भीलप्रदेश राज्य बनाने की मांग को लेकर दिया ज्ञापन, 36 सूत्रीय मांगे रखी 

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जितेंद्र वर्मा, जोबट

देश के चार प्रमुख राज्यों – मध्यप्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र और गुजरात – के आदिवासी क्षेत्रों में एक साथ भीलप्रदेश राज्य की माँग को लेकर एक ऐतिहासिक ज्ञापन सौंपा गया। इस ज्ञापन के माध्यम से अलीराजपुर जिले के जोबट में भी आदिवासी संगठनों ने भारत सरकार से माँग की है, कि भील समाज को उनकी ऐतिहासिक पहचान, सांस्कृतिक अधिकार और संवैधानिक हक़ों के आधार पर एक पृथक भीलप्रदेश राज्य का गठन किया जाए। 

ज्ञापन में उल्लेख किया गया है कि आदिवासी समाज बीते 20 लाख वर्षों से भारत की भूमि पर मूल निवासी (Indigenous Peoples) के रूप में मौजूद हैं। फिर भी आजादी के 77 साल बाद भी जल, जंगल, जमीन, भाषा और पहचान को लेकर लगातार शोषण और उपेक्षा का सामना कर रहे हैं। अंग्रेजों ने जिन क्षेत्रों को प्रशासनिक सुविधा के लिए बाँटा था, उन्हें आज भी चार राज्यों में टुकड़ों में रखा गया है, जबकि इन क्षेत्रों की संस्कृति, भाषा और भूगोल एक है। ज्ञापन में संविधान के अनुच्छेद 3, अनुच्छेद 244(1), पांचवी अनुसूची, वन अधिकार कानून, भूमि अधिकार, भाषा अधिकार और आदिवासी जनगणना जैसे कुल 36 बिंदुओं का हवाला देते हुए माँग की गई कि अब इन बिखरे हुए क्षेत्रों को जोड़कर भीलप्रदेश राज्य का गठन किया जाए। ज्ञापन में यह भी माँग की गई कि भीली भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किया जाए, आदिवासी क्षेत्रों के लिए जल परियोजनाएँ मंजूर की जाएँ, वन भूमि पर क़ब्जा हटाकर ग्रामसभाओं को अधिकार दिए जाएँ और आदिवासी युवाओं को डीएनए आधारित प्रमाणपत्र के माध्यम से सरकारी सेवाओं में भागीदारी मिले।

ज्ञापन में यह चिंता भी जताई गई है कि जंगलों में आदिवासियों की खेती, रहन-सहन और पूजा स्थलों को नष्ट किया जा रहा है। प्रशासनिक मशीनरी, विशेषकर पुलिस और वन विभाग, गैर-आदिवासी कंपनियों और भू-माफियाओं के पक्ष में कार्य कर रहे हैं, जिससे आदिवासी समाज की आजीविका और अस्मिता दोनों खतरे में हैं। अंत में ज्ञापन के माध्यम से राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, सुप्रीम कोर्ट, मानवाधिकार आयोग और अनुसूचित जनजाति आयोग से अपील की गई कि आदिवासी समाज को भारत की पहली राष्ट्र के रूप में मान्यता देते हुए Aborigines Card या Indigenous Card जारी किया जाए, ताकि वे भारत में बिना किसी रोकटोक के अपने मूल क्षेत्र में आवाजाही कर सकें और सड़क, टैक्स, भूमि जैसे मूलभूत अधिकारों से वंचित न रहें। ज्ञापन में साफ कहा गया है कि अगर हमारी संवैधानिक मांगें नहीं मानी गईं तो समाज शांतिपूर्ण जनआंदोलन करेगा और अपनी अस्मिता की रक्षा के लिए सड़क से संसद तक संघर्ष जारी रहेगा।

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