दीमक बन खा गए सीसी रोड, ‘पोर्टल पर पूर्ण, जमीन पर अधूरा’ विकास के दावों की खुली पोल

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जितेंद्र वर्मा, जोबट

केंद्र व राज्य सरकार ग्रामीण क्षेत्रों के विकास कार्यों के लिए करोड़ों रुपए खर्च कर रही है, लेकिन भ्रष्टाचार के कारण यह पैसा बर्बाद हो रहा है। जोबट जनपद पंचायत की ग्राम पंचायत डेकाकुंड के सेमल्दा गांव में बालक छात्रावास से मेन रोड तक बनने वाली सीसी रोड इसका जीता-जागता उदाहरण है। सरकारी पोर्टल पर इस सड़क को ‘पूर्ण’ बताया जा रहा है, जबकि हकीकत में इसका महज 30% काम ही पूरा हुआ है। यह स्थिति न केवल सरकारी दावों पर सवाल खड़े करती है, बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों में विकास कार्यों की निगरानी और पारदर्शिता पर भी गंभीर प्रश्नचिह्न लगाती है।

क्या है पूरा मामला?

ग्राम सेमल्दा में बालक छात्रावास से मुख्य सड़क तक सीसी रोड निर्माण का कार्य स्वीकृत हुआ था। स्थानीय ग्रामीणों का आरोप है कि सरकारी रिकॉर्ड में इस कार्य को पूरी तरह से संपन्न दिखा दिया गया है, जबकि मौके पर देखने पर पता चलता है कि सड़क का एक बड़ा हिस्सा अभी भी कच्चा है और मात्र 30% ही सीसी कार्य हो पाया है। शेष भाग पर न तो निर्माण सामग्री डाली गई है और न ही आगे का काम शुरू हुआ है।

विकास के दावों की खुली पोल

यह घटना दर्शाती है कि कागजों पर विकास की गंगा बहाई जा रही है, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है। ‘पोर्टल पर पूर्ण’ की स्थिति तब और भी चिंताजनक हो जाती है जब ग्रामीणों को उसी सड़क पर धूल और बारिश में कीचड़ व गड्ढों से जूझना पड़ता है, जिसका काम सरकारी तौर पर पूरा हो चुका है। यह सीधे तौर पर जनता के साथ धोखाधड़ी और सरकारी धन के दुरुपयोग का मामला है।

किसकी जवाबदेही? : इस पूरे प्रकरण में कई सवाल खड़े होते हैं

  • आखिर किस आधार पर इस सड़क को पोर्टल पर पूर्ण घोषित किया गया?

  • क्या संबंधित अधिकारियों ने मौके पर जाकर सत्यापन नहीं किया?

  • क्या ठेकेदार और अधिकारियों की मिलीभगत से यह गड़बड़ी की गई है?

  • ग्रामीणों की समस्याओं को कब सुना जाएगा?

पारदर्शिता और जवाबदेही की दरकार

यह घटना केवल सेमल्दा तक सीमित नहीं है, बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों में ऐसे कई उदाहरण देखने को मिलते हैं जहां विकास कार्यों की गुणवत्ता और पूर्णता पर सवाल उठते रहे हैं। ऐसे मामलों में तत्काल उच्च-स्तरीय जांच और दोषियों पर कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए। साथ ही, विकास कार्यों की निगरानी प्रणाली को और अधिक पारदर्शी और जवाबदेह बनाने की आवश्यकता है। इसमें स्थानीय जनप्रतिनिधियों और ग्रामीणों की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित करना भी महत्वपूर्ण है।

जब तक कागजी खानापूर्ति पर रोक लगाकर जमीनी हकीकत पर ध्यान नहीं दिया जाएगा, तब तक ‘सबका साथ, सबका विकास’ का नारा केवल एक नारा ही बनकर रह जाएगा। सेमल्दा की यह सीसी रोड एक चेतावनी है कि हमें अपने विकास के दावों की पड़ताल करनी होगी और यह सुनिश्चित करना होगा कि वे केवल पोर्टल पर ही नहीं, बल्कि जमीन पर भी सच्चे उतरें।

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