सिर्वी समाज ने पेटलावद में मनाई बेतमार होली, 252 वर्ष पुरानी परंपरा को निभाया

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सलमान शैख़@ झाबुआ Live

पेटलावद। रंग से भरे बड़े कड़ाव में मस्ती करते युवा, लाठियो से पुरूषो को पीटती महिलाएं एवं बालिकाएं, यहां रगो और बौछारो के बीच बुधवार को नगर में ब्रज सी होली का दृश्य देखने को मिला। मौका था सिर्वी समाज की बेंतमार होली पर्व का। रंगों ओर बौछारों के बीच ब्रज की होली का दृश्य यहां भी देखने को मिला। किंतु यह गांव उत्तरप्रदेश के वृंदावनधाम नही बल्कि मध्यप्रदेश के झाबुआ जिले का पेटलावद हैं जहां के सिर्वी समाज बेतमार होली पर्व मनाता हैं। इस अनोखी होली को देखने के लिए समाज के अलावा अन्य समाज के लोग भी आयोजन स्थल पर पहुंचते हैं। यह होली सिर्वी समाज बाहुल्य चमठा चौक में खेली गई। समाज ने अपनी 252 वर्ष पुरानी इस परंपरा का बखूबी निभाया। शीतला सप्तमी के दिन मनाया जाने वाले पर्व की परंपराओं में एक इस पंरम्परा का भी समावेश है।  वार को पेटलावद की इस होली ने उस ब्रज की होली को जरूर याद दिला दिया। समाजजनों का उत्साह इस ओर देखते ही बनता था सिर्वी मोहल्ला, पुराना बस स्टेंड आदि हिस्सों से रंगारंग गैर भी निकाली गई। होली खेलने का क्रम शाम तक चलता रहा। प्रदेश में क्षत्रिय सिर्वी समाज जिनके की पूर्वज राजस्थान से आए थे और जो मुख्य रूप से कृषि प्रधान समाज है। उसमें होली पर्व सिर्फ  रंग छीटकर ही नहीं मनाया जाता बल्कि रंग छीटने के बदले पुरूषों को महिलाओं के हाथ से बेतों की मार भी खाना पडती हैं। जिसे देखने के लिये पूरे इलाके से हजारों की संख्या में लोग इस समाज के बाहुल्य वाले इलाकों में एकत्रित हुए। शीतला सप्तमी जो कि होली का दहन के 6 रोज बाद आती है तथा शीतला माता के दिन के रूप में भी मनाया जाता है।

ऐसे मनती हैं होली

सप्तमी को सुबह से ही सिर्वी समाज के लोग एक चौक में बडे-बडे लोहे के कडाव रख दिए गए, जिसमें पानी भरकर लाल रंग डाल दिया गया। दोपहर होते-होते सैकड़ो महिला-पुरूष एकत्रित हो गए। इन लोहे के कडावों के एक सिरे पर महिलाएं हाथों में बेंत लेकर खडी थी और दुसरी ओर से पुरूष वर्ग के लोग गैर के रूप में फाग गाते हुए सामने से आ रहे थे। जैसे ही पुरूषो ने महिलाओं पर हाथों से कडाव में भरा रंग उछाला और महिलाओ ने आव देखी है न ताव और सटाक-सटाक बेतों की वर्षा, रंग की वर्षा करने वाले पुरूषों पर कर दी। महिलाओं की इस मार से बचने के लिए पुरूषों के हाथ में अंग्रेजी की टी के आकार का लकडी का हत्था होता है। कोई दो तीन घंटो तक इस तरह होली खेलने के बाद लकडी से बने घोडे को नचाकर मनोरंजन भी हुआ।

सप्तमी पर ही क्यो मनता हैं पर्व

सिर्वी समाज के वरिष्ठजननो के अनुसार समय बदल गया, पश्चिमी संस्कृति की ओर युवाओं का रूझान बढा पर समाज में अब भी यह पंरम्परा जीवित है। जिसमें सभी युवा, बुर्जग व बच्चे बढचढकर हिस्सा लेते हैं। सप्तमी भी होली का पर्व महत्वपूर्ण माना जाता है। आपको बता दे कि सिर्वी समाज आई माता के रूप में देवी शक्ति का पुजारी है और होली भी सप्तमी के रोज जो कि देवी शीतला माता का दिन होता हैं इसी से जोडकर यह पर्व आज के दिन मनाया जाता हैं।

पीढीयों से चली आ रही परंपरा

समाज के बुजुर्गो ने बताया समाज में बेतमार होली की परंपरा पीढीयों से चली आ रही हैं जिसे आज भी निभाया जा रहा हैं। नगर में यह परंपरा करीब 250 वर्षों से लगातार चल रही हैं। यह पर्व मध्यप्रदेश के साथ राजस्थान, गुजरात ओर महाराष्ट्र में भी सिर्वी समाज बाहुल्य ईलाके में मनाया जाता हैं। यह त्योहार सिर्वी समाज बाहुल्य मध्यप्रदेश के कुक्षी, धुलेट, बडवानी, मनावर, पेटलावद, सिंघाना, बदनावर, रूपगढ व टिमायची आदि स्थानों पर मुख्य रूप से धूमधाम से मनाया जाता है।

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