भारी तादाद में रोजाना प्रवासी मजदूरों का आगमन प्रशासन को व्यवस्था संभालने में हो रही दिक्कत

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भूपेंद्रसिंह नायक, पिटोल
कोरोना ना महामारी से बचाव के लिए लॉकडाउन 44 दिन के पूरे होने के बावजूद भी विगत काफी दिनों से पिटोल बॉर्डर चेक पोस्ट पर प्रवासी मजदूरों का रोजाना हजारों की संख्या में सतत आना जारी है। पिछले 3 दिनों इतनी संख्या में प्रवासी मजदूर आ रहे हैं जिनके लिए व्यवस्था बनाना प्रशासन के लिए चुनौती बना हुआ है परंतु प्रशासनिक अमला भी मुस्तैदी से अपना कार्य कर रहा है। भीड़ ज्यादा होने से उन्हें ले जाने वाली बसों की संख्या कम पडऩे लगी ा। इसी वजह से चेक पोस्ट के चारों तरफ केवल मजदूरी मजदूर दिखाई देते हैं रात्रि एवं दिन में अविराम इन प्रवासी मजदूरों का आना जारी है। इन मजदूरों के मेडिकल चेकअप की लाइन कितनी लंबी होती है कि सुबह 6 बजे से लाइन में लगने वाला व्यक्ति दोपहर 12 बजे तक स्वास्थ्य चेकअप के लिए नंबर आता है। यही स्थिति भोजन की लाइन लिए होती है और यह सिलसिला कब तक चलेगा इसका अंदाजा लगाना कठिन है । मध्य प्रदेश के प्रवासी मजदूर अपने घर तक पहुंच रहे हैं परंतु अन्य राज्यों के मजदूर अभी भी दर.दर भटक रहे हैं पैदल चलने को मजबूर है

महाराष्ट्र जैसी घटना कहीं मध्य प्रदेश के रोड ऊपर ना हो जाए
आज सुबह महाराष्ट्र के औरंगाबाद के पास स्टेशन पर मध्य प्रदेश के प्रवासी मजदूर पैदल.पैदल पटरियों के सहारे चलकर ट्रेन पकडऩे के लिए स्टेशन पर जा रहे थे। वही रात्रि में पटरियों के पास सो जाने सुबह मालगाड़ी से सुबह 17 प्रवासी मजदूरों की मौत हो गई। सरकारों को यह घटनाएं याद दिला रही है कि पूरे देश में प्रवासी मजदूर किस प्रकार बेहताशा परेशान हो रहे हैं। वही पिटोल बॉर्डर पर यूपी -बिहार- झारखंड के मजदूर भी आ रहे हैं। पिटोल बॉर्डर तक काफी संख्या में उम्र दराज वृद्ध युवा महिलाएं बच्चे आदि होते हैं जो काफी दूर तक गुजरात से पैदल-पैदल पिटोल बॉर्डर तक आते हैं एवं यहां उन्हें बिहार उत्तर प्रदेश और अन्य राज्यों में जाने के लिए निराशा हाथ लगती है उन्हें भोजन तो मिल जाता है परंतु जाने के लिए कोई बस या साधन नहीं मिलता। वह अपने गंतव्य की ओर पैदल पैदल ही जाना जाने लगते हैं जिसमें छोटे बच्चों के पैरों में सूजन और छाले पड़ रहे हैं और अपने राज्यों में हजारों किलोमीटर पैदल चल रहे हैं। क्या यह इंसान नहीं है क्या इन इन पद यात्रियों के लिए सरकार की कोई जिम्मेदारी या सफेद ना नहीं है समय इतना ही नहीं है सोचने वाली बात है आज 40 डिग्री से ऊपर के तापमान में धूप में पैदल पैदल चलने को मजबूर है परंतु आज महाराष्ट्र में हुई मध्यप्रदेश के मजदूरों के साथ मौत की घटना से प्रशासन को सबक लेना चाहिए। क्योंकि इतनी धूप मैं लोग पैदल पैदल चलकर बिस्किट खाकर केवल पानी पीकर रोड के के पास रहने वाले ग्रामीणों के यहां से जो जैसा भोजन मिले खाकर अपनी मंजिल की ओर रवाना हो जाते हैं। अभी भी सरकारों को प्रवासी मजदूरों के संसाधनों से अपने राज्य में ले जाना चाहिए। अन्यथा वह दिन दूर नहीं जब करो ना महामारी नहीं परंतु रोड पर चलते चलते लोग यूं ही मर जाएंगे। वही बॉर्डर पर चेकअप कैंप में प्रवासी मजदूर ज्यादा है और उनके छांव के लिए टेंट की व्यवस्था एक कम पड़ रही है आज पिटोल बॉर्डर पर 2300 प्रवासी मजदूरों का अभी तक आना होगा और जिन्हें 88 बसों अपने घर तक पहुंचाया गया।

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