाई जाए।

*निजी स्कूलो द्वारा अपनो की दुकानों से पाठ्य पुस्तके खरीदने के लिए पलको पर दबाब*

झाबुआ मेघनगर राणापुर एवं अन्य गांव में निजी स्कूल लगातार पालको के ऊपर दबाव बना रहे है निजी स्कूलों द्वारा पालकों के व्हाट्सएप ग्रुप बना लिए गए हैं। जिनमें अंधा बांटे रेवड़ी अपने अपनों को देने की तर्ज पर कमीशन के चक्कर में अपने रिश्तेदारों एवं जातिवाद को बढ़ावा देते।पलकों पर स्कूल पाठ्यपुस्तक व्हटासप्प्स सूची से खरीदने पर दबाव बनाया जा रहा है। यदि पालक किसी अन्य जगह से पाठ्य पुस्तक खरीद लेता है तो फिर से पुस्तके लौटाने व फोन करके बेवजह परेशान किया जाता है। लिस्ट के हिसाब से उन्हीं दुकानों से पाठ्य पुस्तक खरीदने पर बाध्य किया जाता है। अब जिले के शिक्षा अधिकारी एम एस सोलंकी व जनप्रतिनिधियों को बेलगाम निजी स्कूलों की नाक में नकेल डाल कर शासन प्रशासन के नियम पालन करवाने के लिए कड़ा रुख अपनाना होगा ताकि कोई भी असहाय और ग्रामीण व शहरी क्षेत्र का बच्चा व पालक परेशान ना हो।

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