ओडीएफ की अवहेलना, ग्रामों में गुणवत्ताविहीन शौचालय का उपयोग हो रहा कबाडख़ाने व चारा भरने में, अधिकारियों ने गुमराह कर करवा ली ओडीएफ

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भूपेंद्र बरमंडलिया, मेघनगर
ओडीएफ का मतलब है खुले से शौच मुक्त, जिसकी शुरुआत प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्वच्छ भारत मिशन के तहत 2 अक्टूबर 2014 को राजघाट से की थी। इस मिशन को पूरा करने का लक्ष्य राष्ट्रपिता के 150वीं पुण्यतिथि यानी 2 अक्टूबर 2019 तक का रखा गया है। एक ग्राम पंचायत या एक गांव तब तक खुले में शौच से मुक्त नहीं मानी जाती जब तक गांव का एक-एक व्यक्ति शौचालय का प्रयोग नहीं करने लगता हो। अगर उस गांव का 6 महीने का बच्चा भी शौचालय का प्रयोग नहीं कर रहा है तो गांव खुले में शौच से मुक्त नहीं माना जाता है। एक ओर स्वच्छ भारत मिशन के नारे हर गली मोहल्ले में गूंज रहे हैं । इसके उलट आज भी ग्रामीण इलाकों में स्वच्छता अभियान महक एक मजाक बन कर रह गया है, लाखों-करोड़ो की राशि खर्च कर शौचालय का निर्माण तो किया गया मगर यह शौचालय अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा रहे हैं, तो कई जगह शौचालय पशुओं के लिए चारा भरने का स्थान बनकर रह गए है, तो कई जगह कबाड़ खाने बन गए है। इस मामले मे बात झाबुआ जिले के मेघनगर की करे तो ओडीएफ (खुले में शौच मुक्त) घोषणा करने के लिए पिछले कई माह से झाबुआ जिला कलेक्टर आशीष सक्सेना से लेकर अधिकारी लगे हुए थे। मॉर्निंग फॉलोअप कर खुले में शौच करने वालो को समझाइश दी गई और शोचालय निर्माण के कार्य की गति बढ़ाने के लिए लक्ष्य निर्धारित कर मैदानी अमले को तेजी से कार्य में लगाकर कलेक्टर आशीष सक्सेना ने पिछले माह मेघनगर ब्लॉक की कई पंचायतों का ओडीएफ घोषित कर दी।
कलेक्टर आशीष सक्सेना को अपने मैदानी अमले ओर अधिकारी पर गर्व है। अगर बात जमीनी हकीकत की करे तो मैदानी अमले ने कलेक्टर को गुमराह कर शैचालय निर्माण का लक्ष्य पूर्ण कर इन पंचायतों को ओडीएफ घोषित करवा लिया है। मामला मेघनगर ब्लाक की ग्राम पंचायत पंचपिपलिया, आमलियामाल, रंभापुर, पतरा, गवाली सहित करीबन 33 पंचायतों को ओडीएफ करवा कर जमीनी अमले ने अपनी पीठ थपथपा ली। मगर हकीकत में इन पंचायतों में शौचालय की हालत काफी दयनीय है। इतना ही नही कई जगह तो शौचालय का निर्माण तक नहीं किया गया और जहां शौचालय बने है तो इनका उपयोग मात्र कंडे(उपले) घर का भंगार व पशुओं के चारा रखने में हो रहा है। ग्रामीण अंचल में बने शौचालय के तो सेफ्टी टैंक बिना मापदंड व गुणवत्ता विहीन बना दिए गए, सीट तक सही नहीं लगाई गई। ऐसे मे सबसे बड़ा सवाल यह है की मैदानी अमले को यह पता है की नहीं ओडीएफ का मतलब होता क्या है जबकि ओडीएफ का मतलब होता है (खुले में शोच मुक्त गांव) मगर जिन पंचायतों के ग्रामों में शौचालय का निर्माण तक नहीं हुआ और जहां बने हैं वहां गुणवत्ताविहीन है तो ग्रामीण अभी भी खुले में शौच कर रहे हैं तो शासन स्तर पर बैठे आला अधिकारियों ने आनन-फानन में ओडीएफ करवाकर खुले में शौच मुक्त कैसे कर दिया गया, गंभीर सवाल है। शासन में बैठे अधिकारियों को चाहिए कि वे मुख्यालय पर बैठकर ओडीएफ नहीं करे बल्कि गांवों में मॉटरिंग करे उसके बाद ही ओडीएफ करवाए। ऐसे में जब संबधित अधिकारियों से इन पंचायतों के बारे मे जानकारी लेना चाहि तो सभी के फोन स्विच ऑफ मिले।

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