प्रवास पर आए खरमोर: मोरझरिया के जंगलों में दिखाई दिया खरमोर, मादा नहीं दिखी

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*फैक्ट फाइल:*

अंग्रेजी नाम- लेसर फ्लोरिकन

वैज्ञानिक नाम- सायफियोटाइड्स इंडीकस

कहां- खरमोर संरक्षित क्षेत्र रायपुरिया से 7 किलोमीटर दूर मोरझरिया गांव के जंगल में

क्या दिखा- एक नर खरमोर पक्षी

जो नहीं दिखा- मादा खरमोर क्योंकि ये घास के अंदर रहती है। नर मादा को रिझाने के लिए ऊंची छलांग लगाते हैं…

सलमान शैख़/जितेंद्र राठौर@ झाबुआ Live

दुर्लभ प्रवासी पक्षी खरमोर आखिरकार पेटलावद के मोरझरिया के  जंगलों में दिख ही गया। अत्यंत शर्मीले स्वभाव की मादा खरमोर नहीं दिखाई दी। रेंजर जूलियस पिपलाद ने एक जोड़े की यहां आने की पुष्टि की है। खरमोर संरक्षित क्षेत्र बनाने से इनका खत्म होता अस्तित्व बच गया। अब इनकी संख्या पहले से बढ़ी है। ये अच्छी बात है।

ब्रिडिंग के लिए आते है: 

एशिया और भारत के विभिन्न स्थानों से जून-जुलाई में जिले के पेटलावद क्षेत्र में आने वाले खरमोर पक्षी सितम्बर अंत से लेकर अक्टूबर की शुरुआत में लौट जाएंगे। अंडे देने के लिए यहां का वातावरण इन पक्षियों के लिए अनुकूल माना जाता है। अक्टूबर तक इन प्रवासी पक्षियों के बच्चे दो महीने के हो जाते हैं। बच्चे जैसे ही उड़ने योग्य हो जाते हैं खरमोर पक्षी पुराने स्थान पर लौट जाते हैं। रेंजर जूलियस पिपलाद ने बताया खरमोर पक्षी ब्रिडिंग के लिए आते हैं। इन्हें बारिश का मौसम और ओपन ग्रास लेंड चाहिए। इसलिए ये पक्षी यहां आते हैं। जब घास बड़ी हो जाती है तो बच्चे यहां टिकते नहीं है, इसलिए मादा इन्हें लेकर संभवत: दक्षिण भारत की ओर चली जाती है। पाकिस्तान, बांग्लादेश, गुजरात, राजस्थान, केरला, तमिलनाडु, कर्नाटक में खरमोर पक्षी पाए जाते हैं। ये पक्षी एक प्रकार से यह भारतीय उपमहाद्वीप का भी पक्षी है।

शर्मीले स्वभाव का पक्षी: 

अभी तक खरमोर को कम ही लोग कैमरे में कैद कर पाए हैं। हालांकि अब संख्या बढ़ने से इसकी संभावना बढ़ गई है। ये अत्यतं शर्मीले स्वभाव वाला पक्षी है। ये पक्षी गुजरात, राजस्थान के पश्चिमी क्षेत्र और प्रदेश के सैलाना व झाबुआ-धार क्षेत्र में कुछ संख्या में है। 2009 में पहली बार इस क्षेत्र में खरमोर आये थे। उसके बाद से लगातार इनका यहां आना-जाना रहता है। ये सब इस प्रजाति के संरक्षण से हुआ है। ये पक्षी मॉनसून सत्र में ब्रीडिंग करता है।

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