तडक़े 3 बजे से महिलाओं ने सोलह सिंगार कर की पीपल की पूजा, मांगी परिवार की सुख-समृद्धि

0

भूपेंद्र बरमंडलिया, मेघनगर
नगर के दशहरा मैदान, शासकीय अस्पताल के समीप टीचर कॉलोनी एवं रंभापुर में आशापुरा माता मंदिर व आसपास के विभिन्न अंचलों में दशामाता का पर्व धूमधाम से मनाया गया। जब मनुष्य की दशा ठीक होती है तब उसके सभी कार्य अनुकूल होते हैं किंतु जब दशा प्रतिकूल होती है तब अत्यंत परेशानी होती है। इसी दशा को दशा भगवती या दशा माता कहा जाता है। अपने परिवार की दशा उत्तम रखने के निमित्त हिंदू धर्म में दशा माता की पूजा तथा व्रत करने का विधान है। रम्भापुर एवं मेघनगर में महिलाओं ने नया वस्त्र धारण व सोलह सिंगार कर सुबह 3 बजे से पीपल की पूजा की एवं बाजार में व्यापार में भी पूजन सामग्री को लेकर मेघनगर हाट बाजार होने से अच्छी खासी चहल पहल दिखाई दी।
दस दिनों तक होती है दशामाता की पूजा
दशा माता का पूजन होली के दूसरे दिन अर्थात चैत्र कृष्ण 1 से ही प्रारंभ हो जाता है जब महिलाएं स्नान कर के दशा माता के थान पर धूप दीपक और घी-गुड़ का प्रसाद एवं गेहूं आदि अनाज के आखे अर्पित करके दशा माता की कथाए जिसे स्थानीय भाषा में ‘दशा माता री वात’ कहते हैं, का श्रवण करती है। महिलाएं 10 दिनों तक रोजाना दशा माता की अलग अलग कहानियों को कहती व श्रवण करती है। दसवें दिन अर्थात चैत्र कृष्ण दशमी को दशा माता का मुख्य त्यौहार मनाया जाता है। इस दिन महिलाओं द्वारा व्रत रखा जाता है तथा पीपल का पूजन कर दशामाता की कथा सुनी जाती है। इस दिन घरों में पकवान बनाए जाते हैं और दशामाता व अन्य देवी देवताओं को भोग लगाकर पूरे परिवार के साथ प्रसाद ग्रहण किया जाता है। राजस्थान में इस त्यौहार का अत्यंत महत्व है। इस दिन पीपल वृक्षस्थलों पर तडक़े से ही पूरी तरह सज धज कर पूजा करने वाली स्त्रियों की भीड़ बनी रहती है जो अपराह्न तक रहती है। इस अवसर पर लाखों महिलाएं अपने सुहाग की रक्षा और घर-परिवार की खुशहाली की कामना से पूरी श्रद्धा के साथ दशामाता के नियमों का पालन करते हुए व्रत पूजा करती है।

क्या होती है दशामाता की वेल
पूजा समाप्ति के पश्चात महिलाओं द्वारा दशावेल धारण की जाती है। दशावेल हल्दी से रंगा हुआ पीले रंग का एक धागा होता है जिसमें दस गांठे होती है। महिलाएं इस वेळ को वर्षभर गले में धारण करती है। पूजा के बाद पीपल की छाल को सोना मानकर कनिष्ठा या चट्टी अंगुली से खुरेचकर घर लाया जाता है और अलमारी, तिजोरी, पेटी या मंजुशाा में रखा जाता है। साथ ही अपने घर व परिवार की बुजुर्ग स्त्रियों के पैर छूकर उनसे सौभाग्य व समृद्धि का आशीर्वाद लिया जाता है।

)

Leave A Reply

Your email address will not be published.