2047 तक देश से सिकल सेल एनीमिया बीमारी को जड़ से खत्म करना स्वास्थ्य विभाग की बहुत ही बड़ी जिम्मेदारी : राज्यपाल मंगू भाई पटेल

भूपेंद्र नायक, पिटोल

पिटोल से 5 किलोमीटर दूर बैतूल-अहमदाबाद राष्ट्रीय राज्य मार्ग से लगे हुए गांव खेड़ी में महामहिम राज्यपाल मंगू भाई पटेल का निर्धारित दौरा समय 12.30 बजे पर शुरू हो गया। राज्यपाल मंगू भाई पटेल का मूल उद्देश्य झाबुआ और अलीराजपुर जिले में सिकल सेल एनीमिया बीमारी के रोगियों से रूबरू होकर उनकी हालत की जानकारी लेना थी और वह उनमें उनसे मिले भी।

कार्यक्रम के अनुसार  ग्राम खेड़ी में पहुंच गए थे। मंगू भाई पटेल के पहुंचने पर सर्वप्रथम राष्ट्रगान के बाद मां सरस्वती की मूर्ति पर माल्यार्पण करने के बाद कार्यक्रम की  शुरुआत हुई। जिसमें  मध्य प्रदेश सरकार की महिला एवं बाल विकास विभाग मंत्री   निर्मला भूरिया एवं झाबुआ अलीराजपुर रतलाम के सांसद गुमान सिंह डामोर ने तुलसी के पौधे देकर राज्यपाल का स्वागत किया। इसके पश्चात मुख्य जिला   चिकित्सा अधिकारी बी एस बघेल द्वारा सिकल सेल एनीमिया के लक्षणों एवं बीमारी के बारे में विस्तृत बताया। उसके पश्चात  सांसद गुमान सिंह डामोर और कैबिनेट मंत्री निर्मला भूरिया द्वारा भी देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा गरीबों के उत्थान के लिए जनकल्याणकारी योजनाओं के बारे में के साथ सिकल सेल एनीमिया बीमारी के बारे में भी जागरूक किया। इसके पश्चात  राज्यपाल मंगू भाई पटेल द्वारा झाबुआ और आलीराजपुर जिले को में प्राथमिकता से इस बीमारी को जड़ से खत्म करने के लिए करोड़ों रूपए का बजट पास किया है झाबुआ और आलीराजपुर जिले में अभी तक 656453 लोगों की जांच की गई है। जिसमें 11480 लोगों को सिकल सेल एनीमिया बीमारी  के रोगी पाए गए हैं वही 839 सिकल सेल एनीमिया लक्षण वाले लोगो को परामर्श दे रहे हैं। 

राज्यपाल मंगू भाई पटेल द्वारा बीमारी के बारे में बता गया कि जिंदा रहने के लिए शरीर में खून का रहना काफी जरूरी है. खून के ही जरिए पूरे शरीर के अंग अंग में पोषक तत्व पहुंचता है. शरीर में खून की मौजूदगी से ही ऑक्सीजन की आपूर्ति होती है. अब जरा सोचिए शरीर में खून ही बनना बंद हो जाए तो क्या होगा. सिकल सेल एनीमिया एक ऐसी ही बीमारी है जिसमें शरीर में खून बनना बंद हो जाता है.

हितग्राहियों को सम्मान पत्र दिए

राज्यपाल मंगू भाई पटेल उद्बोधन के बाद शासन की विभिन्न योजनाओं लाभांवित हित ग्राहियो को सम्मान पत्र दिए इसमें बद्द मालजी मेड़ा आयुष्मान कार्ड् झितरी कालिया गणावा आयुषमान कार्ड शिवानी बारिया को सिकल सेल एनीमिया कार्ड अंजलि गुड़िया को सिकल सेल एनिमिया कार्ड दिया गया लाडली लक्ष्मी योजना रेणुका बारिया उज्जवला योजना के लिए अंगूरी गुण्डिया को दिया गया जिला प्रशासन द्वारा किसान के साथ बैलगाड़ी वाला मोमेंटो स्मृति चिन्ह भेंट किया गया। इसके पश्चात मंगू भाई पटेल पटेल द्वारा कार्यक्रम स्थल पर लगे स्वास्थ विभाग सहित अलग-अलग विभाग के स्टालों का निरीक्षण किया एवं सभी को सहज और सरल भाव से समझाया कि आप हर बीमारी को प्राथमिकता से लें और उनकी उपचार में करने के लिए कड़ी मेहनत करे !

क्या है सिकल सेल एनिमिया

सिकल सेल एनीमिया एक जेनेटिक रोग है. इसमें शरीर में मौजूद रेड ब्लड सेल्स की संरचना पर प्रभाव पड़ता है जो पूरे शरीर में ऑक्सीजन का परिवहन करती है. लाल रक्त कोशिकाएं आमतौर पर गोल आकार और लचीली होती है जिससे वो आसानी से रक्त वाहिकाओं से गुजर सकती है. लेकिन सिकल सेल एनीमिया में कुछ रेड ब्लड सेल्स चंद्रमा के आकार की होती है. ये चिपचिपा और कठोर हो जाती है जो रक्त के प्रवाह को धीमा कर देती है, इस वजह से शरीर में खून की कमी होने लगती है. धीरे-धीरे सिकल सेल खत्म होने लगती है, जिससे रेड ब्लड सेल कम होने लगती है. इसका असर शरीर को मिलने वाली ऑक्सीजन पर पड़ता है सही इलाज न मिलने से व्यक्ति की मौत की आशंका भी बढ़ जाती है. विशेषज्ञों के मुताबिक यह एक अनुवांशिक समस्या है जो जन्म के समय से मौजूद होती है. जब किसी बच्चे को अपने माता-पिता दोनों से सिकल सेल के जींस मिलते हैं तो उसे बच्चों को सिकल सेल बीमारी हो जाती है.

सिकल सेल एनिमिया के लक्षण

हड्डियों और मसल्स में हर वक्त दर्द रहना.

पैर हाथ में सूजन रहना

चक्कर और कन्फ्यूजन में करना

सर दर्द और आंखों से जुड़ी समस्याएं

कमजोरी महसूस करना

क्या है सिकल सेल एनिमिया का इलाज

वैसे तो अब तक सिकल सेल डिजीज का कोई सटीक इलाज मौजूद नहीं है. हालांकि पीड़ित व्यक्ति के लक्षणों के आधार पर उसे इलाज दिया जा सकता है. सिकल सेल एनीमिया में व्यक्ति को खून चढ़ाना पड़ता है इसके अलावा बोन मैरो भी ट्रांसप्लांट किया जाता है जो की एक बहुत ही जटिल प्रक्रिया है. इसके कई सारे साइड इफेक्ट भी होते हैं. आपको बता दें कि भारत ने 2047 तक सिकल सेल एनीमिया डिजीज को मुक्त करने का लक्ष्य रखा है, यह बीमारी भारत में काफी बड़े स्तर पर फैली हुई है. 15 से 50 साल की उम्र की तकरीबन 56 फ़ीसदी महिलाएं इस समस्या से जूझ रही हैं.

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