EXCLUSIVE: दमोई कांड में न्यायालय ने 11 आरोपीयो की अपील की खारिज, 3 साल की सजा और अथदंड ….

0

सलमान शैख़@ झाबुआ Live
आज मप्र के झाबुआ जिले के पेटलावद न्यायालय में पिछले 9 वर्ष पुराने अंतरराज्यीय दमोई कांड मामले में हुई अपील पर न्यायाधीश फैसला सुनाया है। यह मामला दो मुंह के सांप दमोई की खरीदी बिक्री का है। जिसमें अपर सत्र न्यायाधीश जैसी राठौर ने प्रथम श्रेणी न्यायिक मजिस्ट्रेट अनिल कुमार चौहान के फैसले को यथावत रखते हुए सभी की अपील खारिज करते हुए 4 आरोपी को 3 साल और 15 हजार रूपए अर्थदंड और 7 आरोपीयो को 3 साल सश्रम कारावास और 10 हजार रूपए के दंड को बरकरार रखा है।

क्या है दमोई कांड:
दरसअल, पेटलावद पुलिस ने 4 फरवरी 2011 को तत्कालिन टीआई अखिलेश द्विवेदी के मार्गदर्शन में मुखबीर की सूचना पर पेटलावद पुलिस ने ग्राम छोटी गेहंडी के रामगढ़ तिराहा से घेराबंदी करकर बामनिया निवासी रामूनाथ पिता नाथूनाथ, विठ्ठल पिता धुलानाथ, भंवरनाथ पिता नाथुनाथ को आदि को अवैध रूप से दमोई सांप को बेचते हुए रंगेहाथो पकड़ा था। डिसकवरी चैनल पर इसके विषय में विस्तृत जानकारी के अनुसार झाबुआ जैसे आदिवासी अंचल से इसकी मांग अधिक थी। जो सीधे गुजरात के अहमदाबाद और सुरत तक पहुंचती थी।
ऐसे आए थे पकड़ में:
इस मामले में विक्रेता सारा गेम खेलकर सौदा कर रहा था। तभी विक्रेता नाथ बंधुओ ने रूपया तो ले लिया, लेकिन दमोई नही दी। पुलिस सारे मामले पर मुखबीर की सूचना के बाद निगाह रखे हुई थी। पंकज ने बामनिया पुलिस चौकी पर फोन लगा और उसके पास 90 हजार की लूट की जानकारी दी। इसके बाद पुलिस ने बोलेरो सहित रूपए और आरोपीयो को दमोई के साथ रामगढ़ तिराहे पर धरदबोचा, लेकिन पुलिस को फोन लगाकर विक्रेता मौके से गायब हो गया। पुलिस ने जब विक्रेता को उसके रूपए देने के लिए बुलाया तो क्रेता-विक्रेता की बात सामने आ गई और दोनो ने यह कबूल कर लिया।
इन आरोपीयो को यह मिली सजा:
इस मामले में रामूनाथ, भंवरनाथ, विठ्ठलनाथ और विक्रेता को वन्य प्राणी संरक्षण अधिनियम की धारा 9/51, 48/51, 49/59 के तहत प्रत्येक में 3 वर्ष का सश्रम कारावास और 15 हजार रूपए के अर्थदंड से न्यायिक दंडाधिकारी प्रथम श्रेणी श्री चौहान ने दंडित किया था।
वहीं बल्लू, रामनिवास, अतुल, सुखबीर, तेजवीर और मनोज को धारा 9/51 और 49/51 के तहत प्रत्येक में 3 वर्ष का सश्रम कारावास और 10 हजार रूपए से दंडित किया था। इन सभी की यह सजा बरकरार रखी गई है। इस मामले में मप्र राज्य की ओर से प्रकरण का सफल संचालन सहायक जिला लोक अभियोजन अधिकारी प्यारेलाल चौहान द्वारा किया गई थी। यह जानकारी मीडिया सेल प्रभारी सुरेश जामोद द्वारा दी गई।
क्या है दमोई और क्यो की जाती है तस्करी:
यह तो आप जानते ही होंगे कि सांपों की मदद से कई दवाइयां बनाई जाती है यहां तक की इसकी चमड़ी के भी बहुत सारे फायदे हैं। दुनियाभर में सांपों की बहुत सारी प्रजातियां है, जिसमें एक प्रजाति है रेड सैंड बोआ। आम बोल चाल में लोग इसे दो मुंह वाला सांप कहते है यानि की इसकी पूंछ की जगह पर एक अन्य मुंह लगा होता है।
धड़ल्ले से हो रही है इसकी तस्करी:
रेड सैंड बोआ की तस्करी धड़ल्ले से हो रही है। दमोई सांप न जहरीला होता है, न गुस्सैल। लगभग एक मीटर से ज्यादा लंबे इस सांप की औसत उम्र 15−20 साल तक होती है। दमोई की खासियत है इसकी पूंछ, जो मुंह की तरह दिखती है, इसलिए इसे दोमुंहा सांप भी कहा जाता है।कई दवाएं बनाने में रेड सैंड बोआ यानि दमोई का इस्तेमाल हो रहा है। चीन, ताइवान, मलेशिया जैसे देशों में इनकी मांग बहुत है।
वजन के हिसाब से मिलती है तस्कारो को कीमत:
दमोई की मुख्य रूप से महाराष्ट्र और गुजरात में विशेष मांग थी। इससे अरब कंट्रीस में जवानी की ताकत व एड्स से संबंधित दवाई का निर्माण होता है। जो विदेशी व भारतीय बाजार में लाखो की किमत में बिकती है। बशर्ते इसका वजन 3 किलो से अधिक हो। इस सांप की तस्करी के दौरान इसके शरीर के टुकड़े कर अलग-अलग देशों में बेचा जाता है। इनकी मार्केटिंग वजन के हिसाब से होती है। यदि यह दो किलो से अधिक का होता है, तो इसकी कीमत दो से तीन लाख रुपए तक बाजार में मिल जाती है।
तस्करो ने दमोई को ला दिया विलुप्त प्रजाति की कैटेगिरी में:
दमोई के तस्कर इससे जुड़ी मान्यताओं को भी भुनाते हैं। अगर घर के आसपास यह दिख गया, तो देश के कई इलाकों में इसे शुभ संकेत माना जाता है। दक्षिण के कई राज्यों में इसे मटके में रखा जाता है और माना जाता है कि इससे धन की प्राप्ति होती है। मान्यता घर की तरक्की से जुड़ी है, इसलिए जहरीला नहीं होने से लोग इसे पालने से डरते नहीं।
इतना ही नहीं अगर इसे पाला, तो आमदनी का एक और जरिया भी खुलता है। पूजा के लिए लोग इसे किराये पर भी लगाते हैं और पैसे घंटे के हिसाब से मिलते हैं। उधर, ऐसे मामले भी कम नहीं, जब इस दोमुंहे की आहुति दी जाती है और ये मान्यता जुड़ी है काला जादू से। एक जानकारी के मुताबिक दक्षिण एशियाई देशों में इससे ताकत की गोलियां भी बनाई जाती हैं। कुछ नई दवाओं के रिसर्च में भी इसे आजमाया जा रहा है।
दक्षिण एशिया के कई देशों में इन सांपों को पाला भी जाता है, लेकिन दवाओं और रिसर्च में इनकी जरूरत को देखते हुए बड़ी तादाद में इनका शिकार भी हो रहा है। इस दो मुंह के लिए इस बेजुबान को बहुत तकलीफ दी जाती है और उसकी पूंछ को जलाकर उसमें मोम भरा जाता है और उसे आंखों की शक्ल दी जाती है, ताकि बोआ को दोमुंहा बताया जा सके। शिकारियों ने लालच की इंतेहा में दमोई को विलुप्त प्रजातियों की कैटगरी में खड़ा कर दिया है।

Leave A Reply

Your email address will not be published.