श्रीमद भागवत कथा को सुनने उमड़ा भक्तों का तांता

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1 2 झाबुआ लाइव के लिए पारा से राज सरतलिया का रिपोर्ट- श्रीमद् भागवत कथा की ज्ञानगंगा का अनवरत वर्णन जारी है पंडित अशोकानंदजी रामायणी के मुखारबिंद से। व्यास पीठ पर विराजमान पंडित अशोकानंदजी द्वारा भागवत कथा के दूसरे दिन राजा प्रशिक्षित कथा का वर्णन करते हुए उपस्थित धर्मावलंबियों को विस्तार पूर्वक समझाया। गुरु कैसा हो, इसका भी अपनी ओजस्वी वाणी से उपस्थित जनता को धर्म गुरु की महिमा का बखान करते हुए बताया कि गुरु समरस एवं समर्थ हो तो परमात्मा परमपिता परमेश्वर तक पहुंचने का सरल एवं सहज मार्ग उपलब्ध करा सकता है।

धर्म पर भी डाला प्रकाश

व्यासपीठ पर विराजमान पंडित अशोकानंदजी ने धर्म की महिमा का बखान करते हुए कहा कि धर्म का मतलब समर्पण और नि:स्वार्थ, नीस काम भाव से किए गए कर्म को धर्म कहते हैं। सबसे बड़ा धर्म मानवता या इंसानियत का धर्म कहलाता है। लेकिन आज के इस स्वार्थ एवं लालची धर्म के ठेकेदारों ने धर्म की अलग-अलग मान्यता एवं शोषण एवं अपना उल्लू सीधा करने के लिए धर्म की आड़ में अपनी दुकानदारी चला रखी है। मजहब नहींसिखाता आपस में बैर रखना, लेकिन आज के इस युग में कई संप्रदाय तथा समाज भिन्न-भिन्न टुकड़ों में बंटता चला जा रहा है और स्वयं के स्वार्थ के लिए इनसान को इनसान से जुदा कर रहे हैं, जबकि सभी को एक ही धाम जाना है। मंजिल एक ही है रास्ते भिन्न-भिन्न है।
भक्ति का बताया महत्व
पंडितजी ने अपने प्रवचन में उपस्थित धर्मावलंबियों को सीख दी कि जीना सीखना हो तो रामायणजी का श्रवण करे और मरण सुधारना हो तो भागवत कथा का श्रवण करें जिसका मरण सुधार गया उसका जीवन अपने-आप ही सुधार जाएगा। कौरवों एवं पंडवों की महाभारत ही गाथा का स्मरण कराते हुए भगवान सुदर्शन चक्रधारी श्रीकृष्ण की महिमा का बखान करते हुए कहा कि ब्राह्म्ïाण, क्षत्रिय आदि के घर हस्तीनापुर में भोजन न करते हुए एक दासी पुत्र विदुर जैसे देश निकाला दिया गया था उसके घर जाकर भगवान श्री हरि ने विदुर काका के हाथ का बना उबले पत्तों का पानी पीकर अपनी भूख मिटाई। इसको पंडित अशोकानंदजी ने इतनी आत्मीयता के साथ वर्णन किया कि उपस्थित धर्मावलंबियों के दिल को छू गया। वहींकथा को आगे बढ़ाते हुए राजा मनु, कपिल मुनि की गाथाओं का वर्णन किया। साथ ही साथ मनुष्य जीवन का उद्धार कैसे हो, इसको दो उपाय भी पंडितजी ने बताए। पहला योग मार्ग और दूसरा भक्ति मार्ग है जिसमें सबसे सरल एवं सहज भक्ति मार्ग है, जिससे आसानी से मोक्ष को प्राप्त किया जा सकता है।
अभिमान का चौला उतार कर चलें
पंडित अशोकानंदजी रामायणी ने भागवत कथा के अमृत रसवादन कराते हुए बताया कि आज की इस चकाचोंध भरी जिंदगी में सभी अभिमान का चौला ओढ़कर चल रहे हैं। मंदिर में जाते हैं तो भी मैं का अभिमान, रुपयों का अभिमान, पद-प्रतिष्ठा का अभिमान। इसी प्रकार सत्संग में जाते हैं तो भी यह माया रुपी अभिमान हमारा पीछा नहींछोड़ता, जिसने मैं और अभिमान का त्याग कर दिया उसका जीवन-मरण दोनों ही सुधार जाएगा।

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