इंडियन रॉबिन हुड भगवान टांटिया भील का आदिवासी समाज द्वारा शहादत दिवस मनाया गया

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जितेंद्र वर्मा, जोबट

प्रतिवर्ष अनुसार इस वर्ष भी इंडियन रॉबिनहुड भगवान टांटिया भील के गाता स्थल पर पहुंचकर सामाजन दीप प्रज्ववलित कर पुष्पमालाओं से माल्यार्पण कर पुष्पांजलि अर्पित कर शहादत दिवस मनाया गया। ततपश्चात उपस्थित सभी ने रॉबिनहुड टांटिया भील की जीवन गाथा उनके संघर्ष के बारे में उपस्थित सभी ने अपने -अपने विचार रखे।

इस अवसर पर जनपद सदस्य श्री कालूसिंह मेहड़ा व जिला पंचायत सदस्य श्रीमती रिंकुबाला-लालसिंह डावर ने रॉबिनहुड टांटिया भील के बारे  बताया क्रांतिकारी टांटिया भील ब्रिटिशो की नींद उड़ाने वाले अकेले काफी थे। उस समय अंग्रेज हमारे लोगों पर शोषण अत्याचार कर जल जंगल छीनने का काम किया हमारे खून पसीने की कमाई को रेलगाड़ियों में भरकर इंगलिस्तान ले जाने का काम कर रहे थे। लेकिन सारा रुपया टांटिया भील मध्यप्रदेश के महू के पास पातालपानी के जंगलों से होकर जब ट्रेन गुजरती थी।भगवान टांटिया बिजली की तरह प्रकट होते थे। और  लूट का सारा धन  जंगलों में लेकर गायब हो जाते थे। यह पैसा धन जरूरतमंदों और गरीबो में विवाह,भोजन कपड़ा मकान,एवं बीमारों के उपचार के लिए पैसा बाट दिया करते थे।,इसी कारण टांटिया भील को लोग मामा का दर्जा दिया लेकिन अफसोस की बात है कि टांटिया भील को चोर का नाम दिया गया। टांटिया भील को आज ही के तारीख 4 दिसम्बर 1889 को जबलपुर सेंट्रल जेल में फाँसी दी गयी।  लेकिन टंट्या भील आज भी लोगों के दिलो में जिंदा है। टांटिया के विचारों से बिरसा मुंडा डॉक्टर भीमराव अंबेडकर प्रभावित होकर अंग्रेजी हुकूमत एवं पूंजीपतियों के खिलाफ हुवे। आज उनके विचारों उनके संघर्षों को आदिवासी समाजिक संगठनो द्वारा जनजन तक पहुंचाने का काम कर रहे है। तमाम आदिवासी संगठन पिछले 12 वर्षों से आदिवासियों की पहचान करवाने 5वी 6वी अनुसूची में मिले विषेश संवैधानिक अधिकारों की रक्षा सहित अपनी मूल संस्कृति की पहचान को संरक्षित करने के उद्देश्य से जागरूकता का काम कर रहे है। जिला पंचायत सदस्य ने कहा बाबा साहेब का सपना था जिन सघर्षो के कारण हमारे महापुरुष शहीद हुवे जिस संविधान की बदौलत आपको जो अधिकार  मिले उसमें तुम नया कुछ नही कर सकते तो मत कीजिए। लेकिन जो है। उसे बचाने का काम करना चाहिए।आपके अस्तित्व को मिटाने के लिए हर तरह से प्रयास हो रहे है। आज हमारे सामाजिक संगठन के लोग  जगज -जगह महापुरुषों की जयंती मनाई जाने लगी। मूर्ति लगने लगी।सरकारों को टांटिया भील भगवान बिरसा मुंडा की याद आने लगी। अस्पतालों स्थानों , कॉलेजों के नाम हमारे शहीदों के नाम बदलकर जो आदिवासी हितेषी होने का दिखावा हो रहा।जबकि हमारे महापुरुषों की आज किसी शासकीय अशासकीय संस्थाओं में फ़ोटो तक मिलती है। उनके जीवन संघर्ष का इतिहास नही मिलता स्थानों के नाम बदलने से नही बल्कि हमारे महापुरुषों की सच्ची श्रद्धांजलि तब होगी जब उनके द्वारा दिये गए अधिकारों की रक्षा होगी उनका सम्मान होगा। इस अवसर पर जिला पंचायत सदस्य श्रीमती रिंकुबाला डावर ने कहा हमारे अलीराजपुर जिले के कलेक्टर महोदय  अविन्द बेडेकर का समाजजन की तरफ से बहुत – बहुत आभार कलेक्टर महोदय आदिवासियों की भावनाओं को समझते हुवे जिले में स्थानीय शाहदत दिवस पर स्थानीय अवकाश घोषित किया। इस अवसर पर राजेश भूरिया, श्री थानसिंह भयडिया,श्री बिशनसिंह चौहान, श्री थानसिंह जी जमरा,श्री हिरेसिंह मिनावा,प्रदीप मेहड़ा,सुनील मेहड़ा,इंदरसिंह श्री थांवला भूरिया,आदि लोग उपस्थित रहे।

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