भागवत कथा के समापन पर भागवत जी की भव्य शोभायात्रा निकाली गई

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भूपेंद्र नायक, पिटोल

पिटोल मे सार्वजनिक राधा कृष्ण मंदिर में भागवत कथा के समापन के पश्चात भागवत पोथी को श्रद्धालुओं द्वारा अपने सिर पर शिरोधारी कर संपूर्ण पिटोल नगर में भागवत जी की यात्रा निकाली गई। इस शोभायात्रा में पिटोल नगर के सर्व समाज के भाइयों बहनों ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया।

राजस्थान के तलवाड़ा से पधारे संत रघुवर दास जी के श्री मुख से सात दिवस तक भागवत ज्ञान गंगा का प्रवाहित हुई। जिसमें संत श्री रघुवर गुरदास जी द्वारा भागवत कथा की संपूर्ण महत्व को बताया गया। उन्होंने कहा कथा में प्रसंग के अनुरूप मृत्यु लोक में मरने वाले प्राणी को अपने मोक्ष कल्याण के लिए भागवत कथा करवाना सबसे श्रेष्ठ माना गया है। परीक्षित जी एवं सुखदेव जी महाराज के मध्य चर्चा पर प्रसंग की विवेचना कि गयी ।महाराज श्री ने बताया कि जीवन में भजन हे तौ सुख समृद्धि है भजन नहीं तो सुख शांति भी नहीं मिलेगी भगवान का प्रेम अनमोल होता है पूरी दुनिया का डर मिटाने वाला होता है, कामना की पूर्ति के लिए किया जाने वाला भजन भक्ति नहीं है निष्कामना से किया जाने वाला भजन ही श्रेष्ठ माना जाता है। भागवत कथा भगवान के स्वभाव को प्रकट करने वाली । भागवत कथा ज्ञान वह वैराग्य को बढ़ाने वाली है ,यदि मन में भक्ति हो तो कोई भी जाति का हो स्वरूप कैसा भी हो नीच से नीच क्यों ना हो तो भी वह ईश्वर के लिए सबसे ज्यादा प्रिया है। भक्तिहीन भक्ति रहित व्यक्ति कोई भी हो वह ईश्वर से हमेशा दूर होताहै। शबरी बाई रूपवान नहीं थी फिर भी उसके मन में भक्ति थी तो वह प्रभु राम के सबसे निकट थी, भगवान से भगवान के अलावा कोई और वास्तु मांगना भक्ति की दुर्गंध है, कामी क्रोधी लोभी व्यक्ति कभी भक्ति नहीं कर सकता है भक्ति तो कोई बिरला ही कर सकता है । आज दुनिया में लोग अपने दुख से दुखी नहीं है किंतु पड़ोसी के सुख से ज्यादा दुखी है। आज श्री कृष्ण की बाल लीला, पूतना का वध ,माखन चोरी लीला ,गिरिराज पूजा इत्यादि प्रसंग पर कथा की सरिता बही । छप्पन भोग का आयोजन पूर्ण हुआ जिसके लाभार्थी सेठ रामेश्वर नागर रहे ।

 सप्तम दिवस भागवत कथा में विभिन्न प्रसंगों के साथ तुलसी विवाह समारोह भी संपन्न हुआ। महाराज श्री द्वारा विभिन्न रागों पर आधारित चौपाइयों तथा भजनों के साथ तबले पर डूंगरपुर के तबला वादक ओमप्रकाश जेठवा ने विभिन्न ताल जैसे की कहरवा, दादर, त्रिताल, दीप चंदी तालों के माध्यम से भजनों में चार चांद लगाए, साथ में सिंथेसाइजर पर जिग्नेश त्रिवेदी बांसवाड़ा एवं कोरस पर आचार्य नरेंद्र जी छींच तथा शैलेश भट्ट ने संगत की अंत में आरती प्रसाद के साथ कथा अमृत को विराम दिया गया।

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