पिटोल में हुआ स्नेह यात्रा का स्वागत, स्वामी प्राणवानंद सरस्वती ने धर्म सभा को किया संबोधित

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भूपेंद्र नायक, पिटोल

16 से 26 अगस्त तक चलने वाली स्नेह यात्रा आज पिटोल भीम फलिया कालिया होते हुए पिटोल बस स्टैंड पर रोहिदास बस्ती में पहुंची। जहां रोहिदास समाज के साथ अन्य समाज के लोगों ने भी धर्म लाभ लिया। स्नेह यात्रा में1008 श्री प्रणवानंद जी महाराज महामंडलेश्वर वृंदावन  धाम एवं इंदौर,  झाबुआ जिले के ग्रामीण क्षेत्रों के गांव में अपनी वाणी से सनातन धर्म का अलख जगा रहे हैं। 

इसी कड़ी में आज दोपहर 12 से पिटोल बस स्टैंड पर रोहिदास बस्ती में धर्म सभा का आयोजन किया गया। यात्रा का प्रमुख उद्देश्य सनातन धर्म से समरसता की ओर अपने कदम बढ़ाना है। इस कार्यक्रम मे जगदीश सिसोदिया( आध्यात्म प्रमुख )एवं जिला समन्वयक भीम सिंह जी डामोर उपस्थित रहे। स्वागत  उद्बोधन देते हुए भीमसिंह डामोर ने स्वामी जी का संपूर्ण परिचय दिया,  और यात्रा के बारे में विस्तार से बताया। श्री सिसोदिया ने भी स्वामी जी के बारे में और यात्रा के दौरान अपने संस्मरण सुनाए। महामंडलेश्वर इंदौर प्रणवानंद जी महाराज ने  सभा को संबोधित करते संत रविदास के सनातन लगाने के लिए अपनी कठिन तपस्या का वर्णन करते हुए बताया कि ‘मन चंगा, तो कठौती में गंगा’ इस कहावत के पीछे यह है। उन्होंने कहा एक दिन संत रैदास (रविदास) अपनी झोपड़ी में बैठे प्रभु का स्मरण कर रहे थे। तभी एक राहगीर ब्राह्मण उनके पास अपना जूता ठीक कराने आया। रैदास ने पूछा कहां जा रहे हैं, ब्राह्मण बोला गंगा स्नान करने जा रहा हूं। जूता ठीक करने के बाद ब्राह्मण द्वारा दी मुद्रा को रैदासजी ने कहा कि आप यह मुद्रा मेरी तरफ से मां गंगा को चढ़ा देना। ब्राह्मण जब गंगा पहुंचा और गंगा स्नान के बाद जैसे ही ब्राह्मण ने कहा- हे गंगे रैदास की मुद्रा स्वीकार करो, तभी गंगा से एक हाथ आया और उस मुद्रा को लेकर बदले में ब्राह्मण को एक सोने का कंगन दे दिया। ब्राह्मण जब गंगा का दिया कंगन लेकर वापस लौट रहा था, तब उसके मन में विचार आया कि रैदास को कैसे पता चलेगा कि गंगा ने बदले में कंगन दिया है, मैं इस कंगन को राजा को दे देता हूं, जिसके बदले मुझे उपहार मिलेंगे। उसने राजा को कंगन दिया, बदले में उपहार लेकर घर चला गया। जब राजा ने वो कंगन रानी को दिया तो रानी खुश हो गई और बोली मुझे ऐसा ही एक और कंगन दूसरे हाथ के लिए चाहिए।

राजा ने ब्राह्मण को बुलाकर कहा वैसा ही कंगन एक और चाहिए, अन्यथा राजा के दंड का पात्र बनना पड़ेगा। ब्राह्मण परेशान हो गया कि दूसरा कंगन कहां से लाऊं? डरा हुआ ब्राह्मण संत रविदास के पास पहुंचा और सारी बात बताई। रैदासजी बोले कि तुमने मुझे बिना बताए राजा को कंगन भेंट कर दिया, इससे परेशान न हो। तुम्हारे प्राण बचाने के लिए मैं गंगा से दूसरे कंगन के लिए प्रार्थना करता हूं।ऐसा कहते ही रैदासजी ने अपनी वह कठौती उठाई, जिसमें वो चमड़ा गलाते थे, उसमें पानी भरा था। रैदास जी ने मां गंगा का आह्वान कर अपनी कठौती से जल छिड़का, जल छिड़कते ही कठौती में एक वैसा ही कंगन प्रकट हो गया। रैदासजी ने वो कंगन ब्राह्मण को दे दिया। ब्राह्मण खुश होकर राजा को वह कंगन भेंट करने चला गया। तभी से यह कहावत प्रचलित हुई कि ‘मन चंगा, तो कठौती में गंगा विस्तृत वर्णन करते हुए हुए कहा कि यह यात्रा हमारे आध्यात्म की यात्रा है।  जिसके पास जो है वही बांटता है आपके पास आनंद है तो आप आनंद दे सकते हैं ।

परमात्मा की प्राप्ति के लिए अपने अंतःकरण को शुद्ध बनाना होगा यदि आपके मन में सैकड़ों विकार हैं तो उसमे परमात्मा निवास नहीं कर सकता । धर्म जाति नहीं देखता ,जाति बंधन हमारे लिए कैंसर के समान है,  सभी को एक धर्म में आना चाहिए। सनातन धर्म ही महान है। इस यात्रा में हम सभी के साथ मिलकर भोजन करते हैं जिससे अपनत्व का भाव प्रकट होता हैं । हमें इस स्नेहयात्रा में  अंतिम पंक्ति के लोगों के यहा जाने के लिए आएं है । और भेदभाव को मिटाने आए है । इस धर्म सभा में सैकड़ों भक्त उपस्थित थे,  सभी को स्वामी जी महाराज द्वारा रुद्राक्ष का वितरण किया गया और रक्षा सूत्र एवं हनुमान चालीसा पाठ के लिए भक्तों को दिए गए एवं रोहिदास बस्ती के लोगों को रहा क्या भर शनिवार को हनुमान चालीसा का पाठ करें  महिलाएं भजन मंडली के माध्यम से भजन करें और प्रभु भक्ति कार अध्यात्म की ओर बढ़े इससे हमारे सनातन धर्म का रक्षा होगी।

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