विश्लेषणः पेटलावद में बीजेपी सिर्फ साख बचा सकी, क्या इशारा कर रहे हैं चुनाव परिणाम…?

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दिनेश वर्मा@झाबुआ Live 

पेटलावद नगर परिषद चुनाव में हुई निर्दलीयों की जीत ने भाजपा-कांग्रेस के सारे दांवों पर धूल छांट दी। निर्मला भूरिया की प्रतिष्ठा लगी दांव पर उनके विरोधियों के हौसले भी पस्त हो गए। भाजपा के विरोध में भाजपाई ही भीतरघात और खुली बगावत कर रहे थे। भाजपा की टिकट चयन में उनके फैसले का अंदरूनी विरोध किस हद तक था, वह परिणाम में भी दिखा।
क्या इशारा कर रहे हैं चुनाव परिणाम?
गौरतलब है कि शुक्रवार को पेटलावद नगर परिषद चुनाव के नतीजे घोषित हुए। यह नतीजे चैंकाने वाले थे, जिसे लेकर दोनो प्रमुख दलों भाजपा और कांग्रेस को गहन मंथन करना चाहिए, क्योकि इन परिणामों के बाद भाजपा के लए एक चिंता की रेखा भी समानांतर चल रही है, कि नपं अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के लिए अब क्या रणनीति बनाई जाए। इस चुनाव परिणाम ने बदलते राजनीतिक परिदृश्य के भी स्पष्ट संकेत दिए हैं। पेटलावद की जनता ने 7 सीटों पर भाजपा को जीत दिलाई तो 7 सीटों पर निर्दलीय प्रत्याशियों को जीता दिया। अब यहां न तो भाजपा बहुमत में है और न ही निर्दलीय बहुमत में है। यूं कहने पर भाजपा भले ही जश्न मना रही है, लेकिन भीतर ही भीतर यह खुटका बड़ा है कि अब आखिर क्या किया जाए।
कांग्रेस पेटलावद से शून्यः
वैसे नगरीय निकाय चुनावों में कांग्रेस को मिली सफलता इतनी बड़ी भी नहीं है कि वह अगले विधानसभा चुनाव में जीत का सपना देख सके। अलबत्ता इन नतीजों ने यह तो साबित किया है कि कांग्रेस मुकाबले में बनी हुई है। दरअसल कांग्रेस को मिली कामयाबी के पीछे पार्टी के जुझारूपन से ज्यादा सत्तारूढ़ भाजपा में चला आंतरिक घमासान ज्यादा है। टिकट वितरण और बूथ मैनेजमेंट को लेकर पार्टी में जबर्दस्त खींचतान चली। यह संघर्ष शीर्ष स्तर से लेकर निचले स्तर पर दिखाई दिया।
कई बड़े नेताओं की राजनीति खत्म, कई युवा चेहरे आए उभरकर सामने-
पेटलावद चुनाव में एक बात तो देखने में आ गई, कि ये पब्लिक है सब जानती है। 5 साल में जो दंश पिछली परिषद में जनता को मिले, उससे सीख लेकर जनता ने बड़ी ही खामोशी से पूरी परिषद ही बदल डाली। जितने भी पुराने पार्षद थे उन्हें रवानगी देकर नए चेहरों को जगह दी और परिषद में अपने वार्ड का प्रतिनिधि बनाकर भेजा। कुल 15 वार्डो में से केवल वार्ड 11 ही एकमात्र ऐसा वार्ड रहा जहां जनता ने पुराने पार्षद संजय कहार की पत्नि किरण कहार को चुनाव में जीत दिलाई। किरण कहार भी 10 साल पहले इसी वार्ड की पार्षद रह चुकी है और अब दोबारा जनता ने उन पर भरोसा जताया। वहीं भाजपा के कई ऐसे बड़े नेताओं के राजनीतिक भविष्य भी उनकी हार के बाद लगभग समाप्त हो चुका है। हालांकि कुछ नेता जरूर अगले चुनाव में दोबारा दिखेंगे, लेकिन इस बार जनता ने उन्हें मौका नही दिया।
इन वार्डो में हुआ बड़ा उलटफेर-
पेटलावद के वार्ड क्रमांक 1 की बात करे तो यहां भाजपा ने विनोद भंडारी को प्रत्याशी बनाया था और उनके यहां से टिकट मिलने को लेकर नाराज भाजपा के ही कार्यकर्ता 10 सालो बाद फिर नजरअंदाज होने पर निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में मैदान में उतरे। उनके साथ भाजपा के कई बड़े पदाधिकारियों ओर कार्यकर्ताओं का अंदरूनी तौर पर साथ रहा। जिसकी बदौलत भाजपा की पक्की सीट मानी जाने वाले वार्ड में एक बड़ा उलटफेर हुआ। यहां भाजपा के बड़े नेताओं में शुमार विनोद भंडारी को हार का मजा चखना पड़ा। उन्हें 81 वोटों के बड़े अंतर से भाजपा के बागी मुकेश परमार ने हरा दिया।
इसी तरह का नजारा वार्ड 2 में भी था। यहां भी भाजपा प्रत्याशी के खिलाफ भाजपा से जुड़े लोगो ने काम किया और निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में दो महिलाओं को खड़ा किया। इस वार्ड में भी भाजपा की जीत लगभग तय ही थी, लेकिन अंदरूनी तौर पर हुई भीतरघात के कारण भाजपा प्रत्याशी रचना मुलेवा को हार झेलनी पड़ी। इंद्रा पड़ियार ने उन्हें 27 वोटों के अंतर से हरा दिया।
वार्ड 3 में हर बार एक ही चेहरे को भाजपा का प्रत्याशी बनाए जाने के विरोध में भाजपा से जुड़े लोगो ने निर्दलीय प्रत्याशी को मैदान में उतारा। पिछली परिषद में जो पार्षद था उसका विरोध वार्ड में ज्यादा था, इसलिए उसकी पत्नि को टिकट देना भाजपा को भारी पड़ा और निर्दलीय प्रत्याशी कन्नाबाई मैड़ा ने 145 वोटो के अंतर से उन्हें हरा दिया।
वार्ड 4 में पूर्व परिषद में भाजपा के पार्षद से लोग नाराज थे। उन पर यह आरोप थे कि उन्होनें पूरे 5 साल अपने वार्ड में झांककर भी नही देखा। यही वजह रही कि यहां की जनता ने बड़ा उलटफेर कर निर्दलीय को तो नही, बल्कि कांग्रेस के प्रत्याशी को जीत दिला दी। यही एकमात्र सीट कांग्रेस की झोली में गई है।
वार्ड 5 में गलत टिकट वितरण का खामियाजा पिछले चुनाव की तरह भाजपा को भुगतना पड़ा। यहां फिर से निर्दलीय प्रत्याशी की जीत हुई। हालांकि यह निर्दलीय भाजपा के ही बागी थे।
वार्ड 6 में पूर्व परिषद में पार्षद रही मंगला राठौड़ के पति शंकर राठौड़ निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में मैदान में थे। इस बार उन्हें यहां से टिकट नही दिया गया था, जिसके विरोध में उन्होनें निर्दलीय फार्म भरा। पूरे चुनाव में केवल एकमात्र यही वार्ड ऐसा था जो स्थानीय से लेकर प्रदेश स्तर तक चर्चा में था। यहां पहले यह बात सामने आई कि भाजपा ने गलत व्यक्ति को टिकट दे दिया, लेकिन जब नतीजे घोषित हुए तो सब हैरान रह गए। इस वार्ड की जनता ने भाजपा प्रत्याशी को जीत दिलाकर यह बता दिया कि जनता जर्नादन होती है और जनता ने भाजपा प्रत्याशी को प्रचंड वोट देकर निर्दलीय प्रत्याशी को 241 वोट के बड़े अंतर से हरा दिया।
वार्ड 8 में भी टिकट वितरण में हुई चूक का खामियाजा भाजपा को उठाना पड़ा और भाजपा को यह सीट खोना पड़ी। यहां निर्दलीय प्रत्याशी ममता धानक ने भाजपा प्रत्याशी को 429 वोट के सबसे बड़े अंतर से हराकर प्रचंड बहुमत से विजय हासिल की। चर्चा है कि यहां भाजपाईयों की भितरघात का खामियाजा भी भाजपा प्रत्याशी को भुगतना पड़ा। अब देखना यह होगा कि यहां भितरघात करने वाले भाजपा के नेताओं पर कब बीजेपी अपना डंडा चलाएगी।
वार्ड 9 भी में भाजपा को गलत टिकट वितरण ले डूबा। यह सीट भी भाजपा की परंपरागत सीट रही है, लेकिन इस बार निर्दलीय प्रत्याशी अनुपम भंडारी ने भाजपा प्रत्याशी राकेश मांडोत को 72 वोट के अंतर से हराकर जीत हासिल की।
वार्ड 10 में एक बार फिर से भाजपा ने कांग्रेस प्रत्याशी को हराकर यह सीट हासिल की। हालांकि यहां मुकाबला निर्दलीय प्रत्याशी का था। जिसे भाजपा प्रत्याशी संजय चाणोदिया ने महज 6 वोट के अंतर से हरा दिया।
वार्ड 12 में भाजपा प्रत्याशी ने वर्षो से भाजपा का दामन थामने वाले बागी प्रत्याशी को हराकर एक बड़ी जीत हासिल की। यहां अब बागी प्रत्याशी के पति आजाद गुगलिया का राजनीतिक भविष्य खतरे में आ गया है।
वार्ड 13 की बात करे तो भाजपा के लिए 35 सालों का सूखा समाप्त हुआ। यहां आदिवासी वोटरो के अलावा मुस्लिम वोटरों की संख्या बराबर है। इस बार यहां उम्मीदवारों की संख्या 6 थी। इसलिए यहां वोटों का बटवारा होना तय था। हालांकि ऐसा सालों में पहली बार हुआ कि मुस्लिम वोट भी भाजपा प्रत्याशी को मिले और भाजपा प्रत्याशी जमना भूरालाल ने यहां जीत हासिल की। यहां वार्ड प्रभारी बने निलेश मीणा और उनके साथ पदाधिकारियों ने दिन-रात मुस्लिम बाहुल्य इलाकों को शासन की योजनाओं को बताया जिससे वोटर प्रभावित हुए और इस बार उन्होनें भाजपा पर भरोसा जताया।
वार्ड 15 में एक बड़ा उलटफेर हुआ। यहां विगत 10 सालों से पार्षद पद पर काबिज रही भाजपा प्रत्याशी को हार का मजा चखना पड़ा। बताया जा रहा है कि यहां पूर्व पार्षद का विरोध बहुत हो गया था। यही वजह रही कि यहां की जनता ने निर्दलीय प्रत्याशी पर भरोसा जताया और 193 वोटो के अंतर से भाजपा प्रत्याशी को हरा दिया।
वार्ड 7 में थी अध्यक्ष पद की लड़ाई-
वार्ड 7 की बात करें तो इस वार्ड से यह पहले ही तय हो गया था कि जो भी जीता उसका नगर परिषद अध्यक्ष बनेगा। यही वजह रही कि यहां पूर्व पार्षद को टिकट नही दिया गया तो उन्होनें निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में अपनी पत्नि को मैदान में उतार दिया। हालांकि उन्हें इस बार जनता ने नकार दिया और युवा पार्षद प्रत्याशी को जीत दिलाई। यहां से भाजपा प्रत्याशी के रूप में खड़ी ललिता गामड़ ने प्रचंड बहुमत हासिल किया और निर्दलीय प्रत्याशी को 203 वोटो के बड़े अंतर से हरा दिया। अब उनका लगभग नगर परिषद अध्यक्ष बनना तय माना जा रहा है।
चौराहै पर चर्चा, कौन बनेगा उपाध्यक्ष-
नगर परिषद अध्यक्ष की सीट आदिवासी महिला के लिए आरक्षित है। यहां भाजपा की ओर से दो वार्डो में आदिवासी महिला प्रत्याशी विजय हुई है। जिनमें वार्ड 7 और वार्ड 13 शामिल है। हालांकि वार्ड 13 के प्रत्याशी के अध्यक्ष बनाए जाने की संभावनाएं कम है, लेकिन वह कहते है कि राजनीति बड़ी गंदी चीज होती है। हालांकि यह केवल संभावनाएं है, सबकुछ तय संगठन को करना है। कहा यह जा रहा है कि वार्ड 7 की प्रत्याशी के पास पेटलावद के युवाओं की एक बड़ी टीम है। अगर विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा को पेटलावद की सीट हासिल करनी है तो युवाओं के भरोसे ही रहना होगा और भाजपा अब यह नही चाहेगी कि फिर से कांग्रेस का विधायक पेटलावद में बने। अब अध्यक्ष के बाद उपाध्यक्ष के पद को लेकर भी चोराहे पर अभी से चर्चा शुरू हो गई है। उपाध्यक्ष की दौड़ में सबसे पहला नाम गौतम गेहलोत का है। इसके बाद दूसरा नाम किरण संजय कहार, तीसरा मुकेश परमार और चौथा नाम संजय चाणोदिया का भी है। अभी भाजपा के पास भी बहुमत नही है, ऐसे में भाजपा अगर तालमेल बिठाती है तो पेटलावद में यह हो सकता है कि अध्यक्ष भाजपा का और उपाध्यक्ष निर्दलीय बनाया जा सकता है। हालांकि जो 7 निर्दलीय पार्षद है वह भाजपा के ही बागी है और माना यह जा रहा है कि वह भाजपा का ही दामन थामेंगे। हालांकि ऐसा होता है या नही यह देखने वाली बात होगी।

भाजपाः जीत के तीन प्रमुख कारण
– शिवराज की लहर व पिछले 15 वर्षों में हुए विकास कार्यों का प्रभाव
– योजनाओं व कार्यों को मजबूत तरीके से रखना, जनसभा में पहुंचे सीएम शिवराज का विकास के लिए पक्का आश्वासन
– बेहतर मैनेजमेंट
निर्दलीयः जीत के तीन प्रमुख कारण
– नए चेहरे ने उम्मीदवारी की।
– बडी कार्यकर्ताओं की टीम
– कोई स्टारक प्रचारक नहीं, भिरतघाती भाजपाईयों का साथ

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