संसद भवन में कांतिलाल भूरिया ने जनजातीय लोगों के बजट कम करने पर जताई चिंता

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झाबुआ। सांसद कांतिलाल भूरिया द्वारा 28 फरवरी को संसद भवन नईदिल्ली में आयोजित सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय की स्थाई समिति की बैठक में जनजातीय कार्य मंत्रालय के अनुदान मांगों के संबंध में चर्चा में भाग लेते हुए जनजाति के लोगों के लिए विभिन्न योजनाओं में बजट अनुमान को पूर्ण रूप से व्यय नहीं किए जाने एवं वर्ष 2017-18 में 2014-15 की तुलना में कम कर दिए जाने पर अपनी चिंता से सरकार को अवगत करवाया। बैठक में मौजूद अधिकारियों द्वारा भी संतोषजनक उत्तर नहीं दिए जाने पर उन्हें आड़े हाथों लिया। मौजूद अन्य संसद सदस्यों द्वारा भी सांसद कांतिलाल भूरिया का समर्थन किया तथा समिति के अध्यक्ष रमेश बैस से भी इस बात को गंभीरता से लेने हेतु आग्रह किया। मंत्रालय के योजनावार व्यय या गैर योजना वार, जनजातीय उपयोजना को विशेष केंद्रीय सहायता संविधान के अनुच्छेद 275/1 के तहत अनुदान अनुसूचित जनजातियों के कल्याण के लिए स्वैच्छिक संगठनों को सहायता अनुदा राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति वित्त और विकास निगम को सहायता लघु वन उत्पाद के लिए न्यूतक समर्थन मूल्य जनजाति क्षेत्रों में आश्रम, स्कूल आदि योजनाओं में वर्ष 2014-15 में जो बजट अनुमान यूपीए सरकार ने रखा था उससे 2015-16 से 2017-18 तक या तो समकक्ष ही रखा है या कम दिया गया है जबकि वास्तविक व्यय नहीं किए जाने से उपरोक्त योजनाओं को मूर्त रुप दिया जाना भी कठिन हो गया है।
आदिवासियों को नहीं मिल रहे वन भूमि के मालिकाना हक-
सांसद भूरिया ने बताया कि स्वास्थ्य क्षेत्र में आदिवासियों को उचित इलाज एवं दवाइयां उपलब्ध नहीं करवाया जाना, आदिवासी उप योजना का बजट कम दिया जाना और उसे गैर-आदिवासी योजनाओं में व्यय कर दिया जाना। यूपीए सरकार द्वारा छात्रवृत्ति दोगुनी कर दी गई थी, लेकिन पिछले दो वर्षों से आदिवासी छात्रों को छात्रवृत्ति नहीं मिलना, एकलव्य आश्रम स्कूल योजना को 650 जिलों में बंद किया जाना, छात्रों को गुणवत्ता पूर्वक शिक्षा उपलब्ध नहीं करवाया जाना, स्कूलों में शिक्षकों के पद रिक्त होने से अच्छी शिक्षा का प्रचार नहीं होना, आदिवासियों की भूमि पट्टे नहीं दिया जाना तथा प्रशासन द्वारा उन्हें तंग किया जाना, उनके भूमि संबंधी कागजातों को फाड़ कर फेंक देना जिससे की उन्हें वन भूमि का मालिकाना हक नहीं मिल पाता है और वह दर-दर की ठोंकरे खाने को मजबूर हुए हैं या फिर वह पलायन को मजबूर है। वन उपज में आदिवासियों को सारे लाभ दिया जाना, आदर्श ग्रामों हेतु 300 करोड़ रुपए उपलब्ध होने के बावजूद भी कोई प्रगति नहीं हुई है। भूरिया ने कहा कि आदिवासियों की जमीन को गैर-आदिवासियों जो देने हेतु कलेक्टरों द्वारा स्वीकृति दी जाना। प्रदेश में बैकलॉग के एक लाख 50 हजार पदों को नहीं भरने से आदिवासियों में बेरोजगार हो गई है। मनरेगा में आदिवासियों को मजदूरी नहीं मिलना, व्यापमं घोटाले में उच्चम न्यायालय द्वारा 650 डॉक्टरों को अवैध करार दिया जाना आदि केंद्र और राज्य सरकार का तमाशाबीन होना और आदिवासियों पर घोर उपेक्षा का आरोप लगाया तथा सरकार से आदिवासियों की दशा सुधारने हेतु उनके लिए जो कल्याणकारी योजनाओं है उनका ठीक प्रकार से लागू किया जाना सुनिश्चित करने की मांग सांसद कांतिलाल भूरिया ने की। सांसद भूरिया ने कहा कि बजट अनुमान का शत प्रतिशत व्यय किए जाने से ही आदिवासियों को कल्याणकारी योजनाओं का लाभ मिल सकेगा।

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